क्या योगी मोदी और शाह के लिए चुनौती बन रहे हैं?
अतीत में ऐसा ही प्रयास वसुंधरा राजे ने किया था।
मोदी और शाह की जोड़ी जब से केंद्र में आई है, भाजपा का डीएनए ही बदल गया । 
अब भाजपा में संसदीय बोर्ड की जगह आलाकमान कल्चर आ गया।

अशोक कुमार कौशिक

बीजेपी की अंदरूनी कलह अब खुलकर सामने आ गई है । योगी के जन्मदिन पर मोदी और शाह का ट्वीट न करना बता रहा है बीजेपी एक बड़ी सुनामी को दबाए बैठी है ।

ताजा खबर यह है कि अब दिल्ली और योगी आदित्यनाथ के बीच कोई भी बातचीत संघ से जुड़े दो लोगों के माध्यम से हो रही है। मोदी योगी और शाह योगी के बीच कोई भी सीधा संवाद नहीं है। यहां तक कि योगी आदित्यनाथ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी बातचीत करने से इंकार कर दिया है।

खबर मिल रही है कि उत्तर प्रदेश के प्रभारी राधा मोहन सिंह आज 11 बजे राजधानी लखनऊ पहुंच रहे हैं और वहां पर राज्यपाल से मुलाकात करेंगे। राधामोहन राज्यपाल से क्यों मिलेंगे अभी इसका खुलासा नहीं हो पाया है। 

योगी बनाम मोदी-शाह विवाद में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी आग में घी डालने का काम कर रहे हैं । स्वामी ने ट्वीट करके कहा- योगी एक ईमानदार नेता हैं और वो कभी भी चापलूस नहीं हो सकते। स्वामी चापलूस किस सन्दर्भ में लिख रहे हैं वो बताने की जरूरत नहीं है ।

भाजपा और संघ के एजेंडे यानी हिंदुत्व के सबसे बड़े पोस्टर बॉय और देश के सबसे बड़े प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का बीते कल (5 जून) को जन्मदिन था, देश भर से उन्हें लगातार शुभकामनाएँ मिल रही है लेकिन बेहद आश्चर्यजनक  बात है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा जैसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में से किसी ने योगी को जन्म दिन की बधाई नहीं दी है, क्या यह समान्य सी बात है? महज एक संयोग है? क्या कुछ और? अभी हाल ही में देश में एक हलचल थी कि भाजपा और संघ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदलने वाली है, उत्तर प्रदेश में कुछ बड़ा होने वाला है, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बी एल संतोष, संघ में नम्बर 2 होसबोले जी, यूपी प्रभारी राधा मोहन सिंह ने लगतार 3-4 दिनों तक यूपी में मैराथन बैठक की, अटकलों को पूरी हवा दी गई की पार्टी नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रही है, यहाँ तक की एक पूर्व नौकरशाह और मोदी के करीबी अरविंद शर्मा का नाम भी जोर शोर से चलने लगा, जो हाल ही में समय से पूर्व अवकाश लिए है और भाजपा ने उन्हें यूपी विधान परिषद का सदस्य भी मनोनीत किया है । 

बीजेपी में योगी बनाम मोदी-शाह की सबसे बड़ी वजह एके शर्मा हैं। एके शर्मा मोदी के बेहद खास हैं और मोदी उन्हें यूपी की सत्ता में बड़ी जिम्मेदारी देना चाहते हैं लेकिन योगी इसके लिए तैयार नहीं हैं। योगी सत्ता में पावर का दूसरा बड़ा केंद्र बनने नहीं देना चाहते। योगी एके शर्मा को बड़ा पद देने की बजाय कोई छोटा मोटा पद देने पर राजी हैं लेकिन मोदी एके शर्मा को मजबूत पद देना चाहते हैं। दोनों के बीच मन मुटाव का यही सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है ।

लेकिन अचानक सभी अटकलों पर विराम लग जाता है और कहा जाता है कि पार्टी ऐसी कोई परिवर्तन नहीं करने जा रही है, नाही सरकार और ना संगठन के स्तर पर ऐसी कोई बदलाव होने जा रही है। तो क्या ये सभी कवायद झूठी थी? क्या वाकई सबकुछ सामान्य है? दिख तो नहीं रहा है।

 जब से मोदी और शाह की जोड़ी केंद्र में आई है, भाजपा का डीएनए ही बदल गया है, अब भाजपा में भी आलाकमान कल्चर आ गया है, अब किसे टिकट मिलेगा, कौन कहाँ से चुनाव लड़ेगा, कौन कहाँ मंत्री बनेगा, किस प्रदेश में कौन मुख्यमंत्री बनेगा, कौन प्रदेश अध्यक्ष बनेगा, देश और प्रदेश में कौन संगठन में रहेगा, या यू कहें तो पन्ना प्रमुख से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक, संगठन से सरकार तक सभी नियुक्तिया भाजपा संसदीय बोर्ड नहीं बल्कि ये दोनों जोड़ी तय करती हैं ।

जब जिस प्रदेश अध्यक्ष को चाहा हटा दिया जिस मुख्यमंत्री को चाहा उठा के फेक दिया यह सब बहुत सामान्य सी बात हो गई है जो कभी भाजपा का डीएनए नहीं हुआ करती थी, और इसे लेकर पार्टी में भी किसी को हिम्मत नहीं है सवाल खड़े करने का, हां एक दो मौकों पर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इनके निर्णयों को न मानकर चौका जरूर दिया था, और बीच का कोई रास्ता निकालने पर इन्हें मजबूर जरूर कर दिया था, दूसरा कोई नेता सर उठाने की हिमाकत कभी नहीं किया ।

अगले वर्ष कुछ प्रदेशों में चुनाव होने वाले है जिसमें भाजपा शाषित यूपी, गुजरात, उतराखंड और मणिपुर जैसे प्रदेश शामिल हैं, कोरोना से उत्पन्न हालत इन सरकारों के भविष्य के लिए अच्छी नहीं दिख रही है इसी कारण पार्टी कई प्रदेशों में नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रही है जिस क्रम में सबसे पहले उतराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उठा कर फेक दिया गया और यूपी में विकल्प के लिए पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को विधान परिषद भेज कर स्टैंड बाई मोड पर रखा गया था, कोरोना की दूसरी लहर में हुई अप्रत्याशित क्षति और मृत्यु, गंगा किनारे की लाशों को और गंगा में बह रही लाशों को भाजपा समर्थित मीडिया के द्वारा ही सबसे ज्यादा प्रचारित प्रसारित किया गया और इसी को आधार बना कर योगी को पलटने की कवायद शुरू की गई मगर अफसोस मोदी शाह को यहाँ सफलता नहीं मिल पाई ।

सबसे असफल तो गुजरात की सरकार है मगर वहाँ नेतृत्व परिवर्तन क्यों नहीं किया जा रहा है? आखिर हिंदुत्व के सबसे बड़े पोस्टर बॉय योगी को हटा कर एक गुमनाम नौकरशाह को मुख्यमंत्री बना कर क्या भाजपा यूपी जैसी हिंदुत्व की प्रयोगशाला जीत सकती है? अगर आप सब का जवाब भी नहीं ही है तो फिर पार्टी ऐसा क्यों सोच रही थी? आखिर इसके पीछे क्या कारण है? क्या यूपी सरकार की नाकामी या कुछ और? जो लोग भी मोदी और शाह की राजनीतिक शैली को जानते या समझते है वे इस बात से वाक़िफ़ होने की मोदी और शाह की सबसे बड़ी मजबूती है कमजोर और नेतृत्व विहीन विपक्ष, चाहे वह स्वभाविक विपक्ष हो या फिर पार्टी के अंदर का ही कोई कद्दावर नेता, गुजरात  में तो इन्होंने अपनी ही पार्टी को इस कदर नेता विहीन कर दिया था कि आज तक कोई मुख्यमंत्री लायक नेतृत्व इन्हें वहाँ नहीं मिल पा रहा है। 

भविष्य में चुनौती न बने इसलिए मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान के पर कतरे गए । अब राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के खिलाफ बागी तैयार कर दिए गए। आज राजस्थान में भाजपा कई खेमों में बंटी हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, स्वर्गीय सुषमा स्वराज सहित अनेक राष्ट्रीय नेताओं को खुडडे लाइन लगाया गया। भविष्य में कोई उनके लिए चुनौती ना बने इसलिए राष्ट्रीय नेताओं की गोपनीय फाइलें बनाई गई और उनकी रह में रोड़े अटकाए। मोदी और शाह को जहां भी सशक्त आवाज दिखाई दी उसको दबा दिया गया। अतीत में वसुंधरा राजे सिंधिया और अब आदित्यनाथ योगी ही उनके लिए चुनौती बने है।

देश का भी कमोबेश आज वही हाल है, विपक्ष तो दूर भाजपा में भी दूर दूर तक कोई प्रधानमंत्री बनने लायक नेता नहीं दिख रहा है, तो क्या योगी इस कड़ी में एक मजबूत नाम बनकर उभडे है? जवाब है हाँ, संघ और भाजपा के उग्र हिंदुत्ववादी एजेंडे में योगी आज मोदी से भी बड़े चेहरे बन कर उभडे है, यूपी ही नहीं देश में कहीं भी किसी भी प्रदेश के चुनाव में उनकी मांग भाजपा के किसी भी नेता से ज्यादा हो रही है और यही मोदी और शाह की सबसे बड़ी चिंता का विषय है, और फिर इन लोगों ने इनका पर करतर्ने के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना ही मुनासिब समझा और इसके लिए विसात भी बिछाई, मगर सफल नहीं हो पाए ।

खैर सरकार चलाने का तरीका मोदी और योगी दोनों का ही एक जैसा है । केंद्र में जैसे मोदी सरकार चला रहे हैं ठीक वैसे ही योगी यूपी में चला रहे हैं। जैसे मोदी केंद्र में न तो किसी मंत्री की सुनते और न ही किसी सांसद की । ठीक वैसे योगी भी न तो किसी मंत्री की सुनते हैं और न ही किसी विधायक की । इसलिए पार्टी में नाराजगी अंदरूनी स्तर पर दोनों के खिलाफ मिल जाएगी। अगर पार्टी के भीतर मोदी-योगी के खिलाफ गुप्त वोटिंग कराई जाए तो नाराजगी दोनों के खिलाफ खुलकर सामने आएगी ।

लेकिन मोदी-योगी दोनों ही एक मामले में भाग्यशाली हैं दोनों ही अपने वोटर्स के बीच बेहद लोकप्रिय हैं । बीजेपी का वोटर सरकार के इसी शासन को पसंद कर रहा है । यही एकमात्र वजह है पार्टी में दोनों अपने स्थान पर मजबूती से खड़े हैं । 

अब देखना यह है कि मोदी व शाह के राह के सबसे बड़े रोड़े कब तक उनके सामने टिक पाते हैं, अगर अगले साल चुनाव तक बच भी जाते है तो क्या चुनाव के बाद बच पाएंगे? पता नहीं। पार्टी के अंदर से ये सुनामी जिस दिन बाहर आएगी यकीन मानिए उस दिन बीजेपी को भयंकर नुकसान देकर जाएगी ।

 ये राजनीति है, इसमें किसका ऊंट कब किस करवट बैठेगा कोई नहीं जानता, लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा में आल इज वेल तो नहीं है । आगे आगे देखिए होता है क्या?

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