-कमलेश भारतीय पत्रकारिता में स्पांसर्ड खबरें आने से इसकी साख गिरी और यदि यही रूझान रहा तो आने वाले कुछ सालों में खबरों में लोगों की कोई दिलचस्पी नहीं रह जायेगी। इसलिए मीडिया को आत्म मंथन करना चाहिए । यह कहना है नवभारत टाइम्स और बिंदिया और प्रयुक्ति आदि में संपादन कर चुकी और आजकल फ्रीलांसर जर्नलिस्ट दीप्ति अंगरीश का । मूल रूप से दिल्ली की निवासी दीप्ति एंग्रीश से मेरा परिचय प्रयुक्ति के दिनों में हुआ जब मेरे अनेक लेख इसमें आने लगे तब पता चला कि यह कमाल दीप्ति एंग्रीश कर रही है । फिर दिल्ली सपरिवार जाने पर हंसराज काॅलेज और हिंदी भवन के कार्यक्रमों में मुलाकातें भी हुई । -पढ़ाई लिखाई कितनी ?-एम ए हिंदी दिल्ली यूनिवर्सिटी से और जर्नलिज्म टाइम्स ऑफ इंडिया से दो वर्ष की डिग्री । -पहली जाॅब ?-नवभारत टाइम्स में ही । सात साल काम किया । फिर बिंदिया महिलाओं की पत्रिका में । उसके बाद प्रयुक्ति समाचार पत्र में । अब फ्रीलांसर। और हां, बीते कुछ सालों से अपना वेबसाइट न्यूज हरपल भी चला रही हूं। -जर्नलिज्म में रूचि कैसे जागी ?-टी वी एंकर्ज मीमांसा मलिक और अलका सक्सेना को देखकर । पता किया कि कैसे बन सकती हूं ऐसी ? पत्रकारिता करके । बस । टाइम्स ऑफ इंडिया और आईआईएमसी के फाॅर्म भर दिये । टाइम्स ऑफ इंडिया में चुनी गयी। -कौन पत्रकार पसंद हैं ?-सुधीर चैधरी, रवीश कुमार, मीमांसा मलिक और राजदीप सरदेसाई । -परिवार ने कैसे स्वीकार किया आपको पत्रकार?-हमारे परिवार में दूर दूर तक कोई जर्नलिस्ट नहीं रहा। परिवार के कुछ रिश्तेदारों को यह भी पता नहीं कि मैं करती क्या हूं। -किस तरह की पत्रकारिता में रूचि ?-इनासाइड स्टोरीज में बहुत रूचि रही और अब फीचर राइटिंग में । अनेक पत्र पत्रिकाओं में मेरे फीचर आते हैं । -फ्रीलांसर होने से जिंदगी चल जाती है ?-नहीं पर मनपसंद काम करने से खुशी मिलती है । प्रसिद्धि मिलती है पर पैसा नहीं । -आजकल की पत्रकारिता पर क्या कहोगी ?-स्पांसर्ड स्टोरीज आने से इसमें लोगों का विश्वास उठता जा रहा है । यदि कुछ साल और यह सिलसिला चलता रहा तो न कोई सुनेगा, न देखेगा और न कोई पढ़ेगा । इसलिए आत्ममंथन की जरूरत है । आजकल आपकी कविता सोशल मीडिया पर दिखती है। कब से शुरू किया ?साल तो याद नहीं। काॅलेज टाइम से कुछ लाइनें लिखती थीं। साल 2010 में पहली बार एक कविता ने अपना रूप धरा। उसके बाद लिखती रही। -कविता एक अलग अंदाज में, कहां से आती है ऐसी सोच ?जीवन के जो अनुभव हैं, मूल रूप से उसे ही पिरोती हूं। जो सोचा, देखा और समझा। उसी को शब्दरूप में ढालने की कोशिश करती हूं। -जो लोग मीडिया में आना चाहते हैं, उनके लिए क्या कहना चाहेंगे ?यदि आपमें पेशेंस है। चीजों को औरों से बेहतर समझने की ललक और क्षमता है, तो यह क्षेत्र आपका स्वागत करने को तैयार है। -कोई पुस्तक ?-जल्द ही दो पुस्तकें आने वाली हैं। एक कविता और दूसरी साक्षात्कार पर अधारित है। -आगे क्या ?-कभी भी इलेक्ट्रानिक मीडिया में जा सकती हूं । अपना यह सपना भी तो पूरा करना है । वैसे, मुंबई भी बुरी नहीं है। वहां की अलग दुनिया है। हमारी शुभकामनाएं दीप्ति अंगरीश को । Post navigation कोरोना से जंग जीतने के लिए प्रयास जारी : प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज मूर्ति पवित्र या अपवित्र कैसे ?