भारतीय संस्कृति का विकास वैदिक परम्परा से हुआ है : प्रो. प्रफुल्ल कुमार मिश्र।
जयराम विद्यापीठ में प्रारम्भ हुआ तीन दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक सम्मेलन।
देश के विभिन्न क्षेत्र से विश्वविद्यालयों के कुलपति व संस्कृत एवं वैदिक विद्वानों का आगमन हुआ।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 25 अक्टूबर :- धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर तट पर स्थित जयराम विद्यापीठ में सोमवार से तीन दिवसिय राष्ट्रीय वैदिक सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। संत महापुरुषों के सान्निध्य में राष्ट्रीय वैदिक सम्मेलन का शुभारम्भ वैदिक मंगलाचरण के साथ हुआ। उपरान्त ऋग्वेद की शाकल शाखा, सामवेद की कौथुम, सामवेद की राणायनीय, शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन व काण्व, अथर्ववेद की शौनक व पैप्पलाद, कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा का सस्वर वेद पाठ प्रकांड वैदिक विद्वानों द्वारा किया गया।

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए देशभर में संचालित जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि यह अद्भुत अवसर है कि भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से उत्पन्न हुई पावन गीता की जन्मस्थली एवं तीर्थों की संगम स्थली कुरुक्षेत्र में देश के महान वेदों के ज्ञाता एवं प्रकांड वेद विद्वानों का आगमन हुआ है। जयराम विद्यापीठ में मानव कल्याण के लिए वेदों का मंथन एवं साक्षात्कार होगा।

उन्होंने कहा कि वेद से ज्ञान, वेद से व्याकरण, वेद से भूगोल, वेद से ही ज्योतिष है। वेद ज्ञान का रूप है, मनुष्य को सांसारिक यात्रा करने के लिए वेदों का ज्ञान होना आवश्यक है। कुरुक्षेत्र तो वैसे भी ऋषि-मुनियों की तपस्थली है। इसी धरती पर तीन दिन तक देश के सौ वैदिक विद्वानों द्वारा ज्ञान दिया जाएगा। ब्रह्मचारी ने कहा कि जयराम आश्रम संस्कृत, संस्कृति, संस्कार के संरक्षण की संस्कृति है। वैदिक संस्कृति का संरक्षण हमारी संस्था की नींव है। इसके लिए जयराम आश्रम हर समय तत्परता से समर्पित है। आगे वैदिक गुरुकुल की अभिवृद्धि के लिए संस्था कार्य कर रही है। सभी भारतीय लोगों को मिलकर भारतीय वैदिक संस्कृति के अभ्युदय का प्रयास करना चाहिए। यह वैदिक सम्मेलन 27 अक्तूबर तक चलेगा।

इस सम्मेलन में देश विभिन्न क्षेत्र से विश्वविद्यालयों के कुलपति व संस्कृत एवं वैदिक विद्वानों का आगमन हुआ है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन के अध्यक्ष प्रो. प्रफुल्ल कुमार मिश्र ने वैदिक संस्कृति को आचरण की संस्कृति बताया और कहा कि हम सभी को वेदमय जीवन जीना चाहिए, यही हमारी परंपरा है। भारतीय संस्कृति का विकास वैदिक परम्परा से हुआ है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल आधार वेद हैं, जो अनादि, नित्य एवं अपौरुषेय हैं, ये ब्रह्मा की वाणी है, इसका प्राकट्य हुआ है। वैदिक संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिनः की संस्कृति है, यह भारतीय सुसंस्कार एवं चरित्र से ओतप्रोत है।

उन्होंने बताया वेद पाठ करने से न केवल वाणी पवित्र होती है बल्कि सम्पूर्ण जीवन पवित्र होता है। आज गणना पद्धति से पूरी दुनिया अभिभूत है, वह वेदों की देन है, इसके लिए भारतीय ऋषियों की अहम भूमिका है। प्रो. पाण्डेय ने वेद पाठ की आठ विकृतियों के बारे में भी अवगत कराया। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक डा. दिनेश शास्त्री ने कहा कि गुरुकुलों को आर्थिक सहायता के लिए प्रयास किया जा रहा है, जो अति शीघ्र साकार हो रहा है। हरियाणा संस्कृत अकादमी वैदिक पाठशाला अलग से चलाने के लिए प्रयास करेगा। कार्यक्रम का संयोजन एवं मंच संचालन प्रो. शिव शंकर मिश्र ने किया।

इस अवसर पर देश विशिष्ट विद्वानों सहित शहर के गणमान्यों की उपस्थिति रही, जिसमें प्रो. राजेश्वर मिश्र, प्रो. रामराज उपाध्याय, प्रो. रामानुज उपाध्याय, प्रो. राम सालाही द्विवेदी, प्रो. सुरेन्द्र मोहन मिश्र, प्रो. हनुमान मिश्र, डा. अरुण कुमार मिश्र, टी.के. शर्मा सेवानिवृत आयुक्त, एस एन गुप्ता, राजेश सिंगला, प्राचार्य डा. रणवीर भारद्वाज इत्यादि भी मौजूद रहे।

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