डॉ. योगेश वासिष्ठ (महामन्त्री, हरियाणा प्रान्त) गुरुग्राम – ‘कबीर जयंती’ के उपलक्ष्य में ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम’ इकाई की गोष्ठी में सम्मिलित होने वाले सुधीजन के मन को कबीर के विराट व्यक्तित्व की सरल स्निग्ध प्रभा से आप्लावित यह गोष्ठी कबीर वाणी की सुगंध से भर भीतर तक सराबोर कर गई| गूगल मीट के आभासी मंच पर गुरुग्राम इकाई द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी हरियाणा प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. सारस्वत मोहन मनीषी की अध्यक्षता एवं इकाई अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा की सादर उपस्थिति में संपन्न हुई। भगवती वीणापाणि के स्मरण के साथ गोष्ठी का सञ्चालन गुरुग्राम’ इकाई की महामंत्री सुश्री मोनिका शर्मा द्वारा किया गया | कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में गुरुनानकदेव विश्वविद्यालय अमृतसर से हिंदी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. सुनील कुमार तथा विशिष्ट वक्ता के रूप में परिषद की गुरुग्राम इकाई के साहित्य मंत्री श्री त्रिलोक कौशिक ने भाग लिया| प्रांतीय महामंत्री डॉ योगेश वासिष्ठ ने सभी वक्ताओं का शाब्दिक स्वागत करने के उपरान्त अपने वक्तव्य में कबीर दास जी के युगद्रष्टा रूप का निरूपण करते वर्तमान में कबीरदास जी की वाणी की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि निर्गुण भक्तिधारा के सन्त कवि कबीर ने अपने युग की कुरीतियों, पाखंडों आदि का खुलकर विरोध किया। गुरु ग्रन्थ साहिब में भी उनके पदों को स्थान मिला। अपने प्रचुर आत्मविश्वास व फक्कड़ स्वभाव के कारण ही उन्होंने पढ़े-लिखे न होते हुए भी तथाकथित विद्वानों को चुनौती दी। प्रथम सहभागी वक्ता के रूप में साहित्यकार सविता सयाल ने कबीर वाणी के अनेक दोहे उद्धृत करते हुए कबीरदास जी के अनेक रूपों से श्रोताओं को परिचित करवाया| दूसरी सहभागी वक्ता श्रीमती वीणा अग्रवाल ने कबीर के कालजयी दोहों का सस्वर गायन करते हुए कबीर के व्यक्तित्व के सर्वधर्म समभाव, स्पष्टवादिता, मौलिक चिंतन आदि प्रवृत्तियों का उल्लेख किया| डॉ नलिनी भार्गव ने अपनी वाराणसी यात्रा के दौरान कबीर चौरा के दर्शन का आध्यात्मिक अनुभव सबके साथ साझा करते हुए मानो सबको कबीर चौरा के प्रत्यक्ष दर्शन ही करवा दिए। कबीर के प्रसिद्ध दोहों के माध्यम से नलिनी ने कबीर वाणी में निहित शिक्षाओं, सामाजिक सरोकारों और नैतिक मूल्यों से श्रोताओं को परिचित करवाते हुए कबीर के साहित्य की लोक यात्रा करवाई| विशिष्ट वक्ता के रूप में त्रिलोक कौशिक ने एक सर्वथा नवीन आलोक में कबीर की व्याख्या कर सभा को विस्मित किया। कबीर के आडम्बर विरोध को घूरे में आग लगाना कहकर कौशिक ने कबीर वाणी को बंद आँखों को खोलने वाला तथा कुछ खुली आँखों को बंद करने वाला बताकर कबीर की विचारधारा को स्वार्थलोलुप व्यक्तियों की हित साधना में बाधक बताया| एक समाज-सुधारक और प्रहारक के रूप में कबीर को धर्म के मर्म को बेहतर रूप में जानने वाला महान चिन्तक बताते हुए उन्होंने इस धारणा को भी तोड़ने का प्रयास किया कि कबीर स्त्री विरोधी थे। उनका तर्क था कि जो स्वयं आत्मा को स्त्री रूप में मान उसकी प्रियतम परमात्मा से विरह की तड़प का अनुभव कर सके, उससे बेहतर स्त्री मन की थाह भला और कौन जान सकता है| सुरेखा शर्मा ने भी कबीर साहिय के मूलभूत तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए कबीर के शिल्प सौन्दर्य और अलंकार प्रयोग के विषय में चर्चा की | गुरु रामानंद से राम नाम का मन्त्र ग्रहण करने की कबीरदास के जीवन की अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना के कथा-रस से श्रोताओं के मन को रससिक्त करते हुए उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जीवन में कबीर वाणी उतारने में ही जीवन की सार्थकता है| मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. सुनील कुमार ने कबीर की गुरु भक्ति से प्रेरित हो अपने गुरु को याद करते हुए अपने वक्तव्य के आरम्भ में ही “मसि कागद छूयो नहीं, कलम गहि नहीं हाथ” कहने वाले कबीर के अध्ययन के बिना हिंदी साहित्य की पढ़ाई को अधूरा बताया| साथ ही उन्होंने कबीर को कर्म-प्रधान समाज के पैरोकार के रूप में प्रस्तुत करते हुए आज की विषमताओं में कबीर वाणी के सार को जीवन में उतारने की महत्ता पर बल दिया| आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की कबीर के विषय में मान्यताओं पर अपनी स्वीकृति के हस्ताक्षर करते हुए कबीर की वाणी के मूल तत्व और भारतीय संस्कृति के केंद्र बिंदु –‘सत्य’ को जीवन में उतारने की आवश्यकता पर बल दिया| कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सारस्वत मोहन मनीषी ने मंगलाचरण के साथ उद्बोधन आरम्भ करते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के द्वारा विवेचित कबीर का अक्खड़-फक्कड़ व्यक्तित्व और वाणी का डिक्टेटर स्वरूप संगोष्ठी में रखा| कबीर द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञान की महत्ता –“जग कहता कागद लिखी, मैं कहता आँखनि देखि” का उल्लेख करते हुए हुए मनीषी जी ने कबीर के निर्भीक, स्पष्टवादी, विसंगति प्रहारक रूप की व्याख्या की गई| मनीषी जी ने कबीर जयंती के उपलक्ष्य में विशेष रूप से अपने दोहों का पाठ करके सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया- “ रूढ़िवादिता की सभी, तोड़ गया जंजीर|सबकी पीड़ा पी गया, उसका नाम कबीर||” “गुण-गौरव-गरिमा बढ़े, सब कुछ लालमलाल|पाकर पुत्र कबीर-सा, हिंदी हुई निहाल||” अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांतीय मार्गदर्शक डॉ. पूर्णमल गौड़ ने कबीर जयंती पर इस विशेष संगोष्ठी आयोजित करने के लिए गुरुग्राम इकाई के सभी सदस्यों को साधुवाद दिया| कार्यक्रम के अंत में प्रांतीय कोषाध्यक्ष श्री हरीन्द्र यादव ने सभी वक्ताओं तथा सभा में उपस्थित श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया और कालजयी, युगांतकारी कबीर की वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता बढ़ने के प्रति आशान्वित करते हुए सभा का समापन किया| गोष्ठी में प्रान्तीय उपाध्यक्ष रामधन शर्मा, प्रान्तीय साहित्य मन्त्री नवरत्न, शालिनी रस्तोगी, मनजीत कौर, विदु कालरा, अलका रानी, तनु भारद्वाज, समता यादव,रमणीक मोहिनी, शकुंतला मित्तल, सरोज गुप्ता, कुसुम यादव, सुरेंद्र मनचंदा, नरेन्द्र कुमार आदि अनेक साहित्यकारों ने भाग लिया। Post navigation 25 जून 1975 को लगाया गया आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में काला अध्याय है : विद्रोही सरकार किसानों से बात करें तथा सभी मुकदमें वापस लें-डा सुशील गुप्ता सांसद, सहप्रभारी आम आदमी पार्टी