भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हमारे सभी धर्म ग्रंथों में लिखा है कि परमार्थ में नहीं होती लड़ाई, अपने मन के सुकून के लिए किया जाता है परमार्थ और यह भी लिखा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं। संगठन में शक्ति होती है और मिल=जुलकर तो बड़ी-बड़ी से समस्या का समाधान भी निकल आता है फिर यह तो कोरोना है।

कोरोना से लड़ाई में हमारी सरकार इस वक्त बौखलाई नजर आती है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कैसे इतनी बड़ी आई महामारी से निपटा जाए। प्रयोग पर प्रयोग हो रहे हैं, परिणाम सुखद नहीं निकल रहे। ऐसे में सरकार पर सवाल तो उठेंगे ही।

मन प्रश्न उठता है कि महामारी से निपटने के लिए क्या सरकार उचित राह पर है? क्या संगठन की शक्ति को भूल रही है? क्योंकि ऐसा दिखाई नहीं दिया कि सभी 88 विधायकों की कोई मीटिंग बुलाई हो या कोई सर्वदलीय बैठक बुलाई हो या फिर हरियाणा में स्वास्थ, व्यापार उद्योग, अर्थशास्त्री आदि के विशेषज्ञों से कोई चर्चा की हो। देखने में तो यह आया है इस समय में भी सभी दलों के राजनीतिज्ञ अपनी छवि बनाने और जनाधार बढ़ाने की ओर ध्यान दे रहे हैं। कोविड की लड़ाई दूसरे नंबर पर दिखाई दे रही है।

अब मुख्यमंत्री की बात लें तो कोरोना काल में उन्होंने रॉकी मित्तल को हटाया, फौगाट को रखा और अभी विनोद मेहता को रखा। बार-बार यह प्रचारित कर रहे हैं कि मैंने 8 दिनों में 17 जिलों का दौरा कर लिया। उनके विधायक, मंत्री क्षेत्रों में दिखाई नहीं देते। अर्थात यह उन क्षेत्रों में अपनी छवि सुधार रहे हैं। इसी प्रकार उपमुख्यमंत्री को देखिए, वह अपने विधानसभा क्षेत्र में तो घुस नहीं सके और रोज ब्यान देते हैं कि मैंने फलां-फलां काम प्रदेश की भलाई के लिए कर दिए। मैंने इन-इन केंद्रीय मंत्रियों को चिट्ठी लिखी। अरे साहब, आपको जो पद दिया गया है, उसमें यह आपका कार्य ही है कि आप प्रदेश के भले के लिए जहां भी हो पत्राचार करते रहो। मेरे विचार से तो कोई दिन ऐसा जाना ही नहीं चाहिए, जिसमें पत्राचार न हो।

इसी प्रकार कांग्रेस पर नजर डालो तो काम तो कांग्रेस वाले भी कर रहे हैं कोरोना महमारी में। कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा अपने स्तर पर लगी हुई हैं। दीपेंद्र हुड्डा अपनी टीम बनाकर लगे हुए हैं। इसी प्रकार रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी, कुलदीप बिश्नोई आदि के नाम लिए जा सकते हैं। निर्दलीय विधायक भी कहीं न कहीं कार्य तो कर ही रहे हैं। तात्पर्य यह कि सभी कार्य तो कर रहे हैं लेकिन मिल-जुलकर नहीं। अत: लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढ़ते नजर नहीं आ रहे। 

इतना ही नहीं कभी कांग्रेसी नेताओं की ओर से मुख्यमंत्री या सरकार की कार्यशैली पर ब्यान आते हैं और सरकार की ओर से मुख्यमंत्री समेत अन्य भी उनके जवाब देने से नहीं चूकते। कितनी असंवेदनशीलता नजर आती है इनके इन ब्यानों से कि इनकी नीयत के बारे में। कम से कम इस वक्त तो मिलकर मानवता की सोचो।

प्रदेश के मुखिया होने के नाते सर्वप्रथम तो मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वह सबको इस संघर्ष में अपने साथ रखें, अपने अहम को कहीं और रखें। यदि मुख्यमंत्री उदहरण प्रस्तुत करेंगे तो अन्य भी शायद उनकी राह पर चलने लगें।

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