ऋषि प्रकाश कौशिक

देश के वैश्य समाज के लिए आज ऐतिहासिक दिन है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने महाराजा अग्रसेन के नाम पर हिसार एयरपोर्ट का नामकरण किया है। कुछ दिन पहले ही वैश्य समाज ने यह माँग उठाई थी।

 महाराजा अग्रसेन के नाम पर हिसार के पास अग्रोहा धाम भी है। वैश्य समाज के लिए महाराज अग्रसेन परम श्रद्धेय और पूजनीय हैं; उन्हें देवता की तरह पूजा जाता है। महाराजा अग्रसेन अग्रोहा के राजा होते थे। इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि अग्रोहा में कोई भी जाकर बसता था तो अग्रोहा के लोग उसे एक ईंट और एक सिक्का देते थे; ईंट से वो घर बनाता था और जनता से एकत्रित धन से कारोबार करता था। इस दृष्टि से महाराजा अग्रोहा समाजवाद के प्रतीक माने जाते हैं। वैसे तो महाराजा अग्रसेन पूरे देश के वैश्यों की देवतुल्य हस्ती हैं लेकिन हरियाणा के सन्दर्भ में मुख्यमंत्री की इस घोषणा का आकलन किया जाए तो यह विशुद्ध राजनीतिक फैसला लगता है।

हरियाणा का वैश्य समाज लंबे समय से बीजेपी से नाखुश है कि खट्टर सरकार ने इस समाज की उपेक्षा की है। वैश्य समाज का एक भी व्यक्ति खट्टर मंत्रिमंडल में शामिल नहीं है। एक विधायक ज्ञान चंद गुप्ता को अध्यक्ष पद का लॉलीपॉप थमा दिया है। मंत्रिमंडल में अभी दो स्थान खाली हैं जिनमें एक पर जेजेपी दावा करेगी। बीजेपी के हिस्से में एक पद है जिसके लिए दावेदारों की लंबी कतार हैं। खट्टर के लिए बड़ा धर्मसंकट है। किसको हटाएं और किसको बनाएं। जिसको भी हटाएंगे तो उसकी जगह उसी जाति का मंत्री बनाना पड़ेगा वरना मुख्यमंत्री को उस जाति की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। इस सिद्धांत से भी वैश्य समाज का विधायक मंत्री पद का दावेदार नहीं बन पाता है।

  खट्टर ने महाराजा अग्रसेन के नाम पर हिसार एयरपोर्ट का नामकरण कर हरियाणा के वैश्य समाज को यह संदेश दिया है कि सरकार वैश्य समाज की उपेक्षा नहीं कर रही है। साथ ही, यह भी संकेत दे दिया कि अभी इसी तोहफे से संतोष करो, मंत्री बनाने की गुंजाईश नहीं है।   

वैश्य समाज बीजेपी के साथ निष्ठा जुड़ा हुआ है। वैसे इस समाज की यही विशेषता है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, यह समाज उसी के साथ निष्ठा से जुड़ जाता है। बीजेपी की सरकार से लाभ लेने के लिए उसके साथ निष्ठा दिखाना इनकी मजबूरी है। साथ ही, वैश्य समाज को मौजूदा हालात में खुश करना सरकार की भी मजबूरी है क्योंकि पार्टी फंड के लिए धन  व्यापारी वर्ग ही देता है और व्यापारी वर्ग का अर्थ है वैश्य समाज।

इसके अलावा इन दिनों प्रदेश के एक बड़े तबके में बीजेपी और उसकी सरकार को लेकर भारी नाराजगी है। उस नाराजगी के दंश की पीड़ा मुख्यमंत्री को रोजाना सहनी पड़ती है। सरकार नहीं चाहती कि सभी वर्ग नाराज हो जाएँ। जो खुश हैं उन्हें खुश रखने के लिए हर सम्भव कोशिश की जाए। एक घोषणा मात्र से पाँच प्रतिशत लोग खुश होते हैं तो घोषणा सरकार के लिए घाटे का सौदा नहीं है। हल्दी लगी ना फिटकरी और रंग चोखा।   

मुख्यमंत्री की घोषणा से ब्राह्मण और दलित वर्ग में असंतोष हो सकता है। ब्राह्मण समाज को आपत्ति हो सकती है कि भगवान परशुराम के नाम पर नामकरण क्यों नहीं किया गया। उसी तरह भीमराव आंबेडकर की उपेक्षा से दलित वर्ग नाराजगी जाहिर कर सकता है। राजनीति में अपने अपने समाज को खुश करने के लिए उस समाज के नेताओं की ऐसी मांगें उठती रहती हैं जिनका कोई अंत नहीं है। 

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