उमेश जोशी 

जेल में बिताए करीब आठ साल की मानसिक थकान से शिथिल ओमप्रकाश चौटाला पिता चौधरी देवी लाल की विरासत वापस लाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। उनकी अनुपस्थिति में पौते दुष्यंत चौटाला ने उस विरासत पर कब्जा कर लिया था। अभय चौटाला बेबस देखते रहे और भतीजे दुष्यंत चौटाला ने परदादा की विरासत अपने नाम कर ली थी। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के समर्थकों और कार्यकर्ताओं को भी भ्रम हो गया था कि चौधरी देवी लाल का असली वारिस दुष्यंत चौटाला ही है। ओमप्रकाश चौटाला जेल में थे इसलिए उस विरासत का हरण नहीं रोक पाए। यह वही विरासत थी जिसके नाम पर वे पाँच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। 

जेल से छूटने के बाद ओमप्रकाश चौटाला पूरे जोश के साथ राजनीतिक यात्रा पर निकले हैं। वे 16 जनवरी 2013 को जब जेल गए थे तब इनेलो के पास 31 विधायक थे और जब जेल से वापस आए तब एक भी विधायक नहीं है। 1996 में इनेलो की स्थापना के बाद से यह पहला अवसर है जब विधानसभा में पार्टी शून्य पर सिमट गई है। एक सीट थी उससे भी किसान आंदोलन के समर्थन में इस्तीफा दे दिया। अब वो सीट वापस मिलने में भी संदेह होने लगा है। आज की तिथि में इनेलो का एक भी विधायक नहीं है। पार्टी का जनाधार तो दुष्यंत चौटाला की ओर खिसक गया था तो सीटें कहाँ से आतीं! 

 ओमप्रकाश चौटाला 86 वर्ष के हो गए हैं।  अब शरीर भी शिथिल हो गया है फिर भी पौते से आर पार की लड़ाई के लिए पूरे जोश के साथ निकले हैं। वे इनेलो को खिसका हुआ जनाधार वापस दिलाने के लिए लड़ रहे हैं। यह उनके जीवन की अंतिम लड़ाई है। ओमप्रकाश चौटाला बखूबी जानते हैं कि उनके जीते जी इनेलो में प्राण आ गए तो अभय चौटाला और उनके दोनों बेटों करण और अर्जुन का राजनीतिक भविष्य बच सकता है वरना उन्हें मजबूरन राजनीति के खेल से बाहर होना पड़ेगा।   

 अभय चौटाला पार्टी को सम्भालने में नाकाम रहे हैं। ओमप्रकाश चौटाला को अपने पौतों से उम्मीदें होंगी लेकिन पौते भी तभी कुछ कर सकते हैं जब उन्हें चौधरी देवी लाल की विरासत वापस मिले। ओमप्रकाश चौटाला को उस दिन कितनी तकलीफ हुई होगी जब उनकी अनुपस्थिति में उनकी पुत्रवधु कांता चौटाला जिला परिषद के चुनाव में अपने ही जोन से हार गई थीं। जिस जोन में चौटाला गाँव हो और वहाँ से चौटाला परिवार का कोई सदस्य हार जाए तो साफ संकेत है कि पार्टी का जनाधार खत्म हो चुका है। ओमप्रकाश चौटाला जीते जी इस प्राणघातक सच्चाई को गले नहीं उतार सकते इसलिए पार्टी में फिर से प्राण फूंकने के लिए ‘अब कुछ भी करेगा’ के अंदाज़ में निकले हैं। 

ओमप्रकाश चौटाला किसान आंदोलन में भी पहुंचे। पार्टी का जनाधार किसानों में ही है इसलिए किसान आंदोलन के नेताओं को संबोधित करने पहुंच गए। उन्हें वहाँ अपमान का घूंट पीना पड़ा। किसानों ने उन्हें मंच नहीं दिया। किसानों की भी मजबूरी थी लेकिन पार्टी को जल्द से जल्द खड़ी करने के लिए उतावले ओमप्रकाश चौटाला को किसानों की मजबूरी नहीं समझ आई और खुद के लिए अपमानजनक हालात पैदा कर लिए। 

 इस बीच अभय चौटाला ने एक तुर्प का पत्ता फेंका है कि ऐलनाबाद का उपचुनाव उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला लड़ेंगे। अभी यही तय नहीं है कि चुनाव आयोग उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति देगा या नहीं, अभय चौटाला ने थोथी घोषणा कर सभी खिलाड़ियों और संभावित उम्मीदवारों को भ्रम में डालने का प्रयास किया है। 

 पिछले दिनों चर्चा थी कि दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय भी ऐलनाबाद से चुनाव लड़ सकते हैं। इस पर एक राजनीतिक विश्लेषक का मत था कि कहने को तो अभय चौटाला और दुष्यंत चौटाला बहुत बड़े राजनीतिक विरोधी हैं लेकिन चुनाव में एक दूसरे का सामना नहीं करते। दुष्यंत चौटाला ने अपनी माँ नैना चौटाला को ऐलनाबाद से क्यों नहीं  लड़ाया या खुद क्यों नहीं लड़े। इसी तरह दुष्यंत चौटाला अपने भाई दिग्विजय को यहाँ से कभी चुनाव नहीं लड़वाएंगे। लेकिन, दादा को परदादा की विरासत लौटाएंगे भी नहीं। दादा और पौता का महाभारत होना बाकी है। 

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