जहां परमात्मा ने अवतार लेकर अधर्मियों का संहार किया तो,वहीं सन्त रूप में जीव को प्रेमाभक्ति के माध्यम से कल्याण का मार्ग सुझाया।
विधना का लेख कभी मिटता नहीं है चाहे रोकर पूरे करो या हंस कर, होनी तो होकर ही रहेगी।होनी को तो केवल सन्तों के चरणों में रहकर ही टलवाया जा सकता है : कँवर साहेब जी
“जन्माष्टमी” का त्यौहार जन मानस के लिए पाक पवित्र और उल्लास का दिन है : कँवर साहेब जी
युग प्रेणता श्रीकृष्ण जी ने अवतार ले जनमानस के कल्याण के लिए अनेको लीलाएं रची।

दिनोद धाम जयवीर फोगाट

30 अगस्त – एक ही दिन में कितनी ऐसी घटनाएं होती है जो याद करने योग्य होती हैं। कुछ ऐसी है जो जीवन को नई दिशा देती हैं और कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें हम स्मरण नहीं करना चाहते। लेकिन सबक इंसान दोनो ही घटनाओं से ले सकता है। जन्माष्टमी का दिन भी जन मानस के लिए बहुत पाक पवित्र और उल्लास का है। इसी दिन युग प्रेणता श्रीकृष्ण जी ने अवतार लिया था जिन्होंने जनमानस के कल्याण के लिए अनेको लीलाएं रची

यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद धाम में स्थित राधास्वामी आश्रम में आयोजित सत्संग में फरमाए। हुजूर कँवर साहेब जी ने कहा कि इंसान पांच तत्व का पुतला है।मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।इंसान का जीवन जब समाप्त होता है तब अंतिम क्रिया भी इन्ही पांचों तत्वों से ही होती है। हर जाति जनजाति में इसके अलग अलग संस्कार हैं लेकिन सन्तों की कोई जाति नहीं होती। इसीलिए कबीर साहब को हिन्दू और मुसलमानों ने अपना माना। कबीर साहब की भांति ही गुगा पीर भी हैं जिनकी सभी धर्मों में समान मान्यता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि महापुरुष सृष्टि को दिशा देते हैं। श्रीकृष्ण जिन्हें ब्रह्म का अवतार माना जाता है आज के दिन अवतरित हुए थे। परमात्मा अधर्म का नाश करने व धर्म की स्थापना के लिए धरा पर आते हैं।

श्रीकृष्ण जी के गीता उपदेश को भगवदगीता के रूप में पांचवा वेद माना गया है।  श्रीकॄष्ण जी के सतजीवन से इंसान अनेको शिक्षाएं ले सकता है।

उन्होंने कहा कि क्रोध इंसान का दुश्मन है। क्रोध अगर आ जाये तो उसको शांत करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि क्रोध में किया गया कार्य किसी के लिए भी फलदायी नहीं होता। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि चाहे पूरा संसार ही आपका बैरी क्यों ना हो जाये लेकिन जिसका परमात्मा रखवाला है उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता। कंस ने देवकी की सन्तानो का वध करने के लिए कितने इंतज़ाम कर रखे थे लेकिन परमात्मा ने कंस के विनाश के लिए जिसको जिंदा रखना था उसके लिए ताले भी स्वतः खुलते चले गए। उनके जीवन के लिए जमुना ने अपनी धार रोक दी।उसके बाद कि घटनाएं सारा विश्व जानता है। श्रीकृष्ण जी एक देश, विचार, जाति या धर्म के नही थे। वे तो सम्पूर्ण विश्व के हैं। गुरु महाराज जी ने कहा कि परमात्मा को तो आप किसी भी रूप में याद कर लो लेकिन कर लो। आप ईर्ष्या व घृणा वश भी परमात्मा को याद करते हो तो भी आपका कल्याण है।

 गुरु महाराज जी ने कहा कि परमात्मा ने अलग अलग तरीके से जीव का उद्धार किया। जहां परमात्मा ने अवतार लेकर अधर्मियों का संहार किया वहीं सन्त रूप में जीव को प्रेमाभक्ति के माध्यम से कल्याण का मार्ग सुझाया। अवतारी ने बेशक असुरों को मारा हो लेकिन सन्त रूप में आपको कहीं भी हिंसा का स्वरूप नहीं दिखेगा। सन्तों ने तो उनके साथ बुरा बर्ताव करने वालो को भी शुभाशीष ही दिया। सन्तों ने किसी का बुरा नहीं चाहा। सन्त सतगुरु तो जीव का कर्म पूरा करवाते हैं जिससे उसका आवन जान से छुटकारा मिल जाये।

 उन्होंने कहा कि चौरासी के फेर से कोई नहीं बच पाया। त्रेता युग में श्री राम चन्द्र ने छिप कर बाली को मारा तो इस कर्म का कर्ज पूरा करने के लिए द्वापर युग में श्रीराम श्रीकृष्ण के रूप में आये और बाली भील के रूप में। इस युग में भील ने छिप कर श्रीकृष्ण पर तीर चलाया। उन्होंने कहा कि युग बीत जाते हैं लेकिन कर्म का कर्जा खड़ा रहता है। केवल सन्त ही ऐसे है जो कर्मो को पूर्ण करके जाते हैं और जीवो के भी कर्म काट कर उनका कल्याण करते हैं। उन्होंने कहा कि विधना का लेख कभी मिटता नहीं है चाहे रोकर पूरे करो या हंस कर। होनी तो होकर ही रहेगी। होनी को तो केवल सन्तों के चरणों में रहकर ही टलवाया जा सकता है।

error: Content is protected !!