कल चौधरी वीरेंद्र सिंह ने इनैलो का मंच सांझा कर सबको चौका दिया।
अपने भाषण में उन्होंने बिना नाम लिये बीजेपी पर हमला भी किया।

गुरुग्राम 26 सितंबर। आखिर क्या वजह है, कि वीरेंद्र सिंह को इनैलो की रैली में जाना पड़ा, जबकि दूसरे राज्यों के कई नेताओं ने इस रैली से दूरी बना कर रखी। जबकि निमंत्रण तो वह उन्हें भी दिया गया। राकेश टिकैत, जयंत चौधरी, मुलायम सिंह यादव, पूर्वब प्रधानमंत्री एच डी देवोगौड़ा।

वीरेंद्र सिंह ऐसे नेता है, जो भी कहना होता है, मुह पर कह देते है। उनकी छवि एक दुबके हुए नेता की नहीं है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा से तंग होकर ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ी थी।। चौधरी साहब बीजेपी में तो शामिल हो गए लेकिन उनका सपना अधूरा ही रह गया। चौधरी साहब का दूसरा सपना (अपने बेटे को मंत्री बनाने का) भी पूरा होता नहीं दिख रहा।

किसान आंदोलन से बीजेपी को जाट बैल्ट में नुकसान होना तय है। वीरेंद्र सिंह को यही डर है कि अगले चुनाव में जहाँ उन्हें उचाना विधानसभा में दिक्कत होगी वही बेटे को भी संसद पहुंचने में बाधाएं है। उचाना से दुष्यंत विधायक है और वो सरकार में उप मुख्यमंत्री है। अगर बीजेपी और जेजेपी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ते है, तो वीरेंद्र सिंह को उचाना सीट छोड़नी पड़ेगी।

सरकार विरोधी लहर में वीरेंद्र सिंह बीजेपी छोड़ भी सकते है। इनैलो का मंच सांझा करने का मतलब यही है, कि वो भविष्य में दुष्यंत के लिए खिलाफ इनैलो से मदद चाहते है। ओम प्रकाश चौटाला को भी दुष्यंत को रोकने के लिए लिए मजबूत प्रत्याशी चाहिए।

वीरेंद्र सिंह ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले है। लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।

लेकिन इतना तो वर्तमान हालातो को देखकर लग रहा हैं बीजेपी ओर जेजेपी के लिए आने वाला समय मुश्किलों भरा होगा जिसका सीधा फायदा कांग्रेस और इनेलो को होना हैं जहां इनेलो जाट वोट बैंक को आधार मानकर भविष्य की राजनीति में दोबारा स्थापित होना चाहती हैं वही कांग्रेस सभी जातियो के उत्थान के लिए समीकरण बनाकर चल रही हैं

ओर इसी आधार पर कुछ दिनों में जारी होने वाली संगठन की लिस्ट में देखने को मिलेगा जिसमे सभी जातियो का संतुलन बनाकर जारी किया जाने की संभावना बनी हुई हैं

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