भाषा की मान्यता को लेकर कोई राजनीति आड़े नहीं आनी चाहिए –आफरीदी
राजस्थान में उच्च कोटि का व्यंग्य साहित्य रचा जा रहा है-बुलाकी शर्मा

जयपुर, 12 सितम्बर । ‘नमस्ते भारत’ के बैनर तले शनिवार को साहित्य सृजन संवाद कार्यक्रम के अंतर्गत ‘’राजस्थानी भाषा एवं व्यंग्य के सरोकार” विषय’ पर ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमें प्रतिष्ठित व्यंग्यकार फारूक आफरीदी(जयपुर ),वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा और व्यंग्य लेखक आलोचक डॉ नीरज दइया (बीकानेर)की सहभागिता रही । कार्यक्रम का संचालन ‘नमस्ते भारत ‘ की संयोजक युवा व्यंग्यकार, संपादक और आलोचक सुश्री चंद्रकांता ने किया ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि फारूक आफरीदी ने कहा कि जब भारतीय गणराज्य बना तो भाषाई आधार पर राज्यों का गठन हुआ । तब राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए राजस्थान ने उदारतापूर्वक त्याग करते हुए अपनी मातृभाषा राजस्थानी के मुकाबले हिंदी को महत्व दिया, जिसका खामियाजा हमें यह भुगतना पड़ रहा है कि हमारी भाषा को अभी तक मान्यता नहीं मिल पी है ।राज्य सरकार राजस्थानी भाषा, साहित्य संस्कृति के मान सम्मान के लिए प्रतिबद्ध है । मुख्यमत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में 25 अगस्त 2003 में राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भिजवा दिया गया जो राजस्थानी जनता की जीत थी लेकिन अभी तक उस पर कोई ठोस निर्णय हो नहीं पा रहा है। मान्यता की मांग को लेकर आज भी दस करोड़ राजस्थानियों द्वारा शांतिपूर्ण आन्दोलन चलाया जा रहा है ।

आफरीदी ने कहा कि हमारे पास विपुल प्राचीन राजस्थानी साहित्य की संपदा मौजद है तो वर्तमान साहित्यकार निरंतर उच्च कोटि का टकसाली आधुनिक राजस्थानी साहित्य रच रहे हैं । हम थके नहीं हैं बल्कि भाषाई समृद्धि के लिए संकल्पबद्धता से जुटे हुए हैं । भाषा की मान्यता को लेकर कोई राजनीति आड़े नहीं आनी चाहिए ।

आफरीदी ने कहा कि व्यंग्य का धर्म यही है कि समाज में शोषण,अत्याचार, अनैतिकता, असमानता,भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाए और वंचित और पीड़ित वर्ग के साथ खड़ा हो । इस दृष्टि से राजस्थान के व्यंग्यकार हर दृष्टि से अपना रचना कर्म कर रहे हैं ।

वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि राजस्थानी एक समृद्ध भाषा है और इसकी मान्यता के लिए एक शताब्दी से मांग की जा रही है । पद्मश्री डॉ.सीताराम लालस ने राजस्थानी का वृहद् शब्दकोष और व्याकरण भी रचा है । सुश्री चंद्रकांता द्वारा राजस्थान में व्यंग्य की स्थिति पर पूछे गए सवाल पर बुलाकी शर्मा ने बताया कि हमारे लोकनाट्य, रम्मत आदि में समृद्ध व्यंग्य है । सांवर दइया सहित आधा दर्जन से अधिक लेखकों के राजस्थानी में व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं और कई लेखक निरंतर लिख रहे हैं । महिलाएं भी व्यंग्य लिख रही हैं।

राजस्थानी पत्रिकाएँ लगातारव्यंग्य छाप रही हैं लेकिन हमारी भाषा में दैनिक साप्ताहिक समाचार पात्रों का अभाव होने से प्रकाशन के अवसर कम हैं ।

युवा व्यंग्यकार डॉ.नीरज दइया ने कहा कि हिंदी का मूल भवन राजस्थानी भाषा की ही नीव पर खड़ा है । हिंदी में भी अनेक प्रकार की बोलियाँ रही हैं । हिंदी में आदिकाल, वीरगाथा काल और रासो साहित्य तो राजस्थानी ही का है । आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी यदि हिन्दी की अनेक बोलियों को एकीकृत कर हिंदी खड़ी बोली को मानक रूप न देते तो हिंदी की स्थिति भी आज राजस्थानी जैसी ही होती।भाषाओं के लिए भाषा विज्ञान होता है और उसके लिए शब्दकोश,व्याकरण,क्षेत्र, आधुनिक साहित्य होना चाहिए जिसके सारे बिंदु राजस्थानी भाषा पूरी करती है ।
डॉ. दइया ने कहा कि राजस्थानी को साहित्यिक भाषा के रूप में साहित्य अकादेमी, दिल्ली ने मान्यता दे रखी है । संविधान में दर्ज भारतीय 22 भाषाओं के साथ राजस्थानी और अंग्रेजी सहित 24 भाषाओं में चार पुरस्कार दे रही है।राजस्थानी को जिस दिन रोजगार से जोड़ दिया जाएगा तो इसका और अधिक विकास होगा ।अब तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी मातृभाषा में शिक्षा देने की बात कही गई है । राजस्थानी को अब तक मान्यता मिली होती तो इसका स्वरूप ही कुछ और होता। डॉ. नीरज ने व्यंग्य आलोचना पर चर्चा करते हुए कहा कि आलोचक अगर बैखौफ होकर लिखेगा तो उसका व्यंग्यकार और बेहतर लिखे और उसका सम्मान होगा। हमारे आलोचकों को समकालीन लेखकों द्वारा सृजित साहित्य की आलोचना के लिए भी आगे आना चाहिए ।

एक घंटे तक चले ‘नमस्ते भारत’ कार्यक्रम में संयोजक सुश्री चन्द्रकान्ता ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में भी विपुल साहित्यिक काम हो रहा है लेकिन हिमाचली को भाषा के रूप में अभी तक मान्यता नहीं मिली है । इस कार्यक्रम में राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश,हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्णाटक,छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से व्यंग्यकार जुड़े । सुश्री चन्द्रकान्ता ने बहुत ही सफलतापूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया ।

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