कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों में है बड़ी समानता, गोबिंद कांडा ने भाजपा में इन्टरी के साथ टिकट लेकर रचा इतिहास,
ओम प्रकाश चौटाला की मौजूदगी बदलेगी चुनावी समीकरण

ईश्वर धामु

चंडीगढ़।  ऐलनाबाद के उप चुनाव में इस बार 190 मतदान केंद्रों के माध्यम से एक लाख 85 हजार 873 मतदाता प्रत्याशियों के भाज्य का फैसला करेंगे। इनमें 98 हजार 930 पुरुष मतदाता, 86 हजार 639 महिला मतदाता तथा 304 सर्विस वोटर शामिल हैं। ऐलनाबाद का उप चुनाव उस समय चर्चाओं में आया, तग हलोपा के सुप्रीमो गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा ने भाजपा में इन्टरी मारी और पार्टी की टिकट भी ले आए। जबकि टिकट के लिए 17 से अधिक पुराने भाजपाईयों की लम्बी लाइन थी। इस लाइन में कई ऐसे भाजपाई थे, जिनको पूरी उम्मीद थी कि पार्टी हर हाल में उन्ही को प्रत्याशी बनायेगी। परन्तु जो हुआ वो भाजपा में एक चमत्कार से कम भी नहीं था।

अब तो राजनीति में कहा जाने लगा है कि भाजपा ने अपने सिद्धांतों और नियमों को लचीला बना लिया है। अनुशासन और सिद्धांतवादी भाजपा भी अब तो कांग्रेस के पद चिंहों पर चलने लगी है। लेकिन चर्चाकारों का कहना है कि ऐलनाबाद केे लिए भाजपा के पास कोई सशक्त गैर-जाट प्रत्याशी नहीं था। बिना खोजबिन के भाजपा को गोबिंद कांडा के रूप में पार्टी को प्रत्याशाी मिल गया तो पार्टी आलाकमान ने भी नियमों में ढील देने की अनुमति दे डाली।

हालांकि दो साल पहले भाजपा चाहती तो हलोपा सुप्रीमो विधायक गोपाल कांडा भी भाजपा में आ सकते थे। परन्तु उनकी इस प्रक्रिया के प्रारम्भ में ही भाजपा की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने सख्त विरोध कर दिया। पर करीब दो साल की राजनैतिक यात्रा के बाद भाजपा में गोबिंद कांडा के रूप में गोपाल कांडा की परोक्ष इन्टरी भाजपा में हो ही गई। भाजपा जानती थी कि गोबिंद कांडा को जीताने के लिए उनके भाई गोपाल कांडा अपना पूरा जोर लगा देंगे, जिसका भाजपा को अतिरिक्त लाभ मिलेगा।

कमोबेशी यही राजनैतिक हालात कांग्रेस प्रत्याशी पवन बेनीवाल के साथ है। उनकी भी कांग्रेस में नई इन्टरी है और टिकट पाने में कामयाब भी रहे। कांग्रेस प्रत्याशी और भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा में एक समानता यह भी है कि दोनों ही पिछले चुनाव में हार कर दूसरे स्थान पर रहे थे। इतना ही नहीं दोनों प्रत्याशियों के चौटाला परिवार से घनिष्ठ सम्बंध भी रहे हैं। अब इनेलो, कांग्रेस और भाजपा ने उप चुनाव में तिकोना मुकाबला बना दिया। इस बार इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला फिर से चुनाव मैदान मेें हैंं। उन्होने किसान बिलों के मुद्दों पर विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। और इसी कारण ऐलनाबाद का उप चुनाव हो रहा है।

निसंदेह ऐलनाबाद देवीलाल परिवार का गढ़ रहा है। परन्तु यहां उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। इनेलो के लिए इस उप चुनाव में राजनैतिक हालात बदले हुए हैं। 2019 के चुनाव में इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला जेल में थे। परन्तु इस बार वेें रिहा होकर बाहर है और सुदृड़ता से चुनाववी प्रचार में जुट गए हैं। वैसे भाी अभी से चुनाव के बारे में कहना असामायिक होगा पर इस बार कोई भी पार्टी जीत का मजबूती से दावा नहीं कर सकती है।

इस उप चुनाव का परिणाम चाहे जा रहे, पर एक बात निश्चित है कि चुनाव परिणाम हरियाणा की राजनीति को सीधे रूप से प्रभावित करेगा। इस उप चुनाव में अगर विपक्ष की जीत होती है तो सभी विपक्षी दल मिल कर सरकार को घेरने का काम करेंगे। सरकार पर विपक्ष जनाधार खोने का सीधा आरोप लगायेगा। इतना ही नहीं भाजपा में भी सीएम मनोहरलाल विरोधी लॉबी सक्रिय हो जायेगी और हार का ठिकरा आलाकमान के सामने मुख्यमंत्री के नाम फोड़़ेंगे।

ऐसे में केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के समर्थक सक्रिए होकर प्रदेश का नेतृत्व बदलने का मांग उठा सकते हैं। वैसे आलाकमान ने पहले ही केंद्रीय मंत्री राव इंदरजीत के समानान्तर भूपेन्द्र यादव को स्थापित करने की शुरूआत की ही हुई है। अगर भाजपा का प्रत्याशी उप चुनाव में जीत जाता है तो निसंदेह दिल्ली दरबार मेें मुख्यमंत्री मनोहरलाल और प्रदेश प्रधान ओम प्रकााश धनखड़ का राजनैतिक कद बढ़ जायेगा।