भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम के विकास में सबसे अधिक कार्य गुरुग्राम नगर निगम के पास हैं। मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर नगर की डिजाइनिंग तक इसका बड़ा कार्य है लेकिन हर क्षेत्र में निगम की कार्यशैली से जनता कतई खुश नहीं है।

निगम पर बार-बार भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं लेकिन कार्यवाही नाम को भी नहीं होती। केवल खानापूर्ति कर मामलों को दबा दिया जाता है। निगम की किसी बात पर भी नजर डालो तो अनियमितताएं ही अनियमितताएं नजर आ जाएंगी। वो कहावत याद आती है 

एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिस्तां करने को- हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा।

गत दिनों निगमायुक्त का तबादला हुआ, नए निगमायुक्त ने कार्यभार संभाला, जनता और निगम पार्षदों को आशा बढ़ी कि अब काम सुचारू रूप से हो पाएंगे। आने के तुरंत बाद निगमायुक्त ने रेस्ट हाउस में पार्षदों की मीटिंग ली और उसमें पार्षदों से कहा कि उनकी जो फाइलें रुकी हुई हैं, वह उन्हें बताएं उन पर तुरंत कार्यवाही की जाएगी और वह तुरंत अब तक तो हुआ नहीं है। क्या आशा की जाए?

अभी बरसात में जलभराव की समस्या से गुरग्राम जूझ रहा है। दो बार तो लोगों के घरों में भी पानी भर चुका, जबकि निगम ने सैकड़ों करोड़ रूपए खर्च किए पानी की निकासी के लिए। सभी अधिकारियों ने और विधायक ने दावा किया कि इस बार पानी नहीं भरेगा लेकिन पानी भरा। लोगों का करोड़ों का नुकसान हुआ। निगम ने उनकी सुध नहीं ली।सदन की सामान्य बैठक में भी किसी पार्षद ने, मेयर ने यह मांग नहीं की कि जलभराव के कारण दोषियों की अधिकारियों की तलाश की जाए, उनके कामों की जांच की जाए और जो दोषी पाया जाए उसे सजा दी जाए। आखिर क्यों?

सामान्य बैठक में पार्षदों की ओर से मांग की गई कि उनके क्षेत्रों में पिछले पांच वर्ष में निगम द्वारा जो पेमेंट की गई हैं, उनका ब्यौरा उन्हें उपलब्ध कराया जाए और निगम में यह बिल पास भी हुआ। अधिकारियों को एक सप्ताह में पार्षदों को यह जानकारी देनी थी, जो आज तक तो किसी पार्षद को मिली नहीं है। 

अब इसके थोड़ा तह में जाने का प्रयास करते हैं। पार्षदों द्वारा यह जानकारी इसलिए मांगी गई कि कुछ ऐसे मामले प्रकाश में आए, जिनमें काम तो हुआ नहीं और पेमेंटें कर दी गई। वह मामला तो आपको याद ही होगा कि जब एक अधिकारी ने पार्षदों के जाली दस्तखत कर पेमेंट निकलवा ली थी। उस पर भी कोई कार्यवाही निगम द्वारा नहीं की गई थी। वह तो संयोग देखिए कि निकाय मंत्री अनिल विज ने दौरा किया और उन पर एफआइआर दर्ज कराने के आदेश दिए। अब उन पर एफआईआर दर्ज हो चुकी है।

प्रश्न यह है कि ये आदेश अनिल विज द्वारा ही क्यों दिए गए। पार्षदों ने स्वयं एफआइआर दर्ज क्यों नहीं कराई? इससे ऊपर पार्षदों का ध्यान रखने के लिए मेयर टीम है तो मेयर की ओर से यह एफआइआर क्यों नहीं दर्ज कराई गई? या मेयर ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री, निकाय मंत्री या केंद्र मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को दी, यदि दी तो उन्होंने क्या कार्यवाही की?

अवैध निर्माण :

गुरुग्राम में अवैध निर्माणों की बाढ़-सी आई हुई है। यह आम आदमी भी जानता है, अधिकारी भी जानते हैं और सरकार भी जानती है। फिर भी अवैध निर्माण हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को धता बताते हुए आयुध डिपो के 900 मीटर प्रतिबंधित दायरे में भी हो रहे हैं। निगम की ओर से लगातार मुहिम भी चलाई जा रही है लेकिन अनेक लोगों का कहना है कि यह कार्यवाही पिक एंड चूज के आधार पर होती है, सभी पर बराबर नहीं होती। जो मकान अवैध बने हुए हैं और जिन पर निगम की कार्यवाही नहीं होती, उनके बारे में धारना यह है कि या तो निगम अधिकारी उनसे चंदा ले रहे हैं या फिर वे सरकार के मंत्री, मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री के कृपा पात्र हैं।

निगम को राजस्व की हानि :

उन लोगों के मकान बनकर खड़े हो जाते हैं, उनमें रिहाइश भी हो जाती है लेकिन निगम के रिकॉर्ड में वह खाली प्लॉट ही कहलाते हैं। जिस कारण उन पर हाउस टैक्स खाली प्लॉट का लगता है। जिस कारण निगम को बहुत बड़े राजस्व की हानि होती है।

इस प्रकार के मकान क्षेत्र में अनेक हैं। अभी पिछले दिनों अशोक विहार हनुमान मंदिर के पास से गुजरना हुआ तो वहां पिछले कुछ सालों में अनेक बहुमंजिला इमारतें बनकर खड़ी हैं, जिनमें फ्लैट बना रखे हैं। रिहाइश है और सामने से देखने में 100 प्रतिशत कवर दिखाई देते हैं। उनके बारे में भी यही चर्चा है कि निगम के रिकॉर्ड में वह खाली प्लॉट हैं और वह मकान भाजपा नेताओं के संरक्षण में बने हुए हैं। क्या अतिक्रमण दस्ता इसे चेक करेगा या निगम का टैक्स विभाग जाकर इसे चेक करेगा और नागरिकों की सुविधा का ख्याल करेगा?

हमारी नागरिकों से अपील है कि उनके आसपास कोई अवैध गतिविधियां हो रही हैं तो वे हमें सूचित करें, हम उसे अधिकारियों और सरकार तक पहुंचाने का प्रयास करेगा तथा प्रयास कुछ तो फल देंगे ही। हालांकि इस समय भाजपा नेता भी दबे-छुपे शब्दों में कहते हैं कि इस सरकार में कुछ होना-जाना तो है नहीं।

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