हम भारतीय हैं और हमारी भारतीयता, हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति हमारे संस्कारों से है। भारत विविधताओं का देश है। अनेकता में एकता ही हमारी संस्कृति की पहचान है। यहाँ पे एक कहावत है-

“5 कोस पे पानी बदले, 10 कोस पे वाणी” अर्थात यहां हर 5 कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है और 10 कोस पर बोलने का लहजा। पर फिर भी हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। क्योंकि हमारे दिल नहीं बदलते। यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग अपनी भाषा, खाने की आदतें और अलग रीति-रिवाज निभाते हैं।

हमारी संस्कृति लगभग 5000 वर्ष पुरानी है जो कि दुनिया की सबसे प्राचीनतम संस्कृति है।
हम लोग नदियों, वट, पीपल वृक्ष व अन्य प्राकृतिक देवी देवताओं की पूजा करते आ रहे हैं। गीता और उपनिषदों के संदेश हमेशा से हमारे आधार रहे हैं।

हमारी सहनशीलता की मिसाल हर क्षेत्र में दी जाती है। अगर बात चिकित्सा के क्षेत्र की करें तो जिस आधार पर दर्द को मापा जाता है, उसमें भारतीयों व विदेशियों की तुलना में बहुत अंतर है। जिसे विदेशियों के लिए उच्चतम माना जाता है, वो हम भारतीयों के लिए सामान्य है। हम हर धर्म, हर संस्कृति का सम्मान करते हैं। हमारी संस्कृति मे किसी को भी धर्म संस्कृति को मानने के लिए बाध्य नही किया जाता।

हम दूसरों से सीखते हैं , लेकिन वो भी अपनी पहचान खोये बिना। विकसित होने का मतलब अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता को भूलना नहीं है। फैशन के नाम पर, आजादी के नाम पर फूहड़ता हमारी संस्कृति नही है। जिस विषय- वस्तु को विदेशी त्याग रहे हैं, हम उस हर चीज को अपना रहे हैं। किसी भी संस्कृति का आधार व विनाश उसके अपने लोगों की वजह से होता है, किसी बाहरी शत्रु की वजह से नहीं। क्योंकि जब तक किसी भवन की नींव मजबूत है और दीवारों में मसाला (नैतिक मूल्य) है, उस भवन को कोई नही गिरा सकता। इसलिए हमें हमारे मूल्य नही भूलना।

आधुनिक बनना है लेकिन अपनी मर्यादा नही भूलना।
हमारी संस्कृति हमसे है और संस्कृति से हम ।

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