इस साल तृतीया और चतुर्थी तिथि साथ पड़ने से घट रही है एक नवरात्रि

अशोक कुमार कौशिक 

मां दुर्गा की उपासना का पर्व नवरात्रि आज 7 अक्टूबर 2021 से आरंभ हो रहे हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में मां धरती पर अपने भक्तों के दुख दूर करने आती है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस बार 7 अक्टूबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर विजय दशमी को समाप्त होगा। मां दुर्गा के सभी नौ दिन और नौ रूपों को बेहद शुभ माना गया है। इस बार मां डोली में सवार होके आएंगी। बता दें। शारदीय नवरात्रि चित्रा नक्षत्र में प्रारंभ हो रहे हैं।

इस बार 9 दिन नहीं 8 दिन के होंगे नवरात्रि 

इस बार नवरात्रि 9 दिनों  तक नहीं 8 दिनों तक चलेंगे। इस बार दो तिथियां एक साथ पड़ने के कारण एक नवरात्रि घट रहा है और नवरात्रि 8 दिन तक चलेंगे। नवरात्रि में तृतीया और चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ रही है। पंचांग के अनुसार 9 अक्टूबर, शनिवार को तृतीया तिथि सुबह 07:48 मिनट तक रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि शुरू हो जाएगी, जो कि 10 अक्टूबर को सुबह 5 बजे तक रहेगी।

शारदीय नवरात्रि की तिथियां 

पहला दिन- मां शैलपुत्री की पूजा (07 अक्टूबर) दूसरा दिन – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा (08 अक्टूबर) तीसरा दिन- मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा (09 अक्टूबर)  चौथा दिन- मां स्कंदमाता की पूजा (10 अक्टूबर) पांचवां दिन – मां कात्यायनी की पूजा (11अक्टूबर) छठवां दिन- मां कालरात्रि की पूजा (12अक्टूबर) सातवां दिन- मां महागौरी की पूजा (13अक्टूबर) आठवां दिन- मां सिद्धिदात्री की पूजा (14अक्टूबर)दशहरा (विजयादशमी) 15 अक्टूबर

कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त

सात अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि दिन में तीन बजकर 28 मिनट तक है। ऐसे में सूर्योदय से प्रतिपदा तीन बजकर 28 मिनट के भीतर कभी भी कलश स्थापना की जा सकती है। इसके लिए प्रात: छह बजकर 10 मिनट से छह बजकर 40 मिनट तक ( कन्या लग्न-स्वभाव लग्न में)। पुन: 11 बजकर 14 मिनट से दिन में एक-एक बजकर 19 मिनट तक (धनु लग्न-द्विस्भाव लग्न)। इसके साथ ही अभिजित मुहुर्त ( सुबह 11 बजकर 17 मिनट से-12 बजकर 23 मिनट तक)है। ये तीनों मुहूर्त कलश स्थापना के लिए प्रशस्त हैं।

इस दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्‍थापना करने से विशेष फल प्राप्‍त होता है। इस दिन लोग गंगा और अन्‍य नदियों से जल लेकर कलश स्‍थापित करते हैं।

शक्ति की देवी मां दुर्गा की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र इस वर्ष सात अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इस वर्ष षष्ठी तिथि का क्षय होने से नवरात्र आठ ही दिन का रहेगा। यह सात अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होगा। 15 अक्टूबर को विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व को नवरात्र इसलिए कहते हैं, क्योंकि ‘नवानां रात्रीणां समाहार:’, इसमें नौ तिथियों की नौ रात्रियां होती हैं। अत: प्राय: नौ दिन का नवरात्र होता है। इस वर्ष षष्ठी तिथि की हानि होने के कारण यह पर्व आठ दिन का ही मनाया जायेगा।

पंचम और छठे रूप की पूजा एक ही दिन

देवी के पंञ्चम रूप स्कन्दमाता तथा षष्ठ रूप कात्यायनी का पूजन एक ही दिन (11अक्टूबर ) किया जायेगा। अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर को किया जायेगा।’कलौ चंडीविनायकौ’ अर्थात कलियुग में चण्डी (दुर्गा जी) एवं विनायक (गणेश जी) की पूजा विशेष फलदायी होती है। इसीलिए उत्तर भारत में नवरात्र के अवसर पर देवीजी की पूजा तथा दक्षिण भारत में गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेशजी की पूजा विशेष रूप से आयोजित होती है।

हाथी पर माता के प्रस्थान से आती सुख-समृद्धि

प्रतिपदा के अनुसार माता का आगमन डोली पर हो रहा है। सप्तमी तिथि के अनुसार इस बार माता का आगमन घोड़े पर हो रहा है। यह सामान्य फलदायक है, लेकिन दशमी शुक्रवार को होने से माता का प्रस्थान हाथी पर हो रहा है, जो शुभ फलदायक रहेगा। यह समस्त व्यक्तियों में सुख-समृद्धि और सुवृष्टि का सूचक है।

नवरात्र में ऐसे करें मां की पूजा-अर्चना

नवरात्र के दिनों में प्रतिदिन दुर्गाजी की आराधना अत्यंत फलदायी सिद्ध होती है। इन दिनों में सामर्थ्‍य के अनुसार व्रत करना चाहिए। मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करें। मां दुर्गा की एक चित्र या मूर्ति स्थापित करें और ‘नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:, नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्’ ध्यान करें। 

प्रतिदिन सुबह शाम घी का दीपक जलायें। फूलमाला चढ़ावें, धूपबत्ती दिखावे तथा फल और मिठाई का भोग लगावें। अंत में आरती करें। जो भक्त पाठ नहीं कर पा रहे है या हिंदी में कवच अर्गला व कीलक नहीं पढ़ पा रहे हैं, वे श्रद्धालु सिर्फ अष्टमी या नवमी को मां के मंदिर या पूजा पंडाल में भोग लगा दें। प्रतिदिन मां की प्रतिमा को पास घी का दीपक चलाकर फूलमाला चढ़ावें एवं धूपबती दिखकर आरती करें। यह कार्य श्रद्धा से करने से दुर्गासप्तशती के पाठ करने का फल मिलता है।

नवरात्र के नौ दिन मां को चढ़ाएं यह नौ फूल, होगी मनोकामना पूरी 

नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व है. हिंदू धर्म में मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना गया है. नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है. मान्यता है कि नवरात्रि पर मां दुर्गा की विधि पूर्वक पूजा करने से जीवन में सुख समृद्धि आती है और भक्त की सारी मनोकामना पूरी होती हैं. नवरात्रि में देवी मां के चरणों में किसी भी तरह का फूल चढ़ाने की जगह, अगर आप उन फूलों को देवी मां को अर्पित करेंगे, जो उनको बेहद प्रिय है. तो चलिए जानते हैं कि माता को नवरात्रि के नौ दिन कौन से फूल चढ़ाने चाहिए. 

पहले दिननवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना की जाती है. मां शैलपुत्री को गुड़हल का लाल फूल और सफेद कनेर का फूल बहुत पसंद है. इसलिए पहले दिन मां को गुड़हल या कनेर का फूल अर्पित करें.

दूसरे दिननवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी को गुलदाउदी का फूल और वटवृक्ष के फूल काफी पसंद हैं. इसलिए मां के चरणों में इन फूलों को अर्पित करें. इससे घर-परिवार में खुशहाली आती है.

तीसरे दिननवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप को पूजा जाता है. इस दिन आप मां चंद्रघंटा को कमल का फूल और शंखपुष्पी का फूल अर्पित कर सकते हैं. ये फूल मां को काफी पसंद हैं. कहा जाता है इससे जीवन में जल्दी सफलता मिलती है.

चौथे दिननवरात्रि का चौथा दिन होता है मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप के नाम. इस दिन मां की पसंद के अनुसार उनको चमेली का फूल या पीले रंग का कोई भी फूल चढ़ाना चाहिए. इससे मां अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देती हैं.

पांचवें दिननवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है. मां को पीले रंग के फूल बहुत पसंद हैं इसलिए उनको पीले रंग के कोई भी फूल अर्पित करने से मां खुश होती हैं और सुख-सम्पन्नता का आशीर्वाद देती हैं.

छठे दिननवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की आराधना होती है. मां कात्यायनी को गेंदे का फूल और बेर के पेड़ का फूल काफी भाता है. इसलिए उनके चरणों में इन फूलों को चढ़ाने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

सातवें दिननवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. मां कालरात्रि को नीले रंग का कृष्ण कमल का फूल बहुत अधिक प्रिय है. इसलिए आप उनको ये फूल और इसे न मिलने की स्थिति में कोई भी नीला फूल चढ़ा सकते हैं.

आठवें दिननवरात्रि के आठवें दिन पूजा जाता है मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप को. जिनको मोगरे का फूल खासतौर पर काफी पसंद है. इसलिए मां के चरणों में इस फूल को अर्पित करें. इससे मां की कृपा घर-परिवार पर बनी रहती है.

नौवें दिननवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की आराधना की जाती है. मां को चंपा और गुड़हल का फूल बेहद प्रिय है. मां सिद्धिदात्री के चरणों में इस फूल को चढ़ाने से मां प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं।

शक्ति-पूजा का अर्थ

प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म तीन मुख्य संप्रदायों में बंटा रहा है  – विष्णु का उपासक वैष्णव, शिव का उपासक शैव और शक्ति का उपासक शाक्त संप्रदाय। दुनिया के सभी दूसरे धर्मों की तरह वैष्णव और शैव  संप्रदाय जहां सृष्टि की सर्वोच्च शक्ति पुरुष को मानते हैं, शाक्तों की दृष्टि में सृष्टि  की सर्वोच्च शक्ति स्त्री शक्ति है। देवी को ईश्वर के रूप में पूजने वाला शाक्त धर्म दुनिया का  संभवतः एकमात्र धर्म है। 

स्त्री-शक्ति की आराधना की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद है। ज्यादातर लोग शक्ति पूजा की परंपरा की शुरुआत इतिहास के गुप्त काल से मानते हैं जब ‘देवी महात्मय’ नाम के ग्रंथ की रचना हुई थी। दसवीं से बारहवीं सदी के बीच ‘देवी भागवत पुराण’ की रचना के बाद शाक्त परंपरा उत्कर्ष पर पहुंची थी। सच यह है कि स्त्री-शक्ति की पूजा की जड़ें  प्रागैतिहासिक काल में ही मौजूद हैं।

 सिंधु-सरस्वती घाटी की सभ्यता में मातृदेवी की उपासना का प्रचलन था। खुदाई में उस काल की देवी की कई मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ऋग्वेद के दसवें मंडल में भी वाक्शक्ति की प्रशंसा में एक देवीसूक्त मिलता है, जिसमें वाक्शक्ति कहती है – मैं ही समस्त जगत की अधीश्वरी  तथा देवताओं में प्रधान हूं। मैं सभी भूतों में  स्थित हूं। देवगण जो भी कार्य करते हैं वह मेरे लिये ही करते हैं। वेदों की  कई अन्य ऋचाओं में अदिति का मातृशक्ति के रूप में वर्णन है जो माता, पिता,  देवगण, पंचजन, भूत, भविष्य सब कुछ हैं। कालांतर में शक्ति पूजा की इस प्राचीन परंपरा के साथ असंख्य मिथक और कर्मकांड जुड़ते चले गए।

योगियों की शक्ति उपासना की पद्धति थोड़ी अलग है। वे शक्ति का अस्तित्व किसी दूसरी दुनिया या आयाम में नहीं, मानव शरीर के भीतर ही मानते हैं।  रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में कुंडलिनी शक्ति के रूप में। विभिन्न यौगिक क्रियाओं और ध्यान के माध्यम से इस शक्ति की ऊर्ध्व यात्रा शुरू कराई जाती है। जब यह शक्ति शरीर के छह चक्रों का भेदन करती हुई मष्तिष्क में स्थित सातवें चक्र में पहुंच जाती है तो योगी को असीम शक्ति और परमानंद की अनुभूति होती है।

 स्त्री- शक्ति की उपासना के नौ-दिवसीय आयोजन नवरात्रि स्त्री-शक्ति की पूजा की यह गौरवशाली परंपरा स्त्रियों के प्रति सम्मान के अपने मूल उद्देश्य से भटककर महज कर्मकांड बनकर न रह जाए !

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