-कमलेश भारतीय

उत्तराखंड की राजनीति में हो रही उथल पुथल ने यह सवाल मन में उठाया कि कौन नचाये नाच , इन कठपुतलियों को ? केंद्र के हाथों की कठपुलतियां हो गये ये राजनेता । जब चाहा मुख्यमंत्री बना दिया और जब चाहा हटा दिया । बस । भाजपा अध्यक्ष महोदय से मिलने जाते हैं और दूसरे दिन प्रेस कांफ्रेंस कर इस्तीफा दे देते हैं । फिर ये कठपुतलियां हुईं या नहीं ? दो दो बार हो गया ।

इससे एक बात साफ है कि उत्तराखंड में भाजपा का अगला चुनाव जीतना मुश्किल है और कोई ऐसा चेहरा चाहिए जो चुनाव जीता सके । यानी भाजपा को अपने ही मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं हुआ और हटा दिये मुख्यमंत्री महोदय । दो दो बार । अब नये मुख्यमंत्री होंगे पुष्कर धामी ।

ऐसी कठपुतलियां हरियाणा में भी कांग्रेस के राज में नचायी जातीं रहीं । खासतौर पर चौ बंसीलाल और चौ भजन लाल को ऐसे ही नचाया जाता रहा । दो दो तलवारें एक म्यान में कैसे समा जातीं ? छत्तीसगढ़ में आईएएस जोगी ने कठपुतली बनने से इंकार किया और नयी पार्टी बना ली थी । वैसे हरियाणा में भी समय समय पर चौ बंसीलाल और चौ भजनलाल ने अलग होकर पार्टियां बनाईं थीं । यह भी एक प्रकार से कठपुतली बनने से इंकार ही होता है । पर आखिर कांग्रेस में ही लौटना पड़ा । राजस्थान में भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री बसुधरा राजा ने भी कठपुतली बनने से इंकार कर रखा है । ममता बनर्जी कांग्रेस में इसी रोल को नहीं निभाना चाहती थीं , इसलिए तृणमूल कांग्रेस बना ली और सफल भी रही ।

कांग्रेस कल्चर की आलोचना करने वाली भाजपा सत्ता में आने के बाद उसी के कल्चर को अपनाए हुए है और उसी के रंग में रंग गयी है । फिर फर्क किस बात का ? विचारधारा नाम की चिड़िया कहां फुर्र हो गयी ? क्या चुनाव जीतने के लिए ही पंजाब कांग्रेस में सिर फुटोबल हो रही है ? क्या कैप्टन को कठपुतली बना पायेगी कांग्रेस हाईकमान ? राजस्थान में अशोक गहलोत भी इतने कद्दावर हो गये हैं कि कठपुतली बनाना मुश्किल । जब तक केंद्र विधायकों की आवाज़ नहीं सुनेगा तब तक कठपुतली कल्चर चलता रहेगा ,,,

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