भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक
किसान संगठन 5 जून को काला दिवस मनाने और तीन कानूनों की प्रतियां विधायक और मंत्रियों के घर के सामने जलाने के लिए तैयारियों में लगे हुए हैं। इसके विपरीत सरकार भी तैयारियों में तो लगी होगी, 5 जून को शांतिपूर्ण रखने के लिए लेकिन सरकार के किसी मंत्री की ओर से कोई वक्तव्य आया नहीं है।
देवेंद्र बबली कांड का असर भी संभव है काले दिवस पर नजर आए। इस कांड ने गुरनाम सिंह चढूणी से कहलवा दिया कि कुछ अराजक तत्व हममे शामिल हो गए हैं, जिन्हें हमारा सहयोग नहीं मिलेगा। यह बात उन्होंने देवेंद्र बबली के निवास पर रात्रि में प्रदर्शन करने वाले और गिरफ्तार होने वाले व्यक्तियों (किसानों) के बारे में कही।
क्या यह घटना आजादी के आंदोलन की तरह है, जिसमें जिस प्रकार महात्मा गांधी से सुभाष चंद्र बोस अलग हो गए थे, बोस का कहना था कि अहिंसा से सरकार नहीं झुकने वाली, शक्ति से काम लेना होगा। यही बात यहां न हो जाए कि 6 माह से अधिक समय से आंदोलनरत किसानों में से कुछ किसान उग्र रूप धारण कर लें। अगर ऐसा हुआ तो यह समाज, किसान और सरकार सभी के लिए कष्टकारी और हानिकारक होगा।
किसानों द्वारा बड़ा आंदोलन बताने के बावजूद सरकार की चुप्पी बहुत अखर रही है कि सरकार की ओर से कुछ सांत्वना के शब्द या किसी प्रकार के आश्वासन के शब्द सुनने को मिलें लेकिन मिले नहीं। इसका कारण शायद यह हो सकता है कि सरकार में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री यह देख रहे हैं कि जब इतने समय से हम अपने क्षेत्रों में जाकर कार्यक्रम ही नहीं कर पा रहे तो ये लोग हमारे कार्यक्रमों को रोकने में सक्षम हैं तो ऐसी अवस्था में हमारे कहने का इन पर कोई असर पडऩे की संभावना कम है। शायद उनका सोचना यह भी हो सकता है कि हम यदि कुछ बोलेंगे तो कहीं उस बात का अर्थ का अनर्थ न कर दें किसान।
प्रदेश के लिए बड़ी दुखद बात है कि सरकार के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्री अपने क्षेत्रों में कार्यक्रम भी न कर सकें और उस पर वह प्रचार यह करें कि हम प्रदेशवासियों के भले के लिए कार्य कर रहे हैं। मुख्यमंत्री की योग्यता के कसीदे उनके मंत्रीमंडल और पार्टी द्वारा पढ़े जा रहे हैं तथा यह दर्शा रहे हैं कि किसान आंदोलन से हमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
8 जून को मुख्यमंत्री ने मंत्रीमंडल की बैठक भी बुलाई है। उसका तात्पर्य शायद यह हो कि 5 जून के काला दिवस के पश्चात उपजी परिस्थितियों की जानकारी लेना चाहते हों। वैसे भी इस समय प्रदेश अनिश्चितता की स्थिति में है। एक तो किसान आंदोलन और ऊपर से कोरोना। सरकार का कहना है कि हम सफल हैं और जनता सरकार को असफल बताती है।
सरकार की बात करें तो सरकार में केवल मुख्यमंत्री ही मुख्यमंत्री हैं, बाकी मंत्री और संगठन तो औपचारिकता पूरी करते हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि कानून व्यवस्था संभालने का काम गृह मंत्रालय का है, स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं का काम स्वास्थ्य मंत्रालय का है, निगम की पॉलिसी निर्धारित करना भी काम निकाय मंत्री का है और संयोग देखिए इन तीनों विभागों के मंत्री गब्बर कहे जाने वाले अनिल विज हैं।
आप ही सोचिए कि मेरी बात में कुछ सच्चाई है या नहीं।