दिवाली केवल सत्य की असत्य पर जीत की प्रतीक नहीं है, बल्की ये हमें श्री रामचन्द्र जी के जीवन से प्रेरणा लेने को भी प्रेरित करती है।                         
  हम अपने जीवन में मर्यादाओ को धार लें तो हमारे जीवन में हर पल ही दिवाली है : सतगुरु कँवर साहेब जी

दिनोद धाम जयवीर फोगाट,              

02 नवंबर,  परोपकार और परमार्थ दिवाली में निहित हैं। दिवाली मुख्यतः श्री रामचन्द्र जी के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है लेकिन इसके पीछे जीवन की मर्यादाओ का पाठ भी है। सन्तों की दिवाली का अलग ही अर्थ है। सन्त जिस लोक में रहते हैं उसे सतलोक कहते हैं और सतलोक की दिवाली तो बारह महीने होती है। यह सत्संग वचन परमसन्त सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद स्थित राधास्वामी आश्रम में संगत को धनतेरस व दिवाली की शुभकामनाये देते हुए कहे।                                   

गुरु महाराज जी ने कहा कि देश दुनिया की दिवाली भी प्रतीकात्मक रूप में हमें यही संदेश देती है कि वियोग के कारण अंधेरा आता है। जिस प्रकार श्री रामचन्द्र जी के वनवास में जाने के कारण अयोध्या नगरी में वियोग का अंधेरा छा गया वैसे ही हमारी रूह में भी परमात्मा के वियोग के कारण अंधेरा छा जाता है। अयोध्या का अंधेरा श्री रामचन्द्र के वापिस लौटने के कारण छंट गया। अयोध्या निवासियों ने जैसे घी के दिये जला कर चौदह वर्ष के अँधेरे को दूर भगा दिया वैसे ही हमें भी अपने कर्मो को साध कर परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए ताकि आत्मा और परमात्मा का वियोग समाप्त हो और हमारे अन्तस् में विवेक का प्रकाश प्रज्वल्लित हो। असली दिवाली तो अंतर की दिवाली है। इसके लिए हमें अपने अंतर में बैठे अहंकार रूपी रावण को मारना पड़ेगा ताकि संयम रूपी सीता सत्य रूपी राम के संग विराजमान हो सके।

  हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि दिवाली का विशेष पर्व सब त्योहारों से बड़ा इसलिये माना जाता है क्योंकि इसका महत्व सबसे ज्यादा है। हिंदुस्तान के सब त्योहारों के पीछे कोई ना कोई सन्देश होता है। दिवाली भी यही संदेश देती है कि बुराई चाहे कितनी ही ताकतवर क्यों ना हो लेकिन वह अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती। दिवाली अंतर्मन को सत्य से चमकाने का संदेश है। उन्होंने कहा कि दिवाली केवल सत्य की असत्य पर जीत की प्रतीक नहीं है। ये हमें श्री रामचन्द्र जी के जीवन से प्रेरणा लेने को भी प्रेरित करती है। यदि हम अपने जीवन में मर्यादाओ को धार लें तो हमारे जीवन में हर पल ही दिवाली है। उन्होंने फरमाया कि दिवाली के माध्यम से हमें अपने जीवन के अलग अलग पहलुओं को समझने की शिक्षा मिलती है। भाई के प्रति भाई का सम्बंध, राजा के रूप में धर्म, माता पिता के प्रति सन्तान का धर्म क्या है ये हमें रामायण से पता चलता है। दिवाली के पर्व पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम जिस प्रकार इस त्योहार पर हम अपने घरों की साफ सफाई करते हैं। मिठाई बांटते हैं, दीए जलाते हैं वैसे ही हमें अपने मन की भी सफाई करनी चाहिए, प्रेम रूपी मिठाई बांटनी चाहिए और भजन रुपी दिए से अपने अंतर्मन में रोशनी करनी चाहिए। एक बार यदि आपके अंतर्मन में दिया जल गया तो समझो बारह मासो आपकी दिवाली है।3 Attachments

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