-कमलेश भारतीय

हरियाणा में चौ देवीलाल अपने आप में एक मिसाल नेता रहे । लोगों के बीच जाकर समस्याएं सुनने और सुलझाने में माहिर बल्कि जादूगरी के मालिक । इनके परिवार से लोगों को जनता ने सिर आंखों पर बिठाया। यह मान कर कि चौ देवीलाल की परंपरा और राजनीति को आगे बढ़ायेंगे । पर हुआ एकदम सोच के उलट । पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके सांसद पुत्र अजय चौटाला को जेबीटी टीचर्ज भर्ती घोटाले में जेल जाना पड़ा । पीछे चाचा भतीजों में ठन गयी और जब बड़े चौटाला पैरोल पर आए तो चाचा ने भतीजों को पार्टी से निकलवा दिया । इस तरह परिवार और पार्टी में फूट पड़ी जो दो पार्टियों में बंट गयी। एक तो इनेलो ही रही और दूसरी जननायक जनता पार्टी यानी जजपा बन गयी । विधानसभा चुनाव में चाचा अभय तो इकलौते जीत कर आए लेकिन भतीजे दुष्यंत चौटाला और उनकी मां नैना चौटाला समेत दस विधायक आए और कुछ ऐसा हुआ कि सत्ता में भागीदारी भी मिल गयी और उप-मुख्यमंत्री पद भी । अब पार्टी कार्यालयों पर कब्जा किसका ? सिरसा का चौ देवीलाल विश्विद्यालय किसका? इन पर खूब ज़ोर आज़माइश चली ।

अभी नया दृश्य यह है कि उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सीडीएलयू में चौ देवीलाल की मूर्ति का अनावरण किया था और ठीक तीन दिन बाद अभय चौटाला के बेटे कर्ण चौटाला अपने समर्थकों के बाद आए और पहले मूर्ति को गंगाजल से धोया और फिर नये सिरे से इसका अनावरण किया । यह कहते हुए कि इसे अपवित्र हाथों से छूकर अनावरण किया गया था । यह भी कहा कि जननायक का नाम लेकर जनता को गुमराह कर रहे हैं ये लोग । ये चौ देवीलाल के न तो हितैषी हैं और न ही उनकी नीतियों से इनका कोई लेना देना है । यह भी कहा कि यदि उप-मुख्यमंत्री किसान हितैषी हैं तो किसानों के साथ धरने पर क्यों नहीं बैठे ?

इस तरह एक ही परिवार के कुछ हाथ पवित्र तो कुछ अपवित्र कैसे हो गये ? चौ देवीलाल के विचार या नीतियां एक ही परिवार के लोगों में कैसे बंट गयीं? क्या ऐसी विरासत भी बांटी जा सकती है ? यह तो कोई भी अपना सकता है । जो चौ देवीलाल के निकट रहा हो , वह भी अपना सकता है । इसका बंटवारा कैसे हो सकता है ? प्रो सम्पत सिंह चौ देवीलाल के निजी सचिव रहे और बाद में उन्हें आगे बढ़ा कर राजनेता और मंत्री तक बनाया गया । बेशक वे इनेलो छोड़ गये । फिर कांग्रेस भी छोड़ दी लेकिन चौ देवीलाल के शिष्य कहलाने में आज भी फख्र महसूस करते हैं । घर में आज भी चौ देवीलाल की फोटो लगी है । शायद दिल में भी लगी हो ।

खैर , बात विरासत और पवित्र अपवित्र होने की है ।।आज ही यह खुशखबरी भी चौटाला परिवार के लिए आई है कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला अब तिहाड़ जेल से बाहर होंगे । इसका स्वागत् किया है उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला ने यह कह कर कि हम अपने दादा की अंगुली पकड़ कर राजनीति में आए । कांग्रेस ने षड्यंत्र के तहत सत्ता में बने रहने के लिए इन्हें जेल पहुंचाया जिसका बदला जनता ने हर चुनाव में लिया । इस बयान से ऐसा लगता है कि शायद परिवार एकजुट होने की ओर कदम बढ़ाये या फिर दादा की राजनीतिक छवि का भी फायदा उठाया जाये ? परिवार एकजुट हो तो परिवार और जनता को भी खुशी होगी लेकिन परिवार विरासत की लडाई सड़कों पर ले आए तो दोनों घाटे में रहेंगे । यह बड़ी सरल सी बात है और सब जानते हैं कि फूट का फायदा किसी तीसरे को ही मिलता है । अब कौन पवित्र और कौन अपवित्र ? एक ही परिवार और एक ही राजनीति, फिर कैसी दूरी? कैसा मन मुटाव? किससे और कब तक ?