उमेश जोशी

 बीजेपी ने ऐलनाबाद उपचुनाव जीतने के लिए सारे जतन किए हैं और करने भी चाहिएँ। बीजेपी के प्रयास का सबसे खराब पक्ष यह है कि पार्टी ने चुनाव के लिए वो काम किया है जिसकी कोई अपेक्षा भी नहीं कर सकता था। वैसे तो कहा जाता है कि प्यार और युद्ध में सब जायज है। यदि बीजेपी इसी नीति को जायज दिखाना चाहती है तो उसे नैतिकता का बिगुल बजाना छोड़ देना चाहिए। बीजेपी ने जिस गोपाल कांडा से किनारा किया था, आज ऐलनाबाद का उपचुनाव जीतने के लिए उसी की कश्ती में बैठकर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। 

 बहुत पुरानी बात नहीं है इसलिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत सभी नेताओं को याद होगा कि 2019 के चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर गोपाल कांडा खुद समर्थन देने पहुँचे थे। लेकिन, मीडिया ने कांडा के कंडों की आग पर सत्ता की खीर पकाने की बीजेपी की कोशिशों को अनैतिक बताया था। उस शोर में बीजेपी की नींद टूटी और एलान किया कि गोपाल कांडा से दूरियाँ बना कर रखेंगे। सीधे सीधे बीजेपी ने मान लिया था कि गोपाल के थाल में सत्ता की मलाई खाना अनैतिकता है।  तब बीजेपी ने साफ़ कहा था गोपाल कांडा से कोई सहयोग नहीं लिया जाएगा।  

 गोपाल कांडा से दूरियाँ बनाए रखने की नीति स्पष्ट करने के बावजूद बीजेपी की कांडा से नजदीकियां इस कदर बढ़ गईं कि पार्टी ने अपने 17 दावेदारों को हाशिये पर धकेल कर गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को ऐलनाबाद उपचुनाव में उतार दिया। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनकड़ ने खुद बयान दिया था कि ऐलनाबाद उपचुनाव लड़ने के लिए पार्टी के 17 नेता दावेदार थे लेकिन पार्टी ने गोविंद कांडा को सबसे उपयुक्त उम्मीदवार माना है। धनकड़ से एक सीधा सा सवाल है कि पार्टी ने गोविंद कांडा में ऐसी क्या खूबी देखी जो पार्टी के 17 नेताओं में नहीं थी। धनकड़ इस सवाल का जवाब ना दें तो भी पूरा प्रदेश जानता है कि गोविंद कांडा को टिकट क्यों दिया गया है लेकिन इस सवाल का जवाब लोग धनकड़ से सुनना चाहते हैं। 

बीजेपी के लिए नैतिकता कोई मायने नहीं रखती फिर भी यदि बीजेपी नैतिकता की बात करती है तो वह उसी दिन चुनाव हार गई थी जिस दिन गोविंद कांडा को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। यह याद दिलाने की भी जरूरत नहीं है कि पार्टी के नेता जिस गोपाल कांडा को गीतिका शर्मा कांड के बाद अछूत मानने लगे थे उसी गोपाल कांडा के साथ पार्टी नेता चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं। गोपाल कांडा और उनके परिवार को सारे आरोपों से मुक्त कर दिया है। 

गोपाल कांडा के बारे में जेजेपी के नेता और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की भी राय बीजेपी के नेताओं से अलग नहीं थी। दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला कभी कहते थे- गीतिका हम शर्मिंदा हैं, तुम्हारे कातिल जिंदा हैं। आज वही अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला बदल गए हैं और गोपाल काडा के भाई गोविंद कांडा के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं। पिता-पुत्र नहीं जानते कि ऐलनाबाद का चुनाव उनके भविष्य का निर्णायक चुनाव होगा। गोविंद कांडा की विजय होती है तो दोनों भाई सत्ता की मलाई खाएंगे। जाहिर है, मलाई खाने वालों की संख्या बढ़ने से जेजेपी का हिस्सा कम हो जाएगा। उस स्थिति में दुष्यंत चौटाला का रुतबा कम होना लाजिमी है। दुष्यंत चौटाला का कद घटने से जेजेपी के रहे सहे कार्यकर्ता भी किनारा कर लेंगे। 

यदि गोविंद कांडा हार जाते हैं तो भी अगले चुनाव में जेजेपी को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।  हार की स्थिति में जेजेपी को निश्चय ही आधारहीन पार्टी मान लिया जाएगा। बीजेपी ऐसी पार्टी से समझौता क्यों करेगी जिसका आधार ही खत्म हो गया हो। कुलदीप बिश्नोई के साथ बीजेपी ने किस तरह समझौता खत्म किया था, यह बात दुष्यंत चौटाला को भी याद होगी। दोनों के बीच समझौता होगा भी, तो बीजेपी की शर्तों पर। जनाधार खो चुकी किसी भी पार्टी की अपनी शर्तें नहीं होती हैं; उसे बड़े दलों के रहम पर काम करना पड़ता है। ऐलनाबाद में हार हो या जीत, दोनों ही स्थितियों में जेजेपी में ज़लज़ला आएगा और उसकी जमीन धँस जाएगी। 

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