भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल। कोविड -19 की महामारी जिसने अन्य महामारियो पर अपना वर्चस्व बना कर दहशत का वातावरण पैदा कर दिया हो । ऐसे बैठे समय में जब अपने ही हाथ खड़ा कर देते हो । वहां बिना किसी भेदभाव व चाहत के मानवता की सेवा करना हर किसी माई के लाल के बस की बात नहीं।  चंद लोग ही जिले में देखने को मिले जिन्होंने महामारी के पहले दौर में पिछले साल निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा की। जनता की सेवा का संस्कार कहीं बाहर से नहीं मिलता । अपितु यह सेवा करने वाले के माता पिता द्वारा डाले गए बचपन के संस्कारो की देन होता है। पिछले साल प्रवासी मजदूरों को भोजन देने का काम रहा हो या कोई अन्य सहायता। उस समय नारनौल का युवा पत्रकार मनोज गोस्वामी ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया। जो आज समाजसेवी के रूप में भी अपनी साख बना चुका है। मेरा मनोज गोस्वामी से कोई खून का रिश्ता नहीं है। उसमें चाहे लोग अनेक बुराइयां देखते हो, पर कुछ उसमें अच्छाइयों के संस्कार भी कूट-कूट कर भरे हुए है यह मैंने बड़ी गहराई से परखा है।

 संक्रमण के इस दूसरे काल में जब मौत का आलम चारों और छाया हुआ है सरकार और प्रशासन भी विवश दिखाई दे। नजदीक आने में जब मौत का भय लग रहा हो, रिश्ते नाते टूट रहे हो और अपने ही जब पराए जैसा व्यवहार कर रहे हो वहां कोविड पीड़ित के लिए दिन रात खड़े होना मायने रखता है। यूं तो शहर में अनेक लोग जन सेवा में जुटे हुए हैं। अनेक लोगो की पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से मजबूत है। उनके लिए किसी भी प्रकार के सहायता के लिए हाथ आगे बढ़ा देना कोई बड़ी बात नहीं है। पर एक साधारण परिवार से अगर किसी पोस्ट पर एक पारिवारिक पृष्ठभूमि के केवल संबंधों के आधार पर सामग्री जुटाना और पीड़ितों को मुहैया करवाना बड़े मायने रखता है। जो हर समय शहर की जनता के लिए एक आवाज पर मैदान में मिला हो वह किसी नाम का मोहताज नहीं है। मैं दिल की गहराइयों से मनोज गोस्वामी की सेवा भाव को नमन करता हूं और परम शक्ति से प्रार्थना करता हूं कि ऐसे संस्कार हमारे समाज में हर युवा के बीच में पैदा हो। समय समय पर हम ऐसे ही लोगो को समाज के सामने लेखनी के द्वारा सम्मानित करते रहेंगे ताकि सेवा समर्पण में युवा बढ़-चढ़कर भाग ले।

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