करोड़ों रूपए खर्च किए जनता की गाढ़ी खून-पसीने की कमाई के जलनिकासी के इंतजाम करने में और करोड़ों का ही नागरिकों का नुकसान हुआ जलभराव से।

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। मानसून की बरसात ने गुरुग्राम की जो दुर्गति की है, वह सारे विश्व में नाम कमा रही है और हमारी सरकार के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही। गुरुग्राम में अब तक दो बार बरसात हुई है और दोनों बार हर जगह जल ही जल नजर आ रहा था। हजारों घरों में भी पानी भर गया। दूसरी बरसात में तो गुरुग्राम विधानसभा की स्थिति को सुधार करने का दायित्व रखने वाले विधायक सुधीर सिंगला के निवास में भी पानी पहुंच गया। मजेदारी की बात यह है कि जिस दिन विधायक के घर में पानी पहुंचा था, उस दिन प्रात: मुख्यमंत्री का प्रवास भी गुरुग्राम में ही था लेकिन इस जलभराव के बारे में मुख्यमंत्री की ओर से कोई वक्तव्य नहीं आया।

गुरुग्राम की जनता किसके सहारे जिये? गुरुग्राम साइबर सिटी कहलाता है। मुख्यमंत्री इसे स्मार्ट सिटी का नाम देते हैं। स्मार्ट सिटी के नाम से जनता के टैक्स के करोड़ों रूपए भी खर्च किए जाते हैं परंतु परिणाम बरसात ने सामने दिखा दिया। बरसात से पूर्व गुरुग्राम के सभी उच्च अधिकारी एवं विधायक बार-बार यह दावा कर रहे थे कि इस बार गुरुग्राम में जलभराव नहीं होगा लेकिन जलभराव हुआ।

गुरुग्राम सारे हरियाणा का पेट भरता है और फिर सभी अधिकारी जब यह कह रहे थे कि जलभराव नहीं होगा, करोड़ों रूपए खर्च कर दिए, फिर जलभराव हुआ। यह स्पष्ट दर्शाता है कि कागजों में और धरातल पर काम में मेल नहीं है अर्थात सारे काम कागजों में पूरे हो जाते हैं लेकिन धरातल पर वह क्रियांवंतित नहीं होते। इसके पीछे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही नजर आता है।

मुख्यमंत्री के दौरे गुरुग्राम में निरंतर लगते रहते हैं। कुछ दिन पूर्व निकाय मंत्री अनिल विज भी नगर निगम में पहुंचकर कह गए थे कि निगम में बहुत सुधार की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त गुरुग्राम में भाजपा के प्रदेश के सभी बड़े नेता रहते हैं। शायद इनकी संख्या चंडीगढ़ से भी बहुत अधिक है। फिर भी यहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

गुरुग्राम की जनता मुख्यमंत्री और निकाय मंत्री से पूछना चाहती है कि निगम कार्यालय में वहां जाने वाले किसी व्यक्ति के लिए पानी की भी व्यवस्था नहीं है। अधिकारियों के लिए पानी खरीदा जाता है। इसी प्रकार निगम कार्यालय की पार्किंग में भी जलभराव होता है। इस ओर निगम अधिकारियों या निगम के चुने हुए 35 पार्षदों का ध्यान क्यों नहीं जाता? क्या इसके पीछे कारण यह है कि निगम में कोई जनता का आदमी जाए ही नहीं। इतना बड़ा कार्यालय और वहां आगंतुक के न बैठने का स्थान और न पीने को पानी। यह है हमारी सरकार का चेहरा।

पुरानी कहावत है कि भ्रष्टाचार सदा ऊपर से शुरू होता है और क्रांति नीचे से तथा क्रांति तब शुरू होती है जब गरीब, मध्यम वर्ग मेहनतकश की सहनशक्ति जवाब दे जाती है। गुरुग्राम जो शांत इलाका है, उसमें भी यदि सरकार, मुख्यमंत्री और उनके प्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया तो कहीं विरोध की चिंगारियां उठ सकती हैं। 

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