पूजन से समस्त पापों-विघ्नों का होता है नाश, शनि के दुष्प्रभाव से मिलती है मुक्ति

गुरुग्राम: श्री माता शीतला देवी मंदिर श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संघ गुरुग्राम के अध्यक्ष पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि शारदीय नवरात्र की सप्तमी, मंगलवार को मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि की आराधना होगी। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार देवी दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है। माता के शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है और सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है व इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। माता की नासिका के श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वलाएं निकलती रहती हैं एवं वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं तथा दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग धारण किए हुए हैं। मां कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है।

ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का खुलने लगता है द्वार

पंडित अमर चंद ने कहा कि दुर्गा सप्तमी के दिन साधक का मन ‘सहस्त्रार चक्र’ में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूरी तरह से माँ कालरात्रि के स्वरुप में स्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है एवं उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। मां कालरात्रि के स्वरुप विग्रह को अपने ह्रदय में स्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए एवं मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। यह शुभंकरी देवी हैं इनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती।

नकारात्मक शक्तियों का होता है अंत

पंडित अमर चंद ने कहा कि माता कालरात्रि अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं एवं ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते अतः हमें निरंतर इनका स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिए। सभी व्याधियों और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए माँ कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी है।

मां कालरात्रि की पूजा विधि

कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष दीपक जलाकर रोली, अक्षत, फल, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। देवी को लाल पुष्प बहुत प्रिय है इसलिए पूजन में गुड़हल अथवा गुलाब का पुष्प अर्पित करने से माता अति प्रसन्न होती हैं। मां काली के ध्यान मंत्र का उच्चारण करें, माता को गुड़ का भोग लगाएं तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए। माता कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए इस ध्यान मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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