-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी -पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी

बेशक आज भारतीय महिला हाॅकी टीम इतिहास बनाने से चूक गयीं लेकिन जो खेल दिखाया वह कम तो नहीं । जो ज्ज्बा दिखाया वह कम तो नहीं । कैसे कैसे छोटे छोटे घरों से बड़े बड़े सपने देखे और कहां तक छू लिया आकाश । कहां पापा सिर्फ घोड़ा बग्गी चला कर गुजारा करते थे और बिल्कुल कुपोषित बताकर कोच ने रानी रामपाल को खेल के मैदान से लौटा दिया हो लेकिन मैदान से उसके सपने नहीं लौटे और वह भारतीय महिला हाॅकी की कप्तान बनी । बस । एक मौका मांग रही थी वह और मौका मिलते ही रानी कप्तान तक पहुंच गयी । बेशक कांस्य से चूक गयीं लेकिन करोड़ों भारतवासियों के दिल में जगह बनाने में सफल रहीं हमारी ये जांबाज लड़कियां । वंदना ने तीन गोल कर पहली हेट्रिक बनाने का कीर्तिमान बना दिया । तो कितने पेनाल्टी काॅर्नर बचा कर मैच जिताया सविता पूनिया ने । पहली बार सेमीफाइनल तक पहुंचीं ये क्या कम है ? आकाश छू लिया, दिल जीत लिया ।

ऐसा ही पुरूष हाॅकी टीम ने करिश्मा कर दिखाया । कांस्य जीत लिया जर्मनी को हरा कर । वह भी चार दशक के सूखे के बाद । जब लोगों ने हाॅकी की बात करना भी छोड़ दिया था। । जब लोग अपने राष्ट्रीय खेल को भूल चुके थे और कोई स्पांसर करने वाला आगे न आ रहा था तब ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आगे आए और हाॅकी को सपने दिये । खिलाड़ियों को पंख लगे । पुरूष या महिला हाॅकी यानी दोनों टीमों ने इस स्वर्ण अवसर को हाथ से जाने न दिया । एक बार तो ओलम्पिक में चक दे इंडिया कर ही दिया । इस जज्बे को बनाये रखने और बढ़ाये जाने की जरूरत है । पुरूष हाॅकी के खिलाड़ियों के लिए पंजाब व हरियाणा सरकारों ने इनामों की घोषणा कर दी है । क्या इन लड़कियों को भी इनके संघर्ष का इनाम मिलेगा ? सबने कितना लम्बा रास्ता तय किया ओलम्पिक तक जाने का । कितने कितने ताने सहे । ओलम्पिक में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद वंदना के घर के बाहर जातिसूचक गालियां दी गयीं । यह कितना घोर अपमान है । खिलाड़ी देश का नाम और गौरव बढ़ाने पसीना बहा रही हैं और सब भारतीय हैं लेकिन इनको जाति कहां से दिख गयी ? शर्म आनी चाहिए । सच में इन लड़कियों का विजेताओं की तरह सम्मान होना चाहिए ।

अभी तो नापी है थोड़ी सी ज़मीन
पूरा आसमान अभी बाकी है
और
उड़ान पंखों से नहीं
हौसले से होती है ,,,,

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