कांग्रेस कल्चर

कांग्रेस के बारे में कहावत मशूहर है कि पहले ये पार्टी पौधारोपण करती है और फिर कुछ कुछ देर बाद ये जांचती-परखती रहती है-उखाड़ कर ये देखती रहती है कि कहीं ये पौधा जड़ तो नहीं पकड़ गया? कहीं इसकी जड़ें गहरी तो नहीं हो गई? कहीं ये पौधा, पेड़ तो नहीं बन गया। इस कहावत का सबंध पार्टी नेताओं को पहले पावरफुल बनाने, और उसके तुरंत बाद उनके पर कतरने से है। राजस्थान और पंजाब के बाद अब हरियाणा कांग्रेस में भी खुल कर जूतम पैजार होने लगी है। कांग्रेस अपने इसी अंदाज के कारण कई प्रदेशों से सत्ता से बाहर होती जा रही है। इस विराट कार्य का एकमात्र श्रेय पार्टी के दिग्गज और करिश्माई नेता राहुल गांधी को जाता है। हालांकि ये कार्यक्रम राहुल गांधी के होश संभालने से पहले से ही कांग्रेस में होते रहे हैं,लेकिन उनके जवान होने के बाद तो ये काम कांगे्रस की कल्चर में रच बस गया है। राहुल गांधी के कांग्रेस की प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर कमान संभालने के बाद से कांग्रेस की हालत खस्ता होती जा रही है। अब हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष सैलजा के खिलाफ विपक्ष के नेता भूपेंद्र हुडडा के खेमे ने मोर्चा खोल दिया है। इस खेमे के विधायकों ने सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष से हटाए जाने की मांग कांग्रेस हाईकमान के सामने कर दी है। सैलजा को पार्टी हाईकमान का आशीर्वाद हासिल है,इसलिए फिलहाल उनकी कुर्सी को खतरा नहीं दिखता। मतलब ये कि आने वाले समय में ये लड़ाई और ज्यादा तूल पकड़ेगी। जिस कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी के नाते हरियाणा सरकार के खिलाफ लड़ाई में खुद को झौंकना चाहिए था वहां नेता एक दूसरे को निपटाने में लगे हुए हैं। क्या इस लड़ाई को खत्म करने के लिए हाईकमान को तत्काल कोई ठोस पहलकदमी नहीं करनी चाहिए?

टीम राहुल गांधी

कांग्रेस में जिसे तथाकथित टीम राहुल प्रचारित किया जाता रहा है उसके कई नेता उनको सरेबाजार धोखा दे चुके हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राहुल गांधी के विश्वस्त रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया,जतिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे ही एक अन्य नेता सचिन पायलट राजस्थान में कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़े कर रहे हैं। हरियाणा में जिन डा.अशोक तंवर को अपना विश्वस्त मान कर राहुल ने लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा वो भी कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या राहुल गांधी का लोगों को परखने में हाथ तंग है? क्या वो गलत लोगों पर भरोसा करते हैं?

गलती पे गलती

इतिहास में झांके तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे कि कांगे्रस ने अपनी गलतियों से कई प्रदेशों से अपना सफाया कर लिया। कुछ उदाहरण पेश हैं। जैसे कि पश्चिमी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कभी कांग्रेसी ही थी। महाराष्ट्र के सीएम रह चुके एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार भी पुराने कांग्रेसी हैं। आंध्र प्रदेश के मौजूदा सीएम जगन रेडी तो विशुद्ध तौर पर कांग्रेस की मूर्खता का जीवंत परिणाम हैं। जगन के मुख्यमंत्री पिता डा.येदुगुड़ी संदिती राजशेखर रेड्डी का 2 सितंबर,2009 को हैलीकाप्टर हादसे में निधन हो गया। वो 14 मई 2004 से अपने निधन तक आंध्रप्रदेश के सीएम रहे। उनके निधन के बाद कांग्रेस के ज्यादातर विधायक और पार्टी संगठन के लोग चाहते थे कि उनके पुत्र जगन रेडडी को सीएम बनाया जाए। जनभावनाएं भी जगन के साथ थी। पार्टी आलाकमान को ये समझाया गया कि जगन को न बनाने में ही कांग्रेस की भलाई है। यंू अगर जगन को सीएम बना दिया गया तो फिर ऐसा और राज्यों में होने लगेगा और आलाकमान का दबदबा खत्म हो जाएगा। जगन और उनकी माता को कांग्रेस में अपमानित किया गया। जगन को दबाने के लिए उनके खिलाफ सीबीआई, ईडी और इंकम टैक्स की जांच कांग्रेस ने शुरू करवा दी। जो कांग्रेस आज मोदी सरकार पर सरकारी एजैंसियों के दुरूपयोग का इल्जाम चपेटती रहती है,उसी कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए इन्हीं एजैंसियों के जरिए जगन को जमकर प्रताड़ित किया। प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिग एक्ट में उन पर मामला दर्ज किया। जगन को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। जगन ने इस अपमान का बदला लेने की ठानी। उन्होंने अपने स्व. पिता वाईएसआर के नाम पर वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का गठन किया और कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। पूरे प्रदेश की पदयात्रा की। इसका नतीजा ये रहा कि दस बरस के भीतर वो प्रचंड बहुमत से आंध्र प्रदेश के सीएम बन गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीट में से 22 पर उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने जीत हासिल की। विधानसभा में भी उन्होंने 175 सीट में से 150 पर जीत हासिल की। जगन ने अपनी पार्टी को सत्ता दिलाने के साथ साथ ये भी प्रबंध किया कि कांग्रेस पार्टी को लोकसभा और विधानसभा में खाता तक नहीं खोलने दिया। वर्ष 2014 तक आंध्र प्रदेश में सत्ता में रही कांग्रेस की सात बरस में ही ऐसी दुगर्ति की शायद ही किसी ने कल्पना की हो।

यहां भी सरकार गंवाई

एक अन्य ताजा तरीन उदाहरण असम के मौजूदा सीएम हेमंत बिस्वा सरमा का है। सरमा पुराने कांग्रेसी हैं। असम के कांग्रेसी सीएम तरूण गगोई की सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे हैं। कहने को तो वो कई विभागों के मंत्री थे,लेकिन गगोई उनकी सरकार में कुछ चलने वलने नहीं देते थे। हेमंत बिस्वा ने कई दफा अपनी बात कांग्रेस हाईकमान तक पहुंचाने की कोशिश की। बड़ी मुश्किल से उनको आलाकमान के नेता मिलने-सुनने का समय देते थे। राहुल गांधी ने कई मिन्नतों के बाद हेमंत को नई दिल्ली में तुगलक लेन स्थित सरकारी आवास पर मीटिंग का समय दिया। ये दोनों की आखिरी मुलाकात साबित हुई। हेमंत ने राहुल से कहा कि ज्यादातर विधायक सीएम तरूण गगोई के खिलाफ हैं, इसलिए उनको हटाया जाए। 2019 हाऊ मोदी विन इंडिया, नामक पुस्तक में इस प्रसंग का जिक्र किया गया है कि राहुल ने हेमंत के कहे को बिल्कुल भी तव्वजो नहीं दी। राहुल ने हेमंत को इस मीटिंग में साफ साफ कहा- डू व्हाट एवर यू वांट टू डू,आई एम नोट कनर्सन यानी आपको जो करना है करिए,मुझे उस से कोई लेना देना नहीं है। ये कह कर राहुल गांधी अपने जर्मन शैफैर्ड कुत्ते को दुलारने-पुचकराने और बिस्कुल खिलाने में तल्लीन हो गए। हेमंत ने अपने इस अपमान का बदला ब्याज समेत लिया। वो कांग्रेस को छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए। हेमंत असम के लोकप्रिय नेता हैं। उनकी लोकप्रियता का फायदा भाजपा को मिला और वहां वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में पहली दफा कमल खिला। भाजपा की सरकार बनी। भाजपा ने तब असम का सीएम हेमंत को ना बना कर सर्बानंद सोनेवाल को बना दिया,लेकिन इस से वो निराश नहीं हुए। वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सर्बानंद सोनेवाल को फिर से राज आने पर उनको सीएम के लिए प्रौजेक्ट नहीं किया। इस विधानसभा चुनाव में बतौर पर्यवेक्षक गए हरियाणा कैडर के एक आईएएस अफसर के मुताबिक जनता में लगभग ये स्पष्ट था कि इस दफा अगर भाजपा राज में आती है तो सानेवाल की बजाय हेमंत सरमा को ही सीएम बनाया जाएगा। भाजपा राज में रिपीट हुई और उन हेमंत को सीएम बना दिया गया जो कांग्रेस से दलबदल कर आए थे। कांग्रेस अपनी गलतियों की वजह से असम से भी साफ हो गई। सवाल ये है कि इस तरह की गलतियों से कांग्रेस को हासिल क्या हुआ? क्या अपनी इसी तरह की गलतियों की वजह से हरियाणा को भी कांग्रेस हमेशा की तरह तो गंवा नहीं देगी?

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