ममता

म्हारे हरियाणे में एक कवाहत का निचोड़ ये है कि सांड का इलाज सांड है। ममता बनर्जी अकेली ने ही पूरी केंद्र सरकार और लगभग सारे मीडिया को चुनाव में धूल चटा दी। उनको उनकी औकात बता दी। जो लोग पिंजरे के तोते के दम पर खुद को सत्ता लाने की तिकड़म लड़ा रहे थे, बंगाल की बहादुर जनता ने एक झटके में उनको उनकी सही जगह बता दी। यंू तो पांच राज्यों में चुनाव हो रहे थे,लेकिन गोदी मीडिया ने अपने आकाओं के कहने पर इसे ममता वर्सेज आल बना दिया। इस भयंकर गलती की उनको भयंकर कीमत चुकानी पड़ी। जैसा जैसा ममता चाहती थी वो वो भी और जो ममता ने सोची भी नहीं होगी वो सब गलतियां साहेब और उनकी टीम करती रही। ममता जनता के सामने खुद को लाचार, बेबस और बेचारी दिखाने में कामयाब रही। वो जनता की हमदर्दी बटोरने में सफल रही कि एक अकेली महिला पर दसों दिशाओं से हमला बोला जा रहा है। जनता को लगा कि ये ममता के साथ नाइंसाफी है। बंगाल की जनता ने तय किया कि दीदी को इस चुनावी युद्ध में यूं शहीद नहीं होने दिया जाएगा।

आक्रामकता ममता का सबसे प्रमुख हथियार था और नंदीग्राम के रण में उतरना इसी रणनीति का हिस्सा था। इसके अलावा ममता ने हिंदुत्व के एजैंडे पर भी इस चुनाव में जम कर हाथ आजमाए। मंदिरों में पूजा अर्चना की और खुद को सबसे बड़ी हिंंदू बताया। यानी भाजपा वालों को ममता ने एकदम से भाजपा वालों के इस्टाइल में सबक सिखाया। ठीक ऐसा सा कारनामा इस से पहले दिल्ली विधानसभा के चुनावों में अरविंजद केजरीवाल भी कर चुके थे। राष्ट्रवाद के तथाकथित कापीराइट को वो भी विखंडित कर चुके थे। केजरीवाल भी भाजपाईयों की ही तरह,बल्कि उनसे कहीं ज्यादा जोर से अपनी चुनावी जनसभाओं में भारत माता के नारे लगाते थे। इधर, ममता ने भी दिखा दिया कि वो पांखड,झूठ,अभिनय,ढकोसले और जुमले फेंकने में अपने विरोधियों से कम नहीं है। उनको पता है कि सामने वाले जो खिलाड़ी हैं उनको वो विनम्रता और अच्छेपन से नहीं पछाड़ सकती। उनको तो उनकी ही भाषा में उनसे ज्यादा पैनेपन से जवाब देना होगा। उनसे कहीं ज्यादा बड़ा धूर्त बनना होगा। इसी कारण उन्होंने पैर पर चोट लगने का कार्ड खेला। व्हील चेयर पर चुनाव प्रचार का ढकोसला किया। ममता की इस चाल का भाजपा के पास कोई जवाब नहीं था।

जैसा कि अब हो चला है कि भाजपा के चुनाव जीतने के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडे अब एक दम पहले से जगजाहिर होते जा रहे हैं। ये पहले से ही तय था कि चुनाव के दिनों में ममता के नजदीकियों पर सीबीआई-इंकम टैक्स और ईडी की रेड-सम्मन होंगे। पर सरकार ये सारे सदस्य मिल कर भी भाजपा को नहीं जितवा पाए। इस से पहले इन्होंने ऐसा ही काम लोकसभा चुनाव के दौरान भी किया था जब राबर्ट वाड्रा को ईडी ने एक के बाद एक कई दिनों तक पेशी के लिए बुलाया था। अब ये राष्ट्र जानना चाहता है कि चुनाव गुजरने के इतने दिनों बाद आज तक ईडी ने क्यों एक दफा भी वाड्रा को फिर से याद नहीं किया? बंगाल के चुनाव नतीजे के बाद सब से दयनीय हालात गोदी मीडिया की हुई है। जैसे कि हर चुनाव में भाजपा को जीतता दिखाने की भविष्यवाणी करना इसकी मजबूरी हो गई हो। जब नतीजे उल्ट आते हैं तो गोदी मीडिया पूरे दमखम के साथ बेशर्म होकर उस पहलवान की तरह फिर से दंगल में उतरता है जो पहले से कई कुश्ती हार चुका है,लेकिन सोचता है कि इस दफा तो वो जीत ही जाएगा। लेकिन फिर से उसका स्वागत एक और शिकस्त से ही होता है। जैसे जैसे चुनावी रूझानों में भाजपा पिछड़ती गई त्यो त्यों गोदी मीडिया के न्यूज चैनलों पर मोदी-शाह का चेहरा भी गायब होता चला गया।

जैसे कि गांव देहात की औरतें अपने पति का नाम लेने से कतराती हैं उसी तरह से अब गोदी मीडिया इस हार का ठीकरा साहब लोगों के सिर पर फोड़ने से बच रहा है। चुनाव से पहले कई लोग एक एक कर किश्तों में ममता बनर्जी को या तो खुद छोड़ गए या फिर केंद्र सरकार ने हालात ऐसे बना दिया कि वो छोड़ कर जाने के लिए विवश हो गए। शायद इनको ऐसा लगता होगा कि धन बल,ईडी,सीबीआई,गोदी मीडिया और चुनाव आयोग के दम पर वो ममता को हरा लेंगे। करारा सबक सिखा लेंगे। लगता है कि उनको बंगाल की सियासत का तनिक भी ज्ञान नहीं है। उनको इसके लिए सौरव गांगुली से टयूशन लेनी चाहिए। दादा ने भले ही सारी उम्र क्रिकेट खेली- खिलाई हो,लेकिन उनकी सियासी समझ गजब की है। उनको जमीनी हकीकत का बहोत पहले से अहसास था और इसीलिए वो भाजपा के झांसे में बिल्कुल नहीं फंसे। इसलिए भी कि गांगुली ये बखूबी पता था कि बंगाल में ममता एक एक ऐसे छुट्टे सांड की तरह है जिसके युद्ध कौशल और सटीक चुनावी रणनीति के सामने भाजपाई रूपी सांड एक झटके में पस्त हो जाएगा। ध्वस्त हो जाएगा।ममता बनर्जी के लिए कहा जा सकता है:

तेरी जमीं से उठेेंगे तो आसमां होंगे
तेरे जैसे और जमाने में कहां होंगे

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