तालिबान के बाद संघ के बदलते सूर।
नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।
भारत में इस्लाम को किसी तरह का ख़तरा नहीं है?
अगर हिंदू-मुसलमान एक हैं तो अब काशी-मथुरा जैसे विवाद क्यों खड़े हो रहे हैं?
ये बयान उत्तरप्रदेश चुनाव के पहले के हैं।

अशोक कुमार कौशिक

 पुरानी कहावत है नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। भारत को हिंदू राष्ट्र और हरेक भारतीय को हिंदू बताने वाले लोग अगर अचानक लोकतंत्र की बात करने लगे। हिंदू-मुसलमान में कोई भेद न होने की बात करने लगें, तो ऐसी ही कहावतें याद आने लगती हैं। अब अचानक हृदय परिवर्तन होना तो लगभग असंभव है। गांधी-नेहरू की शिक्षा, उनकी राजनीति और आदर्शों पर जो लोग आजीवन सवाल उठाते रहे, जो लोग हिंदू धर्म की रक्षा और गौरव के सवाल को जीवन का उद्देश्य बनाकर चलते रहे, वे एकदम से धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता की बात कर रहे हैं, तो आश्चर्य होगा ही। 

दरअसल मोहन भागवत ने यूंही नहीं कहा है कि भारत के हिंदू मुसलमान का डीएनए एक है इसके पीछे मोहन भागवत की फटी पड़ी है। दरअसल 18% मुसलमानों से मोहन भागवत को डर नहीं था।

मोहन भागवत को 18% मुसलमानों के साथ जो 20 से 25% हिंदू उनके समर्थन में खड़े हो गए हैं और यह संख्या 40 से 45% हो गई है डर उससे है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या ने भाजपा और संघ को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया। इस वक़्त कुछ ऐसा ही अचरज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान से हो रहा है।

रविवार को गाजियाबाद में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में ‘हिन्दुस्तानी प्रथम, हिन्दुस्तान प्रथम’ विषय पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है, चाहे वो किसी भी धर्म के क्यों न हो। लोगों के बीच पूजा पद्धति के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह सिद्ध हो चुका है कि हम 40 हजार सालों से एक ही पूर्वज के वंशज हैं। भागवत ने कहा कि भय के इस चक्र में न फंसे कि भारत में इस्लाम खतरे में है। उन्होंने कहा कि देश में एकता के बिना विकास संभव नहीं है। एकता का आधार राष्ट्रवाद और पूर्वजों का गौरव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू-मुस्लिम संघर्ष का एकमात्र समाधान ‘संवाद’ है, न कि ‘विसंवाद’।

 
श्री भागवत ने कहा कि भारत में इस्लाम को किसी तरह का ख़तरा नहीं है। मुसलमानों को इस तरह के किसी डर में नहीं रहना चाहिए। यदि कोई हिंदू कहता है कि किसी मुसलमान को यहां नहीं रहना चाहिए तो वह व्यक्ति हिंदू नहीं हो सकता। वहीं मॉब लिंचिंग में शामिल लोगों पर हमला बोलते हुए भागवत ने कहा कि ऐसे लोग हिंदुत्व के ख़िलाफ़ है। गाय एक पवित्र जानवर है लेकिन जो लोग दूसरों को मार रहे हैं वे हिंदुत्व के विरुद्ध जा रहे हैं। कानून को बिना किसी पक्षपात के उनके ख़िलाफ़ अपना काम करना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि हम एक लोकतंत्र में हैं। यहां हिंदुओं या मुसलमानों का प्रभुत्व नहीं हो सकता। यहां केवल भारतीयों का वर्चस्व हो सकता है। श्री भागवत ने अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि वह न तो कोई छवि बनाने के लिए कार्यक्रम में शामिल हुए हैं और न ही वोट बैंक की राजनीति के लिए। उन्होंने कहा कि संघ न तो राजनीति में है और न ही यह कोई छवि बनाए रखने की चिंता करता है। 

सरसंघचालक के इन उद्गारों को सुनकर एकबारगी लगता है कि हम कोई भागवत कथा के श्रोता बन गए हैं, जहां सब कुछ मोह-माया है, वाला ज्ञान बंट रहा है, वो भी बिल्कुल मुफ्त। लेकिन इस कथा के सम्मोहन से बाहर आएं तो सारा मंजर साफ दिखाई देने लगेगा। उत्तरप्रदेश में जल्द ही चुनाव होने हैं और भाजपा की सत्ता यहां दांव पर है। राम मंदिर बनना शुरु हो चुका है, लेकिन इसमें जिस तरह की कथित भ्रष्टाचार की ख़बरें बाहर आ रही हैं, उससे लोगों का भरोसा राम के नाम पर वोट लेने वालों से डिग सकता है। किसान आंदोलन के नेताओं ने भी ऐलान कर दिया है कि वे भाजपा के ख़िलाफ़ वोट डालने की अपील करेंगे। पंचायत चुनाव में भाजपा को ये नज़र आ गया कि समाजवादी पार्टी से उसे कड़ी टक्कर मिल सकती है। और सबसे बड़ी बात भाजपा के भीतर ही अब कलह होने लगी है, जिसका असर चुनाव पर पड़ सकता है।

लिहाजा भाजपा अभी से अपनी जमीन तैयार करने में लगी है। सवर्ण वोट उसके पाले में पहले से हैं, अब पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों पर भी नजर है। सोशल इंजीनियरिंग साधने में संघ भाजपा की मदद कर रहा है। मोहन भागवत भले ये कहें कि संघ राजनीति में नहीं है या वे वोट बैंक की राजनीति के लिए नहीं आए हैं, लेकिन उत्तरप्रदेश में भाजपा सरकार के भीतर खींचतान मचती है, या कोई बदलाव करना होता है तो संघ की बैठकें और उसके पदाधिकारियों की आवाजाही सारा सच बयान कर देती है। हक़ीक़त तो यही है कि भाजपा पर संघ का प्रभाव है।
इसलिए हिंदुत्व की राजनीति का बोलबाला इस वक़्त है।

मॉब लिंचिंग की निंदा करना एक बात है, लेकिन क्या श्री भागवत ये सवाल उठा सकते हैं कि भीड़ की हिंसा के शिकार अक्सर अल्पसंख्यक और दलित ही क्यों होते हैं। क्यों मुसलमानों के खान-पान पर सवाल उठाए जाते हैं, उनकी देशभक्ति के सबूत बार-बार मांगे जाते हैं। अगर देश में केवल भारतीयों का वर्चस्व होना चाहिए, तो क्यों कुछ भाजपा नेता विरोधियों को पाकिस्तान जाने की सलाह देते हैं। अगर हिंदू-मुसलमान एक हैं तो फिर अयोध्या और अब काशी-मथुरा जैसे विवाद क्यों खड़े हो रहे हैं। उत्तरप्रदेश में लव जिहाद जैसे जुमले कहां से आए, धर्मांतरण को लेकर विवाद क्यों खड़े हुए। ऐसे कई सवाल मोहन भागवत से पूछे जा सकते हैं। लेकिन उनके जवाब शायद कभी नहीं मिलेंगे। क्योंकि ये बयान उत्तरप्रदेश चुनाव के पहले के हैं, चुनाव के बाद शायद डीएनए से लेकर राष्ट्रीय एकता तक कई परिभाषाएं बदल जाएं।

सूरज पश्चिम से निकल सकता है , नफरत फैलाने वाले प्रेम भरी  तकरीरें दे सकते है , गोलियां चलाने वाले फूल बरसा सकते है।  ये सब कलयुग में जरूर संभव है वैसे भी अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए किसी भी हद तक जानें की कला भी तो घटिया राजनीति का हिस्सा है।
 कल गाजियाबाद में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जहर नहीं उगला बल्कि मीठी और सौहार्दभरी बातों से एकता के फूल बरसाए ताकि सामने बैठे मुसलमानों का दिल जीत सके।

बरसते भी क्यों नहीं क्योंकि सुनने वाले सभी मुसलमान ही तो बैठें थे ऐसे में मोहन भागवत उनके खिलाफ और जहर उगलने से तो रहे नहीं सो हिन्दू मुस्लिम एकता को लेकर यहाँ तक बोल पड़े की हम सभी भारतीयों का डीएनए एक ही है। 

भारत पर 1300 बरस पहले मोहम्मद बिन कासिम के हमले से लेकर अब तक जितने भी अरब , तुर्क , ईरानी अफगानीयों ने हमला किया उनकी भी औलादें यहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी रहती हुई आ रही है क्या इनका भी डीएनए एक हो गया । खैर सबका डीएनए एक बता दिया ये बात भी सत्य है क्योंकि हम सभी आदमजात जो ठहरे।

मोहन भागवत मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के इंद्रेश जी के कहने पर आ तो गए लेकिन दोनों ने मुस्लिमों को साधने के लिए राजनीति के सारे पैंतरे इस्तेमाल कर लिए । इंद्रेश कुमार तो यहां तक बोल पड़े कि हम सब पूर्वजों से भी साँझे यानि एक है , हम सब परम्पराओं से भी साँझे है हम सब हटकर अलग अलग चलेंगे तो नुकसान में रहेंगे इसलिए साँझे हो जाए मिलकर रहेंगे तो देश तरक्की करेगा। अरे भाई हमने कब कहाँ कि सांझा चुल्हा अलग करो हम तो एक चूल्हे की रोटी खुशी खुशी खाने को बेताब है।

अफसोस ये साँझे वाली बात अब आपको समझ में आई आग लगाने के बाद बुझाने से क्या फायदा। अगर ये नफरत की आग बुझानी ही है तो ये तक़रीर उन्हें भी भेला करके दीजिए जो माब लिंचिंग की आड़ में बेगुनाहों को ज़बरन सताते है। 

 कुछ दिनों पहले एक बुजुर्ग की दाढ़ी काटते हुए जबरन श्रीराम का नारा बुकन्द करवाने की वीडियों पर आंसू बहाते गिडगिडाते बुजुर्ग की बेबसी कैसे भूल गए।एक तरफ लिंचिंग की करतूतें जारी है। भीड़ भेला करके ये हरकतें करने वालों को संघ और सरकार कही ना कही सपोर्ट भी कर रही है । दूसरी तरफ तालिबान से हाथ मिलाकर दोनों सुर में सुर मिला रहे है। जबकि दोनों के सुर एक हो ही नहीं सकते।

अब जनता को इन दोनों के सुर के सांझेपन से निकले बेसुरे स्वर सुनना और देखना पड़ रहे है। समझ नहीं आता कि इस बेतालमेल के सुर पर खुश होवे या हंसे।

 वैसे ये संघी और मुसंघी एक ही विचारधारा के लोग है जिनका मकसद अपना उल्लू सीधा करना है और वो इस मकसद में लगभग कामयाब होते दिख रहे है। वो दिन अब दूर नहीं जब एक ही थाली में ये संघी मुसंघी बाहे चढ़ाकर खाना खाकर डकार मारते हुए नजर आए। फिर दोनों गले में हाथ डालकर किसी नुक्कड़ पर चाय की चुस्कियी के साथ सिगरेटों सुलगाते हुए भी दिख सकते है। पान की गिलोली को दाँतो से काटकर एक दूजे के मुंह में डाले दीवार रंगीन करते भी दिख सकते है क्योंकि एक तरफ तालिबान से मीटिंग तो दूजी तरफ मुसलमानों के बीच बैठकर संघ के सरदार का ये बयान तो यही इशारा कर रहा है।

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