उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पास एनसीआर में ईट भट्ठा संचालन में मौजूदा पॉलिसी पर सामाजिक दृष्टिकोण की नई पहल करने का सुनहरी अवसर
भट्ठा संचालकों का प्रतिनिधि मंडल जल्द करेगा मुलाकात।
एनसीआर में ईट भट्ठा चलाने वाले और इस उद्योग पर निर्भर रहने वाले लोगों को अपनी आजीविका को बचाने के लिए किसानों की तरह आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ सकता है

धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ – राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एनसीआर ईट भट्ठा एसोसिएशन के प्रतिनिधियों की पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत हरियाणा दिवस 1 नवंबर को चंडीगढ़ मे हरियाणा के उपमुख्यमंत्री एवं खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री दुष्यंत चौटाला से मुलाकात नहीं हो पाई अब यह मुलाकात दीपावली के बाद फिर किसी दिन हो पाएगी। एनसीआर ईट भट्ठा एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र चौहान के नेतृत्व में यह प्रतिनिधिमंडल इस प्रस्ताव और पेशकश के साथ उप मुख्यमंत्री से मिलना चाहता था कि इस सीजन में ईट भट्ठों को चलाने को लेकर बनाई गई एनजीटी की पॉलिसी के संदर्भ में उनकी एक याचिका माननीय सुप्रीम कोर्ट में विचार के लिए रख ली गई है। मतलब एडमिट कर ली गई है, लिहाजा जब तक देश कि शीर्ष अदालत का निर्णय आए तब तक जनहित में उपरोक्त आदेशों के क्रियान्वयन को स्थगित करने का फैसला लिया जाए। बताया गया कि श्री चौटाला जो उस दिन दिल्ली में थे परंतु तबीयत खराब होने के कारण चंडीगढ़ नहीं पहुंच पाए और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को वापस लौटना पड़ा।

ईट भट्ठा चलाने वाले मालिकों के प्रतिनिधिमंडल का उपमुख्यमंत्री से मिलना इसलिए जरूरी है कि हरियाणा और पंजाब में ईट भट्टों का लाइसेंस खाद्य और आपूर्ति विभाग जारी करता है और यह विभाग श्री चौटाला के पास है। पहले ईट भट्ठा उद्योग आवश्यक वस्तु अधिनियम की श्रेणी में आता था अब उसे इस श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। इस समय मार्च तक कोई भी भट्ठा चलाने के आदेश नही है ।जाहिर है एनसीआर में मतलब 4 राज्यों में हरियाणा के 14 जिले राजस्थान के 2 जिले और यूपी के 8 जिलों में ईटों का उत्पादन पूरी तरह से बंद है। इससे विकास कार्य बुरी तरह से प्रभावित भी हो रहे हैं , जन सामान्य की दिक्कतें बढ़ रही हैं। समझा जा सकता है कि कोयले के दाम आसमान छू रहे हैं ।जाहिर है आने वाला समय चिंता लेकर आएगा और इसका आम आदमी से लेकर समाज के हर वर्ग पर सीधा असर पड़ेगा।

इसके अलावा हम और आप यह बात सहज ही समझ सकते हैं कि ईंट भट्ठे बंद होने से कितने लोगों की आजीविका प्रभावित हो रही होगी। एनसीआर में लगभग 2700 ईट भटठे हैं और ईंट पाथने वाले, जलाई वाली ट्रेंड लेबर ईटों की ढुलाई करने वाले ट्रक और ट्रैक्टर चलाने वाले चालक परिचालक, मजदूरी करने वाले, जेसीबी मशीन चलाने वाले सैकड़ों लोग काम करते हैं। एक भट्ठा 15 एकड़ जमीन में लग पाता है इससे संबंधित भू स्वामियों मतलब किसानों को प्रति भट्ठा प्रतिवर्ष लगभग ₹1000000 लीज राशि के रूप में मिलते हैं।

ईट भट्ठा एसोसिएशन के प्रतिनिधि इस प्रस्ताव और सुझाव के साथ प्रदेश सरकार से बात करना चाहते हैं कि इस मामले में सकारात्मक दृष्टिकोण और व्यावहारिक समस्याओं को मध्य नजर रखते हुए उपरोक्त पॉलिसी के प्रदेश में क्रियान्वयन को स्थगित करने में किसी को भी कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी क्योंकि उपरोक्त जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है। यह समस्या जो पर्यावरण के नाम पर आ खड़ी हुई है उसे कानून के दायरे में रहकर सुलझाया जा सकेगा।यदि ग्रीन ट्रिब्यूनल के मानकों की बात करें तो हॉल में स्थापित लगभग 2700 ईट भट्ठों में से 642 ही चल पाएंगे और वह भी मात्र 4 महीने। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों और निर्देशों के बाद मतलब नियमों की अनुपालना की स्थिति में 2017 में भटठो की प्रदूषण नियंत्रण की स्थिति पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने संतोष जाहिर किया था क्योंकि व्यवहार में हाई ड्राफ्ट तकनीक अपनाने के बाद इन भटठो का एसपीएम ढाई सौ से भी कम बल्कि इससे भी आधा रहता है परंतु केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण मंत्रालय की संतुष्टि अनापत्ति के बावजूद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यह व्यवस्था की है कि एनसीआर में पूरे साल में केवल 4 महीने मतलब मार्च से जून तक ही भटठे चलाए जा सकेंगे। अभी यह भटठे चल नहीं रहे हैं। आदेशों में यहां तक कहा गया है कि मार्च में भी सभी भटठे चलाने की इजाजत नहीं होगी केवल एक तिहाई मतलब 642 ईट भट्टे ही चलाए जा सकेंगे। इसी संदर्भ में ईट भट्ठा संचालकों की पंजीकृत एसोसिएशन ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की है उसे विचार के लिए स्वीकार कर लिया गया है।

एनसीआर ईट भट्ठा एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र चौहान से बातचीत में पता चला कि पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण को लेकर नई तकनीक के तहत जो फैसला लिया गया था उसमें ईट भट्टों से निकलने वाले धुएं में एसपीएम (प्रदूषण मानक इकाई)नियंत्रित करने के लिए एक नई तकनीक अपनाने की व्यवस्था की गई थी । इसे शत प्रतिशत ईट भट्ठा संचालकों ने अक्षरशः लागू किया, इसका अनुसरण किया। इस व्यवस्था के बाद ईट भट्ठों के धूएं से निकलने वाला एसपीएम जो नेचुरल ड्राफ्ट की स्थिति में 750 तक रहता था को 250 एस पीएम तक लाने के लिए जिगजैग हाई ड्राफ्ट टेक्नोलॉजी लागू की गई थी जिसे एनसीआर के सभी भटठो ने लागू कर दिया है। इसके बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने माना है कि इससे ईट भट्ठा के धूएं से निकलने वाले प्रदूषण में 70% की कमी आई है, 20% कोयले की खपत कम हुई है और ईटों की गुणवत्ता 25% बढ़ी है । इसके बाद भी संबंधित प्रदेशों के प्रदूषण कंट्रोल कंट्रोल बोर्ड केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड आदि की संतुष्टि मतलब बिना आपत्ति के बाद भी एनजीटी ने कुछ अव्यावहारिक फैसलें लेते हुए यह पॉलिसी बना दी है कि ईट भट्टे पूरे साल में मार्च से जून तक मात्र 4 महीने चलाए जाए और कुल लगभग 2700 में से 642 को ही चलाने की इजाजत दी गई है ।

अब इस बात को भी आसानी से समझा जा सकता है कि पूरे साल चलने वाले उद्योग यदि 4 महीने ही चल पाएंगे तो कितनी व्यवहारिक दिक्कतें पेश आएंगी ।अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा विकास प्रभावित होगा बेरोजगारी की विकराल समस्या खड़ी हो जाएगी।

एक बात जो व्यावहारिक तौर पर समझने की है ।वह यह है कि राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल एक नई पॉलिसी को ईट भट्ठा संचालकों पर थोपना चाहता है वह तकनीक विदेशी और अति आधुनिकता के नाम पर करोड़ों के निवेश से चालू हो सकती है। एक तरह से इसे बड़े पूंजीपति ही ऑपरेट कर सकेंगे । नई व्यवस्था एनसीआर के मौजूदा ईट भट्ठा संचालकों के बूते से बाहर की चीज नजर आती है।मौजूदा ईट भट्ठा संचालक इतना निवेश ही नहीं कर पाएंगे। इसे भी बड़े पूंजीपतियों को लाभ देने के लिए एक षड्यंत्र कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नमूने के रूप में इस तकनीक का मॉडल पूरे देश में केवल बेंगलुरु में केवल एक जगह देखा जा सकता है। यह करोड़ों की व्यवस्था है और इस व्यवस्था के बाद जो ईट बनेगी उसकी न्यूनतम कीमत ₹12 होगी । जबकि उसी ईंट को मौजूदा भट्टों पर 5 से ₹6 में बनाकर बेचा रहा हैं

ऐसा लगता है कि नियमों के नाम पर बड़े घरानों, पूंजी पतियों को इस उद्योग में भी हस्तक्षेप करने की इजाजत देने और स्थानीय उद्यमियों को यह व्यवसाय छोड़ देने को मजबूर करने की योजना पर काम हो रहा है बेशक इससे आम आदमी की कमर टूट जाए। ऐसे में बड़े पूंजीपति ही ईंट भट्ठे चला पाएंगे और नई तकनीक के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करके ईटों का उत्पादन करेंगे तो इससे न केवल ईटों के भाव दोगुने से भी ज्यादा हो जाएंगे बल्कि इस उद्योग में सीधे तौर पर बड़े घराने मतलब बड़े पूंजीपति अपना आधिपत्य स्थापित कर लेगे। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह की आशंका आज किसान को कृषि कानूनों से हो रही है उसी आशंका को ईट भट्ठा संचालन में हो रही उठापटक से जोड़ कर देखा जा सकता हैं। इस अनियमन और अव्यावहारिकता पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ यह बात मान कर चल रहे हैं कि यूं ही हठधर्मिता बनी रही तो एनसीआर में ईट भट्ठा चलाने वाले और इस उद्योग पर निर्भर रहने वाले लोगों को अपनी आजीविका को बचाने के लिए किसानों की तरह आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ सकता है।