-कमलेश भारतीय आखिर अपनी उपेक्षा से घोर निराश होकर अंडर 19 क्रिकेट टीम के सन् 2012 के भारतीय कप्तान उन्मुक्त चंद ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया । क्रिकेट की बजाय उन्मुक्त ने असल में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की उपेक्षा को देखते यह कदम मात्र 28 साल की उम्र में उठा लिया । भला यह तो खेलने और नये कीर्तिमान बनाने के दिन थे और उन्मुक्त ने संन्यास ले लिया ? यह कोई उम्र है संन्यास लेने की ? अंडर 19 के कप्तान रहे विराट कोहली आज भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान हैं जबकि दूसरी ओर उन्मुक्त चंद जिसे क्रिकेट टीम में पिछले आठ नौ साल से जगह ही नहीं मिली । अंडर 19 से ही मोहम्मद कैफ आए थे लेकिन उन्मुक्त के भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने के सपने चकनाचूर हो गये और आखिर इस युवा व प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने संन्यास ही लेना बेहतर समझा । एक युवा खिलाड़ी चमकने से पहले ही अस्त हो गया । कितना बड़ा दुखांत । इससे पहले क्रिकेट में कभी सैयद किरमानी जगह बनाते बनाते बूढ़े हो गये। । बड़ी मुश्किल से फारूख इंजीनियर बाहर गये तब जाकर कुछ समय सैयद किरमानी खेल पाये । यही हाल ऋषभ पंत का हो रहा था । राहुल द्रविड़ ने इस युवा खिलाड़ी की प्रतिभा को पहचाना और पूरा सहयोग दिया लेकिन हमारे तेज़ तर्रार व चपल विकेट-कीपर कैप्टन कूल यानी धोनी के चलते कुछ समय लग गया टीम में जगह बनाने में । असल में जो टीम में आ जाता है और कैप्टन तक हो जाता है तो उसकी मर्जी ज्यादा चलती है । जबकि धोनी को युवा खिलाड़ी के लिए जगह छोड़नी चाहिए थी । धोनी प्रतिभाशाली थे नि: संदेह लेकिन यदि वे पंत को खुद अपनी जगह देकर जाते तो और महान् हो जाते । युवराज सिंह के पिता व खुद क्रिकेट खिलाड़ी भी धोनी पर अपने बेटे की उपेक्षा के आरोप खुलेआम लगाते रहे । जब धोनी का खेल उतार पर था तब विराट कोहली आगे कदम बढ़ा रहे थे । अब खुद विराट को इस युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी की सुध लेनी चाहिए थी । वैसे सिर्फ क्रिकेट ही नहीं पता नहीं कितने अन्य क्षेत्रों में युवाओं की उपेक्षा की जा रही है । राजनीति में और वो भी कांग्रेस में देखिए राहुल गांधी ने कोशिश की युवा ड्रीम टीम बनाने की लेकिन वरिष्ठ कांग्रेसियों ने पलट कर ऐसा खेल दिखाया कि जी23 समूह बना लिया । यह खेल सब जगह जारी है । जगन रेड्डी कहता रहा कि उसे मुख्यमंत्री बना दो लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने इस युवा की अनदेखी की । और वह अलग पार्टी बना कर आज मुख्यमंत्री बना हुआ है । यह खेल सभी क्षेत्रों में चल रहा है । सुशील कुमार ने भी यह खेल खेलने की कोशिश की और युवा पहलवान सागर धनखड़ की प्रतिभा व प्रगति को सह न पाया और ऐसा कलंकित खेल खेला कि आज सलाखों के पीछे पचता रहा है । युवा प्रतिभाओं को पहचान कर उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए तभी देश को इसका प्रतिफल मिलेगा नहीं तो युवा प्रतिभाएं असमय ही संन्यास ले लेंगीं जो बहुत दुखद होगा। Post navigation आज इतने सालों बाद फिर याद कर रहा हूंडाॅ इंद्रपाथ मदान को ,,,, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के