भिवानी जिले के पिछड़े गांव गोलागढ में बंसीलाल का जन्म 26 अगस्त, 1927 को हुआ।

बंसीलाल को श्रद्धांजलि

हरियाणा के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल का प्रदेश की तरक्की में अभूतपूर्व योगदान है। इसीलिए उनको विकास पुरूष और हरियाणा का निर्माता भी कहा जाता है। वो केंद्र में रक्षा और रेल मंत्री भी रहे। उनकी विराट शख्सियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्र में इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय ना तो उनसे पहले और ना ही उनके बाद हरियाणा के किसी नेता को आज तक मिल पाए हैं। भिवानी जिले के पिछड़े गांव गोलागढ में उनका जन्म 26 अगस्त, 1927 को हुआ। आगामी वीरवार को उनकी जयंती है। बंसीलाल की जयंती के मौके पर इस दफा उनकी महिमा को याद कर लेते हैं। बंसीलाल के जन्म के समय शायद ही किसी को ये अंदाजा रहा हो कि गोलागढ में जन्मा ये बालक आने वाले समय में समूचे इलाके-समूचे प्रदेश की ही तस्वीर बदल देगा। बालू रेत के मरूस्थली टिब्बों पर हरियाली की चादर बिछा देगा। मुख्यमंत्री के तौर पर बंसीलाल का पहला कार्यकाल वर्ष 1968-1972 तक रहा। फिर वर्ष1972-75,फिर वर्ष 1986-87 और अंतिम दफा वो वर्ष 1996-1999 तक हरियाणा के सीएम रहे।

41 बरस की आयु में सीएम बने

पहली दफा जब वो हरियाणा के सीएम बने तब उनकी आयु महज 41 बरस थी। हरियाणा का गठन हुए ही करीब डेढ बरस का समय गुजरा था। मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले दो कार्यकाल गजब के थे। उन्होंने कमाल की पारी खेली। हरियाणा को आगे ले जाने के लिए उन्होंने जो ख्वाब देखे थे, उनको साकार करने के लिए उनका जोश, जज्बा, ऊर्जा, दूरदर्शिता,समर्पण,मेहनत देखते ही बनती थी। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण समस्याओं की उनको जमीनी समझ थी। वकील होने के कारण वो कानून के जानकार थे, तो प्रधान सचिव के तौर पर एसके मिश्रा जैसे काबिल अधिकारी का साथ मिलना सोने पर सुहागे जैसा था। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने हरियाणा के हर गांव में बिजली पहुंचाई। सड़क पहुंचाई। वो गजब के प्रशासक थे और ऐसा कहा जाता है कि उनका हुक्म गोली की तरह चलता था। काम में कोताही करने वाले अफसरों को वो तुरंत सबक सिखाते थे और अच्छा काम करने वालों के कद्रदान थे। वो एक नंबर के खुंदकी थे। जिस से खुंदक पाल लेते थे, आमतौर पर उसकी मरोड़ निकाल कर ही चैन लेते थे। आसानी से माफी, उनके स्वभाव में नहीं थी। इसीलिए उनको कठोर प्रशासक भी कहा जाता है। मुख्यमंत्री के तौर पर अपने आखिरी कार्यकाल में वो पहले जितना प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाए और उनकी सरकार अपना पांच बरस का कार्यकाल पूरा ना कर सकी।

बिजली का खंबा खुद हिला कर चैक करते थे

गांव गांव बिजली पहुंचाने की उनकी योजना का विपक्ष के लोग ये कहते हुए आलोचना करते कि खंबों पर सिर्फ खोखले तार खिंचे जा रहे हैं और इनमें करंट नहीं है। इसका जवाब बंसीलाल अपनी जनसभाओं में कुछ यंू देते.. जिस किसी भाई को ये वहम है कि बिजली के तारों में करंट नहीं है वो एक दफा जरा इन तारों को छूकर देख ले। तुरंत ही उसका ये वहम दूर ना हो जाए, तो मुझे कह देना। एक मुलाकात में बंसीलाल ने खुद मुझे बताया था कि गांव गांव बिजली पहुंचाने के अभियान के दौरान जब कभी वो प्रदेश में दौरे पर कहीं जा रहे होते तो अचानक से कहीं भी अपनी सरकारी गाड़ी रूकवा कर खुद ये चैक करते थे कि बिजली के खंबे ठीक से जमीन में लगे-गड़े-धंसे हैं या नहीं? वो खुद खंबे को पकड़ कर हिला कर देखते थे। अगर कहीं-कभी बिजली का खंबा हिल गया तो उनके ये स्टैंडिंग आर्डर थे कि सबंधित जेई-एसडीओ और एक्सीईन को तुरंत प्रभाव से सस्पैंड कर दिया जाए। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने डीसी के पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए जरूरी और कानूनी प्रबंध किए। डीसी को फ्री हैंड देने में उनका विशेष जोर रहता था। प्रभावी प्रशासन के लिए उन्होंने ये भी आदेश दिए कि एसपी की एसीआर डीसी ही लिखा करेंगे।

बंसीलाल की तरक्की में पत्नी का योगदान

बंसीलाल के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं को जानने-समझने के लिए हमने उनकी रिटायर्ड आईएएस बेटी सरोज सिवाच से भी बात की। सरोज के मुताबिक वे पिता जी को बाऊ जी कह कर बुलाती थी। बाऊ जी की तरक्की में उनकी माता विद्यादेवी का अहम योगदान था। कई मौकों पर बाऊ जी ने सार्वजनिक तौर पर ये स्वीकार भी किया कि उनको सियासत में बुलंदी पर पहुंचाने में उनकी पत्नी का महत्वपूर्ण योगदान है। चंूकि बाऊ जी किसान परिवार से आते थे, इसलिए उनकी माता भी खेत में काम करती थी। उस दौरान बंंसीलाल जालंधर में कानून की पढाई कर रहे थे। एक दिन वापस गांव में आकर खेत में गए तो वहां तपती गर्मी और जलती लू में बीमारी की हालत में भी काम कर रही विद्यादेवी की हालत देख कर वो भावुक हो गए। विद्यादेवी खेतों में काम कर रही थी और साथ ही वहां अपने बच्चों को भी संभाल रही थी। बंसीलाल ने उनको कहा कि इस तरह वो उनको दुखी नहीं देख सकते। अब वो पढाई छोड़ कर खुद भी खेतों में काम करेंगे। इस पर विद्यादेवी ने ही उनको मनाया-समझाया कि वो अपनी पढाई जारी रखें। अगर उन्होंने पढाई छोड़ दी तो बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। बिना शिक्षा के ये बच्चे धूल में मिल जाएंगे। विद्यादेवी की जिद के आगे बाऊ जी झुके और अपनी पढाई जारी रखी। वो एक निहायत दयालु और धर्मपरायण महिला थी। बाऊ जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वो सरकारी बस से ही यात्रा करती थी।

नहरों का जाल बिछवाया

चंूकि बंसीलाल दक्षिणी हरियाणा में सिंचाई के पानी की समस्या से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने लिफ्ट इरीगेशन के जरिए पिछड़े इलाकों में सिंचाई की व्यवस्था करवाई। उन्होंने पूरे हरियाणा में नहरों-रजबाहों का जाल बिछवाया। बंसीलाल एसवाईएल नहर बनाने के लिए कृतसंकल्प थे। उन्होंने तब हरियाणा के सरपंचों को एक चिट्ठी भी लिखी जिसमें उन्होंने हरियाणा के विकास के लिए अब तक किए गए अपने कामों कहा हवाला देते हुए कहा कि एसवाईएल नहर निर्माण का ज्यादातर काम पूरा कर लिया है। जो काम अधूरा है वो इलाका पंजाब में आता है।अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने प्रदेश के सरपंचो के एसवाईएल निर्माण स्थल पर दौरे भी करवाए ताकि लोगों को ये भरोसा हो सके कि बंसीलाल जो कहते हैं, वो करते भी हैं।

अध्ययनशील प्रवृति

सरोच सिवाच कहती हैं कि बाऊ जी हमेशा अध्ययनशील रहते थे और विभिन्न विषयों की किताबें पढते रहते थे। वो अक्सर ये कहते थे कि स्वास्थ्य और शिक्षा को बढावा देने के लिए राज्य और केंद्र सरकार इतना काम नहीं करती जितना उनको करना चाहिए।

… जिसका डर था, वही हुआ

एक दफा बाऊ जी को रोहतक पीजीआई हस्पताल में किसी कार्यक्रम में आना था। कार्यक्रम स्थल पर दीवार में सीलन आई हुई थी। आयोजकों को मालूम था कि अगर बाऊ जी ने ये दीवार देख ली तो वो कड़ा एक्शन लेंगे। सीलन की समस्या के निदान के रूप में उस दीवार पर सरकारी उपलब्धियों का एक बड़ा सा बैनर लगवा दिया गया। जैसे ही बाऊ जी कार्यक्रम स्थल पर दाखिल हुए उनको सीलन की गंध आई। उन्होंने इधर उधर देख, तुरंत उस पोस्टर को हटाने के आदेश दिए। पोस्टर हटते ही पीजीआई प्रबंधन की कलाकारी की पोल खुल गई। जिसका डर था, वही हुआ। उन्होंने कईयों को तुरंत ही सस्पैंड किया।

सरोज कहती हैं कि अपने जीवन के आखिरी समय में वो ये चिंतन-मनन करते रहते थे कि क्या देश सही दिशा में जा रहा है? क्या सरकारें जनता के प्रति वैसी ही जवाबदेह हैं जैसी अतीत में हुआ करती थी। बेशक उनको कठोर हृदय राजनेता के तौर पर जाना- पहचाना जाता रहा,लेकिन वो अत्यंत कोमल हृदय के व्यक्ति थे। बेटियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने के पक्षधर थे। किसी महिला की परेशानी देख कर तुरंत ही उनका मन पसीज जाता था। गांवों के दौरों के दौरान वो जरूर ये पड़ताल करते थे कि पीने के पानी के लिए महिलाओं को परेशानी का सामना तो नहीं करना पड़ता। उन्होंने सीएम रहते हुए कई महिला आईएएस अधिकारियों को कई जिलों का एक साथ डीसी लगा कर दिखाया कि वे महिला अफसरों कोे पुरूषों से कम नहीं समझते। हरियाणा में उन जैसी प्रगतिशील सोच उनसे पहले किसी सीएम ने नहीं दिखाई थी।

रक्षा और रेल मंत्री भी रहे

हरियाणा के चार दफा सीएम रहने के अलावा वो देश के रक्षा मंत्री, परिवहन मंत्री भी रहे। जब वो परिवहन मंत्री थे तो उनके अधीन ही रेल, नागरिक उड्डयन,सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्रालय भी आते थे। यूं तो हरियाणा की माटी से निकले दो नेता गुलजारीलाल नंदा और देवीलाल देश के उपप्रधानमंत्री भी रहे, लेकिन इतने भारी भरकम मंत्रालयों का एक साथ प्रभार संभालने के वाले बंसीलाल हरियाणा के एकमात्र नेता रहे। अब ये सभी चारों मंत्रलाय अपने आप में स्वतंत्र मंत्रालय हैं। परिवहन मंत्री के तौर पर उनकी देन ये भी है कि उनके समय में ज्यादातर रेल समय से चलनी-पहुंचनी शुरू हो गई थी। रेलवे को उनका एक बड़ा योगदान ये भी है कि 26 फरवरी,1986 को बतौर परिवहन मंत्री पेश किए अपने रेल बजट में उन्होंने कम्पयूटरीकृत टिकट बुकिंग सिस्टम शुरू करने का ऐलान किया था। वो समय से आगे की सोचते थे और तरक्की पसंद इंसान थे। धूम्रपान, मदिरापान और मांसाहार से दूर रहते थे और सादा जीवन जीते थे। 28 मार्च,2006 को उनका निधन हो गया।

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