अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी – विश्व में हिंदी की स्थिति

अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम इकाई ने किया आयोजन
अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वानों ने दी कार्यक्रम को ऊँचाई

गुरुग्राम – अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम इकाई के तत्त्वावधान में अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन रविवार 26 सितंबर को प्रातः 11 बजे किया गया। गोष्ठी का विषय था ‘विश्व में हिंदी की स्थिति’। गोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान वक्तागण के रूप में उपस्थित थे। इस गोष्ठी की अध्यक्षता अनेक पुस्तकों के लेखक, सृजनात्मक समझ रखने वाले बल्गारिया से प्रो. आनंद वर्धन शर्मा ने की जबकि विशिष्ट वक्ता के रूप में सिंगापुर से डॉ संध्या सिंह, आस्ट्रेलिया से रेखा राजवंशी, उज़्बेकिस्तान से नीलूफर खोजाएवा ने अपने वक्तव्यों से कार्यक्रम को एक ऊँचाई दी।

अ. भा. सा. परिषद गुरुग्राम इकाई की महामंत्री मोनिका शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

सर्वप्रथम अ. भा. सा. परिषद के प्रांतीय महामंत्री डॉ योगेश वासिष्ठ ने विषय प्रस्तावना में कहा कि किसी भाषा की संस्कृति अपने भाषा में ही होती है। अतः भारत के प्रति आकर्षित विदेशी हिंदी के माध्यम से ही भारतीयता को जान सकते हैं। 1975 से अब तक 11 विश्व हिंदी सम्मेलन हुए हैं, जिनमें से 8 भारत से बाहर दूसरे देशों में हुए हैं। मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय बना है, भारत से बाहर 200 से अधिक विश्वविद्यालयों व सांस्कृतिक केन्द्रों में हिन्दी शिक्षण कार्य हो रहा है, विदेशों में अनेक हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। भारत सरकार द्वारा अपने दूतावासों के माध्यम से प्रत्येक 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस का सभी देशों में आयोजन हो रहा है, अनेक स्वयंसेवी संस्थाएँ भी इसमें सहभागी बन रही हैं, जो हिंदी की व्यापकता की परिचायक हैं।

अ. भा. सा. परिषद गुरुग्राम इकाई की अध्यक्षा प्रो कुमुद शर्मा ने कहा हिंदी में संजीवनी शक्ति है। पूरे विश्व में आज हिंदी की गूँज सुनाई देती है। उन्होंने प्रभावशाली ढंग से आमंत्रित अतिथिगण का संक्षिप्त परिचय देते हुए प्रस्तोता की भूमिका बखूबी निभाई।

सिंगापुर से डॉ संध्या सिंह ने कहा कि हिंदी को सबसे पहली वैज्ञानिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। हिंदी सिर्फ भाषा नहीं बल्कि संस्कृति की संप्रेषक और संवाहक भी है। उन्होंने बड़े रोचकपूर्ण ढंग से विविध आयामों का विस्तार से विश्लेषण करते हुए कहा कि हिंदी संवाद, सीखने, साहित्य सृजन, संस्कृति, संगीत, शोध, अनुवाद और योग की भाषा है।

आस्ट्रेलिया में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध रेखा राजवंशी ने कहा यद्यपि ऑस्ट्रेलिया में हिंदी के लिए उतनी सुविधा उपलब्ध नहीं है, जितनी अन्य भाषाओं के लिए लेकिन भाषा के विस्तार में तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। नीलूफर खोजाएवा ने अपने उद्बोधन में कहा कि उज्बेकिस्तान के लोग भाषा न जानते हुए भी हिंदी फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति, संगीत और कलाकारों से बखूबी परिचित हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी की स्थिति अपने देश मे अच्छी होगी तभी विदेश में स्थिति अच्छी हो सकती है।

अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. आनंद वर्धन ने कहा अलग-अलग समय क्षेत्रों से एक साथ बैठकर हम चर्चा कर रहे हैं। विश्व में हिंदी की स्थिति कुछ ऐसी ही है। ये भाषा की ताकत है कि जिस तरह बोला जाए, वैसे ही लिखा जाए। विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं मे हिंदी भी शुमार है, यह महत्त्वपूर्ण बात है। वेशभूषा व परिधान में भी भारतीयता के प्रति आग्रह और आकर्षण है। लगभग 200 देशों में आज हिंदी ने पाँव पसारे हैं।

इकाई महामन्त्री मोनिका शर्मा ने विश्व में हिंदी की स्पष्ट तस्वीर रखने एवं सारगर्भित उदबोधन के लिए आमंत्रित अतिथिगण एवं धैर्यपूर्वक विद्वानों को सुनने के लिए श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर अमेरिका से मृदुला मित्रा , पराशर व इंग्लैंड से शैल अग्रवाल सहित संस्था के प्रांतीय मार्गदर्शक डॉ. शिव कुमार खंडेलवाल, हरीन्द्र यादव, नवरत्न, मंजु मानव, नरेंद्र शर्मा खामोश, त्रिलोक कौशिक, विदु कालड़ा, शकुन्तला मित्तल, कृष्णलता यादव, शशांक मोहन शर्मा, अनिल श्रीवास्तव, प्रो मीनाक्षी पांडेय, अंशु यादव, नेहा वासिष्ठ, दीपमाला, प्रदीप तिवारी सविता जैमिनी, साक्षी सहित गुरुग्राम के कई साहित्य प्रेमियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की ।

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