पंचकूला। : राष्ट्रीय लोकदल हरियाणा की नेत्री पूनम चौधरी ने कहा कि 3 कृषि कानूनों के खिलाफ देश के किसानों ने पिछले 7 महीने से कड़ाके की ठंड झेली, तपती गर्मी की लू झेली, पुलिस की लाठियाँ और सरकारी अत्याचार झेला, निरंतर अपना अपमान झेला, 500 सौ से अधिक किसानो की शहादत का गम झेला और अब बरसात झेल रहे हैं। पूनम चौधरी ने कहा कि इतना ही नहीं, देश के किसान पिछले 7 साल से अहंकारी सत्ता के दमन चक्र को भी सह रहे हैं। सरकार का हृदय इतना कठोर क्यों है? ये अपने ही लोग हैं, क्या सरकार इनके दुःख को महसूस नहीं कर पा रही? पूनम चौधरी ने बताया कि सरकार को जिद और अहंकार छोड़कर किसानों से बात कर मांग स्वीकार करनी चाहिए।

पूनम चौधरी ने कहा कि एक तरफ देश के कृषि मंत्री कह रहे हैं कि भारत सरकार कानून के किसी भी प्रावधान पर बात करने के लिए भी तैयार है और उसका निराकरण करने के लिए भी तैयार है। तो फिर सरकार किसानों द्वारा बातचीत शुरू करने के प्रस्ताव को क्यों नहीं मान रही? किसानों के प्रस्ताव पर सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये से ऐसा लगता है कि सरकार को देश के किसानों की कोई चिंता ही नहीं है। सरकार आन्दोलन को समाप्त करवाना ही नहीं चाहती। पूनम चौधरी ने कहा कि कोरोना महामारी के फैलने की भी कोई चिंता नहीं है। सरकार किसानों के धैर्य का इम्तेहान ले रही है। वो सोचती है कि किसान परेशान होकर अपने आप घर चले जायेंगे, जो उसकी बड़ी भूल है। सरकार देश के किसानों और देश की जनता को गुमराह क्यों कर रही है? अगर सरकार वास्तव में किसानों की समस्या का समाधान करना चाहती है तो वो वार्ता का दिन, स्थान, समय तय कर उसकी सार्वजनिक घोषणा करे। 

सरकार लगातार किसान विरोधी नीतियों से, तरह-तरह के हथकंडों से किसानों की आवाज दबाने का प्रयास कर रही है। आंदोलन में शामिल किसानों का उत्पीड़न किया जा रहा है। लोकतांत्रिक दायरे में चल रहे इस आन्दोलन को सरकार जितना भी दबाने का प्रयास करेगी, यह आंदोलन उतना ही मजबूत होता जाएगा।

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