-गुरुग्राम में तीन दिवसीय दिव्य गीता सत्संग का तीसरा एवं अंतिम दिन

गुरुग्राम। गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि भगवान को सारथी बनाकर जीवन की महाभारत में चलते रहो। संघर्ष सबके जीवन में हैं और रहेंगे। महाभारत लगातार सबके साथ हो रही है। कहीं अंदर वृतियों की कहीं बाहर अनुकूलता, प्रतिकूलता की महाभारत होती है। भगवत गीता यही मूल मंत्र है कि संघर्षों में घबराएं नहीं। यह बात उन्होंने गुरुवार को यहां सेक्टर-4 स्थित वैश्य समाज धर्मशाला में दिव्य गीता सत्संग के अंतिम दिन कही।

स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने आगे कहा कि हमारे संघर्ष हम पर इतने हावी ना हो जाएं कि हम अपने कर्तव्य पथ से भटक जाएं। सबको तनाव हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने देखा था कि भविष्य में भौतिकवाद का जितना विस्तार बढ़ेगा, उतने तनाव, दबाव व दुर्भाव बढ़ते जाएंगे। वह आज दिखाई भी दे रहा है। पहले छोटे मकान होते थे बड़े परिवार होते थे। कम साधनों में भी शांति थी। आज सब कुछ होते हुए अशांति, तनाव बढ़ता जा रहा है। ऐसी ही स्थितियों में भगवत गीता उपचार का मार्ग दिखाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने केवल अर्जुन की नब्ज नहीं देखी, बल्कि पूरे संसार की भविष्य की देखी। गीता का संदेश उपचार भविष्य की सही नब्ज देखकर किया हुआ सही उपचार है। उन्होंने कहा कि उपदेश नहीं उपचार है गीता, मानवता का श्रृंगार है गीता।

उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को लगता है भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता न सुनाई होती तो महाभारत ना होती। ऐसे प्रश्नों को कटाक्ष के रूप में भी लोग लेते हैं। कुछ तर्क-कुतर्क का रूप देकर गौरव महसूस करते हैं। उन्हें केवल कटाक्ष ही करना है। चिंतन की दृष्टि से श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को देखें तो हर समस्या का समाधान निकलता है।भगवत गीता को उदार भाव से देखें तो हर बात का समाधान मिलेगी। हर शंका का समाधान करती है भगवत गीता। महाराज श्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कई स्तरों पर महाभारत का युद्ध टालने के प्रयास किए थे। उन्होंने स्वयं दुर्योधन जैसे की सभा में जाकर संधि दूत बनकर उन्हें समझाने का प्रयास किया। उन्होंने बहुत ही विनम्र आग्रह दुर्योधन से किया कि युद्ध ना करो। इसके लिए वे यह प्रस्ताव लेकर आए हैं।

पाकिस्तान पर तंज कसते हुए स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि पड़ोसी देश बार-बार ऐसे माहौल बनाता है तो सर्जिकल स्ट्राइक करने ही पड़ेंगे और किये भी गये हें। सीमा पर खड़ा सैनिक शस्त्र छोड़े तो कमांडर का कर्तव्य जो होता है, वही कर्तव्य श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश में निभाया है। गीता में युद्ध की स्थिति संघर्षों की है। गीता जैसे ज्ञान की आवश्यकता केवल किसी एकांत स्थल में ही नहीं, इसके ज्ञान की आवश्यकता वहां है जहां अशंाति है शांति का तलाश है। जहां वातावरण में दुर्भावनाएं हैं, सद्भावनाओं की तलाश है। इसलिए महाभारत युद्ध में गीता का उपदेश देकर भगवान श्रीकृष्ण ने यह विश्व को दिखाया कि यह ज्ञान संघर्षोंं की भूमि से प्रकट हुआ है। संघर्षों में शांति कैसे बनाई जाए। आज सभी के जीवन की एक सी मांग शांति ही है। अशांति में सब जूझ रहे हैं। जहां अशांति है, भगवत गीता को सहायक बनाओ। चिंताएं दूर होंगी। महाभारत युद्ध में गीता उपदेश का सीधा आह्वान था कि युद्ध में भी शांति का उद्घोष है। यह है हमारा भारत। जहां युद्ध भूमि में भी शांति की सोच है। बात हो रही है। जीवन में हमें भी इस विश्वास को साथ रख पाएं, जैसे अर्जुन ने श्रीकृष्ण के साथ रहने मात्र को सब कुछ बताया। हमें भी जीवन में ऐसा ही करना चाहिए। संघर्षों की ऊहापोह में कोई वैज्ञानिक चीज काम नहीं होती। एसी की कूलिंग मन की अशांति दूर नहीं कर सकती।

इस अवसर पर जीओ गीता के युवा राष्ट्रीय सचिव नवीन गोयल, हरियाणा सीएसआर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष बोधराज सीकरी, पूर्व मंत्री धर्मबीर गाबा, जीएल शर्मा, भानीराम मंगला, रेलवे सलाहकार बोर्ड के सदस्य डीपी गोयल, सुरेंद्र खुल्लर, श्रीकृष्ण कृपा सेवा समिति के प्रधान गोविंद लाल आहुजा, महासचिव सुभाष गाबा, महावीर भारद्वाज समेत अनेक धर्मप्रेमी उपस्थित रहे।  

error: Content is protected !!