अति पिछड़ा वर्ग पर टीकी अब राजनैतिक दलों की निगाहें, अति  पिछड़ा वर्ग का चेहरा नहीं बन पाया कोई नेता, नहीं मिला राजनैतिक दलों का साथ, पिछड़ा वर्ग की रैलियों के बाद नहीं बढ़ पाई राजनीति, भीड़ जूटा कर भी पिछड़ा वर्ग नहीं बढ़ पाया आगे

ईश्वर धामु

हरियाणा के पिछड़ा वर्ग ने अब महम के ऐतिहासिक चबुतरे से अपने अधिकारों को लेकर हुंकार भरी है। महम में 29 अगस्त को हुई महापंचायत में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में पिछड़े वर्ग के लोग इकठे हुए। महापंचायत में कोई राजनैतिक प्रभावित नेतृत्व नहीं था। पर पिछड़ा वर्ग के लोगों में पूरा जोश था। सभी वक्ताओं ने राजनीति से उपर उठ कर पिछड़े वर्ग से जुड़े मुद्दों पर ही बात की। पिछड़ा वर्ग ने एकत्रित होकर ओबीसी महापंचायत के माध्यम से यह संदेश दे दिया है कि सरकार ने पिछड़े वर्ग को उचित भागीदारी नहीं दी, अधिकारों पर फिर चोट करने की कोशिश की, बैकलॉग की नौकरियों को नहीं भरा गया तो ये वर्ग आने वाले समय में बड़े आंदोलन के लिए तैयार है।

महापंचायत में सत्तासीन पार्टी भाजपा के प्रति गुस्सा भी निकाला गया। महापंचायत में मुख्य रूप से जातिगत जनगणना, प्रथम व द्वितीय श्रेणी की नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण, पंचायत से लेकर विधानसभा, लोकसभा तक संख्यानुपात भागीदारी जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। इस महापंचायत के माध्यम से पिछड़ा वर्ग यह संदेश देने में पूरी तरह से कामयाब रहा कि अब वो जागरूक है। पिछड़े वर्ग के नेताओं ने महापंचायत के लिए मेहनत की, उसका परिणाम सामने था। लेकिन पिछड़ा वर्ग के साथ एक दुर्भाज्य भी जुड़ा हुआ है कि इस वर्ग के नेता पूरी मेहनत कर महापंचायत, सम्मेलन या रैली करते हैं। ऐसे आयोजनों में भीड़ भी अच्छी भली आती है। इसके बाद नेता गुम हो जाते हैं। महम की महापंचायत से पहले हिसार और रोहतक में भी पिछड़ा वर्ग के महासम्मेलन हो चुके हैं। परन्तु कार्यक्रम होने के बाद पिछड़ा वर्ग के लोग ही उनकी तारीख और मुद्दे भूल जाते हैं। नेता भी यह भूल जाते हैं कि रैली के प्रस्ताव क्या थे?

चर्चाकारों का तो यह कहना है कि ऐसी रैली के आयोजक बाद में राजनैतिक जंगल में भटक जाते हैं। फिर वें किसी प्रभावी नेता के सम्पर्क में आ जाते हैं और अपना मूल उद्देश्य भूल जाते हैं। ऐसे में पिछड़ा वर्ग अपने नाम के अनुरूप ओर थोड़ा पिछड़ कर रह जाता है। महम महापंचायत के बाद क्या? इसका उत्तर अभी किसी के पास भी नहीं है। इतना ही नहीं पिछड़ा वर्ग के नेता ऐसी भीड़ भरी रैली के बाद अपनी खुद की चौधर भी नहीं चमका पाते। जिस क्षेत्र से भीड़ लेकर नेता आते हैं, रैली के बाद उनकी सुध नहीं लेते। इस तरह समय बीत जाने के बाद फिर से एक अन्य रैली, महपंचायत या महा सम्मेलन की तैयारी में जूट जाते हैं। इस तरह ऐसे आयोजनों का लाभ किसी को भी नहीं मिलता। चर्चाकारों का कहना है कि अब अच्छी भली भीड़ की महम महापंचायत के साथ भी ऐसा ही होने वाला है। लेकिन एक बार पिछड़ा वर्ग सभी राजनैतिक दलों की नजरों में आ गया है। बड़े नेता अब पिछड़े वर्ग के नेताओं की गतिविधियों को राडॉर पर रखेंगे और उन पर निगरानी भी करवायेंगे। ऐसे में पिछड़ा वर्ग का कोई नेता आगे बढऩे का प्रयास करता है तो पहले वें आगे बढऩे के रास्ते रोके जायेंगे। क्योकि अभी तक हुआ यही है कि पिछड़़ा वर्ग के नेता को हर दल में दूसरे दर्जे पर रखा जाता है। यही बड़ा कारण रहा कि साधन सम्पन्न होने के बावजूद भी पिछड़ा वर्ग का नेता अपने वर्ग का चेहरा नहीं बन पाया। यंहा तक कि किसी भी राजनैतिक दल ने हर वर्ग का चेहरा आगे लाया गया। परन्तु पिछड़े वर्ग के किसी भी चेहरे को पहचान नहीं दी। पिछड़े वर्ग में तीन-चार जातियों को छोड़ कर अति पिछड़ा वर्ग से नेता उभर कर सामने नहीं आया है।

चर्चाकारों का कहना है कि अब तो राजनीति में एक परम्परा बन चली है कि चुनाव के समय किसी भी अति पिछड़ा वर्ग के नेता को आगे लाकर वोट हासिल कर लिए जाते हैं। बाद में वो चेहरा गुमनामी में खो जाता है। क्योकि अति पिछड़ा वर्ग के पास राजनैतिक  ताकत का अभाव है और इस वर्ग के नेता पिछड़े वर्ग के अधिकारों के बारे में ही बंध कर रह जाते हैं। राजनैतिक ताकत लेने के लिए कोई पहल नहीं करता। यही कारण रहा कि अति पिछड़ा वर्ग प्रभावी स्थिति में नहीं पहुंच  पाया। ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि महम की पिछड़ा वर्ग की महापंचायत इस परम्परा को तोडऩे में कामयाब हो जाएं?

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