रेवाड़ी – 3 अक्टूबर 2021 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही नेे सरसों के तेल की कीमत 210 रूपये प्रति किलोग्राम होने पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि इससे गरीबों, आमजनों, दिहाडीदार व खेतिहर मजदूरों व नौकरीपेशा लोगों के लिए अपना रसोई खर्च चलाना बहुत दूभर हो गया। विद्रोही ने कहा कि एक ओर किसानों को अपनी फसलों को उचित भाव मिलना तो दूर घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नही मिलता है, वहीं किसान के घर से फसल बाजार में बिकने के बाद खाद्य पदार्थो, खाद्य तेल का भाव आसमान छूने लगता है जिससे आमजनों को अपनी सीमित कमाई से रसोई खर्च चलाना बहुत दूभर हो चुका है। एक ओर खेतिहर मजदूरों, दिहाडीदार मजदूरों, बेरोजगारों को काम नही मिल रहा है, वहीं लोगों की लगी-लगाई नौकरियां छूट रही है। आर्थिक बदहाली के चलते नौकरीपेशा लोगों की तनख्वाह नही बढ़ रही है। दो वर्ष से निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग पुरानी तनख्वाह पर काम करने को मजबूर है। 

ऐसी स्थिति में विद्रोही ने कहा कि खाद्य पदार्थो, सब्जियों, रसोई गैस, खाद्य तेल की बढती कीमते आमजन के जी का जंजाल बन चुकी है। सरसों का तेल हर साधारण, गरीब, मेहनतकश व नौकरीपेशा परिवार की रसोई का अनिवार्य अंग है। जब सरसों का तेल 210 रूपये प्रति किलोग्राम हो तो सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि आमजन की हालत क्या हो रही है। हरियाणा में राशन कार्ड पर गरीबों को जो सस्ता सरसों का तेल मिलता था, वह भी बंद हो चुका है। सरसों का तेल न मिलने की एवज में हरियाणा सरकार ने जो मासिक धन देने की घोषणा की थी, वह अभी तक हवा-हवाई ही बनी हुई है। पैट्रोल-डीजल के बढते दामों से आमजन का मासिक बजट लडखड़ा चुका है।

पिछले दो सालों में तेल के बढ़े दामों के कारण पैट्रोल उपभोक्ताओं का 42 प्रतिशत व डीजल उपभोक्ताओं का 38 प्रतिशत खर्च बढ चुका है। वहीं ट्रक भाडा पिछले एक साल में 15 प्रतिशत बढ़ गया व आगे 10 प्रतिशत और बढऩे की संभावना है जिसके चलते खाद्य पदार्थ, फल-सब्जियां, दूध, दही, खाद्य तेलों का भाव इस कदर बढ़ गया कि आम आदमी को अपनी रसोई का खर्चा चलाना बहुत मुश्किल हो गया है। जबकि आर्थिक के संकट के चलते पिछले दो सालों से नौकरीपेशा व आमजनों की आय क्या जस की तस है या घट गई या लोग बेरोजगार हो गए। खाद्य पदार्थो सहित हर जीवन उपयोगी वास्तु के भाव बढ़ चुके है, ऊपर से सांप की आंत की तरह रसोई गैस सिलेंडर के भाव मोदी सरकार जब चाहे तब बढ़ाती रहती है। सवाल उठतो है कि चौतरफा महंगाई की मार से आमजन जीये तो जीये कैसे? सरसों के तेल के बिना किसी भी घर की रसोई चलना असंभव है। ऐसी स्थिति में विद्रोही ने सरकार से मांग की कि हर राशनकार्ड पर सरकार हर माह न्यूनतम दो किलोग्राम सरसों का तेल 100 रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से दे ताकि कम से कम आमजन अपना भोजन को पकाकर खा सके। 

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