आपातकाल या अनुशासन पर्व ? 
आलोचना तो छोड़िये सरकार से सवाल करने को भी अब देश विरोधी माना जाता है ।
आज तो सोशलमीडिया पर खिलाफ कमेन्ट भी कोई कर दे तो गिरफ्तार कर लिया जाता है I 
क्रिकेट प्रेमी तो दूर, कोई भारतीय खिलाड़ी भी उस समय विश्व कप जीतने के बारे में सोच नहीं रहा था।
कौन जानता था कि कपिल के जांबाज खिलाड़ी इतिहास रचने जा रहे हैं ।

अशोक कुमार कौशिक 

आज से 46 साल  पहले तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गॉधी ने देश मे आपात काल लगाया था । आपात काल लगने के फलस्वरूप नागरिकों के मूल भूत अधिकार निलंबित कर दिये गये थे। प्रेस की आज़ादी समाप्त कर दी गई थी और विरोधियों को जेल मे डाल दिया गया था । सरकार द्वारा इसे अनुशासन पर्व की भी संज्ञा दी गई थी। देश मे एक अजीब सा भय का वातावरण व्याप्त था। 

आपात काल मे सरकारी महकमो मे काम मे तेज़ी आ गई थी भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो गया था तथा अपराधों मे उल्लेखनीय कमी आ गई थी । सभी ट्रेने समय पर चलने लगी थी । कालाबाज़ारी भी समाप्त हो गई थी । कुछ अपवादों को छोड़ दे तो आपातकाल मे आम आदमी को कोई परेशानी नज़र नही आती थी पर फिर भी आम आदमी आपातकाल को स्वीकार नही कर पा रहा था क्योंकि वह संविधान द्वारा प्रदत्त मूल भूत अधिकारो के हनन से व्यथित था और इंदिरा गांधी को सन 1977 के चुनाव मे सत्ता से बेदख़ल कर अपने ग़ुस्से का इज़हार कर दिया। हालाँकि  33 महीनों बाद ही पुन: इंदिरा की सत्ता मे वापसी हो गई थी पर क्यों हुई और कैसे हुई यह मुददा अलग है। मूल बात यह है कि हम अपने अधिकारो और स्वतन्त्रता पर कुठाराघात बर्दाश्त नही कर सकते थे ।

आपात काल के बाद विपक्षी दलों ने स्व. जयप्रकाश नारायण के  प्रयासों से एकजुट होकर जनता पार्टी का गठन किया था और जनता ने बहुमत देकर सत्ता सौंप भी दी थी , पर उससे जनता का मोह जल्द ही भंग हो गया था और 1980 के चुनाव में विपक्षी दलों के नेताओं का अपनी लोकप्रियता का भ्रम भी दूर हो  गया था। कहने का मतलब यह है कि जनता को आपातकाल से नाराज़गी थी , जिसकी सजा जनता ने उन्हें दी पर विपक्षी दलो के नेता भी उसकी पसंद नहीं थे।

वर्तमान मे यानी 46 साल बाद हमारी सोच या मानसिकता मे ज़बरदस्त बदलाव आाया है जो हैरान करता है। अब हमें प्रेस या मीडिया पर पाबंदी से दिक़्क़त नही है और न ही अब हमें अपने संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारो के हनन से परेशानी होती है। यदि सत्ता पक्ष की किसी नीति या जनहित का कोई मुद्दा उठाने के कारण किसी को प्रताड़ित किया जाता है तो हमें कोई फ़र्क़ नही पड़ता । सरकार की आलोचना तो छोड़िये सरकार से सवाल करने को भी देश विरोधी माना जाने लगा है । लोकतंत्र और संविधान की निगहबानी करने वाली संस्थाये भी सहमी हुई सी रहने लगी है ।

क्या अब लोकतंत्र ओर संवैधानिक अधिकारों  के प्रति हमारी सोच बदलने लगी है ? यह बदलाव देश और समाज के कितने हित में है यह तो समय ही बतायेगा पर यह निश्चित है जिस समाज में जागरूकता या चेतना नहीं होती उसे समाज तो नहीं कहते।

आपातकाल या अनुशासन पर्व 

यदि 1975 में आपातकाल नहीं लगा होता तो शायद देश  को अत्यंत विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता   I आपातकाल का विरोध करने वाले इससे असहमत हो सकते है ,लेकिन जरा उस समय की  परिस्थितियों पर गौर करें I ऐसे हतोत्साहित नेता जो राजनैतिक रूप से अपने को इंदिरा गाँधी से मुकाबला करने में अक्षम और असहाय महसूस कर रहे थे और उनसे जलन रखते थे , उन्होंने पुरे देश में युवाओं को सरकार ही नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया था I वैसे भी इस दौर में युवाओं का चरित्र आज के दौर से भिन्न प्रकृति का था I उस समय युवा स्वभावतः व्यस्था विरोधी माना जाता था , ऐसे में उसे बड़ी आसानी के साथ विरोध के लिए उकसा दिया गया I

 हिंदुस्तान और इंदिरा गाँधी की बढ़ती हुई ताकत को देख कर विपक्ष विशेषकर दक्षिणपंथी , कांग्रेस के अन्दर बैठे हुए कुछ लोग और अमेरिका पचा नहीं पा रहे थे इन सब ने मिलकर जेपी को मोहरा बनाया और उनकी आड़ में देश में अराजकता पैदा की I जेपी और गांधीवादी इस जाल में फंस गए थे I

 आपातकाल के नायक जेपी ने दिल्ली की अपनी विशाल जनसभा में पुलिस बलों का आवाहन किया कि वे सरकार के आदेशों / निर्देशों को मानने से इंकार कर दे I कल्पना कीजिये यदि आपातकाल लगा कर इनकी गिरफ्तारियां न की जाती और सशत्र बल सरकार के निर्देशों को जेपी के आवाहन के अनुरूप मानने से इंकार कर देता जिसकी सम्भावना थी तो देश कितनी बड़ी अराजकता के बीच होता I क्या इसका अनुचित लाभ कुछ ही दिनों पहले बुरी तरह पराजित पाकिस्तान और अमेरिका तथा चीन जैसे देश नहीं उठाते ? क्या जेपी और दूसरे नेता इस स्थिति को नियंत्रित कर सकते थे ?

आज सरकार में बैठे जो लोग आपातकाल को कोस रहे है यदि उनके खिलाफ कोई नेता इस तरह का विद्रोह करे तो वे उसके खिलाफ क्या सख्त कदम नहीं उठायेगे ? आज तो सोशल मीडिया पर इनके खिलाफ एक कमेन्ट भी कोई कर दे तो उसे गिरफ्तार कर लिया जा रहा है I आपातकाल पर अपनी बाहें चढ़ाने वाले नेता जो आज उसी के लिए पेंशन ले रहे हैं क्या वर्तमान सरकार के खिलाफ जेपी की तरह का विद्रोह कर अपने को जेलों से बाहर पा सकते हैं ?

46 साल बाद भी आपातकाल को कोसने वाले लोगो में यदि जरा भी नैतिक साहस हो तो उन्हें आज के अघोषित आपातकाल के खिलाफ बोलना चाहिए । वैसे उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए की जनता ने चन्द महीनो में ही इंदिरा जी को पुनः वापस ला कर एक तरह से आपातकाल के औचित्य को स्वीकार कर लिया था I

आपातकाल का निष्पक्ष मूल्यांकन करते हुए विनोबा जी ने उसी समय आपातकाल को अनुशासन पर्व कहा था । आपातकाल के नायक जे पी को भी मोरार जी के शपथ ग्रहण के समय ही अपनी भूल का एहसास हो गया था।

 25 जून 1983, वर्ल्ड कप!

क्रिकेट प्रेमी तो दूर, कोई भारतीय खिलाड़ी भी उस समय विश्व कप जीतने के बारे में सोच नहीं रहा था। भारत के सलामी बल्लेबाज श्रीकांत की तब नई-नई शादी हुई थी। उन्होंने अपनी पत्नी से मजाक करते हुए कहा था कि हम इंग्लैंड विश्व कप जीतने नहीं बल्कि हनीमून मनाने जा रहे हैं। तब कौन जानता था कि कपिल के जांबाज खिलाड़ी इतिहास रचने जा रहे हैं ।

फाइनल में वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लॉयड ने टॉस जीतकर पहले भारत को बल्लेबाजी के लिए कहा। भारतीय टीम 54.4 ओवरों में केवल 183 रन जोड़कर आउट हो गई। सबसे अधिक 38 रन श्रीकांत ने बनाए थे। यहां तक मैच में वही हो रहा था, ‍जो सोचा जा रहा था। भारतीय टीम वेस्टइंडीज की काली आंधी (गेंदबाज़ी आक्रमण) के सामने कम स्कोर बना पाई थी। सभी सोच रहे थे कि मैच जल्द खत्म हो जाएगा, लेकिन कपिल के जांबाज कुछ और इरादे लेकर ही मैदान में उतरे थे।

वेस्टइंडीज़ के सलामी बल्लेबाज गार्डन ग्रिनीज़ को बलविंदर संधू ने एक रन के निजी स्कोर पर बोल्ड कर दिया। इस समय वेस्टइंडीज का स्कोर 5 रन था। हालांकि इसके बाद डेसमंड हैंस और विवयन रिचर्ड्‍स ने वेस्टइंडीज़ की पारी को दिशा दी। ‍जब ये दोनों बल्लेबाज दूसरे विकेट के लिए 45 रन जोड़ चुके थे, तब फिर लगने लगा कि इंडीज की लगातार तीसरी बार विश्व कप जीतने की तमन्ना पूरी हो रही है।

लेकिन इसी स्कोर पर मदन लाल ने हैंस को रोजर बिन्नी के हाथों कैच करवा दिया और इंडीज का स्कोर 50/2 हो गया। अभी स्कोर कार्ड में 7 रन ही जुड़े थे कि भारत की जीत में सबसे बड़ा रोड़ा विवियन रिचर्ड्‍स को मदन लाल ने अपने कप्तान के हाथों कैच करवाया और भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को आन्दोलित कर दिया। रिचर्ड्‍स ने 33 रन बनाए और इंडीज की इस पारी में यह सबसे बड़ा स्कोर रहा। ‍भारतीय कप्तान ने बहु‍त दूर तक दौड़ लगाकर रिचर्ड्‍स का मुश्किल कैच लपका था। कपिल ने यह कैच नहीं बल्कि विश्व कप लपका था। रिचर्ड्‍स के आउट होते ही भारतीय खिलाड़ियों में नई जान आ गई और टीम इंडिया इंडीज पर पूरी तरह हावी हो गई।

76-6 के स्कोर के बावजूद जेफ डुज़ोन और मेल्कम मार्शल की जोड़ी जम गई और इंडीज मैच में वापसी करता दिखाई दिया। दोनों बल्लेबाज़ स्कोर को 119 तक ले गए। तभी स्लिप में खड़े सुनील गावस्कर ने भारतीय कप्तान से मोहिंदर अमरनाथ को गेंदबाज़ी करवाने को कहा। कप्तान ने सीनियर खिलाड़ी की सलाह मानी और अमरनाथ ने डुज़ोन (25) और मार्शल (18) को पैवेलियन लौटाकर भारत की विश्व कप खिताबी जीत पर मुहर लगा दी।

वेस्टइंडीज की पूरी टीम 52 ओवरों में 140 रन पर आउट हो गई और भारत ने यह मैच 43 रनों के अंतर से जीत लिया। मोहिन्दर अमरनाथ को उनके हरफनमौला प्रदर्शन (26 रन और 3 विकेट) के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।

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