The Prime Minister, Shri Narendra Modi addressing the 25th Foundation Day of the Rajiv Gandhi University of Health Sciences at Bengaluru via video conferencing, in New Delhi on June 01, 2020.

 भारत सारथी, ऋषिप्रकाश कौशिक

ना जाने कैसे एक तानशाह विंस्टन चर्चिल, एक शायर इकबाल एक कवि प्रदीप और एक गीतकार साहिर लुधियानवी को भारत की आज की स्थिति का आभास उस वक्त हो चुका था, तभी तो इन सब ने लिखा है:
“भारत आज़ाद हुआ तो सत्ता लालची, बदमाशों, फ्रीबूटरों के हाथों में जाएगी; सभी भारतीय नेता कम क्षमता वाले और भूखे प्यासे आदमी होंगे। उनके पास मीठी जीभ और मूर्खतापूर्ण दिल होंगे। वे सत्ता के लिए आपस में लड़ेंगे और भारत राजनीतिक गलियारों में खो जाएगा। एक दिन आएगा जब भारत में भी हवा और पानी पर भी कर लगेगा। ”:विंस्टन चर्चिल ।
“वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली हैतेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में,न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्तां वालो,तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में…!”:शायर इकबाल ।

“हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल केइस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के…!”:कवि प्रदीप ।

“अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आज़ाद है !”:साहिर लुधियानवी

लेकिन गुलशन तो आज उजड़ रहा है ।सत्ता भी चर्चिल के बताए नेताओं के हाथ है,कमल हो या हाथ, देश लूटने में सब हैं साथ-साथ ।

आज कोरोना कोविड आपदा राष्ट्र पर है इसलिए छेत्रीय दलों की चर्चा ना करके राष्ट्रीय दल एवं राष्ट्रीय नेताओं पर करना चाहूँगा ।

कांग्रेस और भाजपा (या जनसंघ) नेहरू, इंदिरा, राजीव, नरसिम्हाराव, अटल बिहारी के समय भी थी लेकिन पक्ष-विपक्ष अपनी मर्यादा नहीं तोड़ते थे , कहीं ना कहीं आंखों में शर्म होती थी और देश के लिए एक हो जाते थे ।

बात 1991 की है, तब देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी। उस वक्त बीजेपी के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता थे। राजीव गांधी की हत्या के बाद वाजपेयी ने एक पत्रकार को बड़े भावुक अंदाज में एक वाकया सुनाया और कहा कि आज अगर वो जिंदा है तो राजीव गांधी की वजह से। दरअसल 1991 से पहले वाजपेयी किडनी की समस्या से ग्रसित थे। तब भारत में इस बीमारी का इलाज संभव नहीं था। वाजपेयी जी को इलाज के लिए अमेरिका जाने की जरूरत थी। लेकिन आर्थिक साधनों की तंगी की वजह से वे अमेरिका नहीं जा पा रहे थे ।

वाजपेयी ने भावुक होकर यह वाकया बताया था। उन्होंने कहा कि जब राजीव पीएम थे तो पता नहीं कैसे उन्हें उनकी बीमारी के बारे में पता चल गया। राजीव यह भी जान गये कि उनकी किडनी में समस्या है और उन्हें इलाज के लिए विदेश जाने की जरूरत है, लेकिन संसाधनों के अभाव में वाजपेयी इस वक्त वहां जाने में असमर्थ हैं। इस पर राजीव गांधी ने वाजपेयी जी को अपने दफ्तर में बुलाया, और कहा कि वे उन्हें संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं। राजीव ने वाजपेयी जी से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वे इस मौके का लाभ उठाकर अपना इलाज भी करा लेंगे। वाजपेयी जी ने पत्रकार को बताया, “मैं न्यूयॉर्क गया और इसी वजह से आज जिंदा हूं।”

न्यूयॉर्क से इलाज कराकर वापस लौटने के बाद ना तो अटल बिहारी वाजपेयी ने और ना ही राजीव गांधी ने इस घटना का किसी से जिक्र किया। सार्वजनिक जीवन में दोनों अपना रोल निभाते रहे।विपक्ष का नेता होने की वजह से वाजपेयी सरकार की आलोचना भी उसी शिद्दत से करते रहे हालांकि उन्होंने बाद में एक पोस्टकार्ड भेजकर राजीव गांधी को शुक्रिया कहा था।पूरे वाकये का खुलासा तभी हुआ जब राजीव गांधी की हत्या हो गई थी, और एक पत्रकार ने वाजपेयी से राजीव गांधी के बारे में विचार जानने चाहे।

बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में मानवीय मर्यादाओं के पालन करने के प्रबल पक्षधर थे।वाजपेयी जी यही शिक्षा अपनी पार्टी के लोगों को भी देते थे।2002 में भी अटल बिहारी वाजपेई जी ने मोदी जी को भी राजधर्म निभाने की शिक्षा दी थी ।

1994 में नरसिम्हाराव की कांग्रेस सरकार ने जेनेवा मेंभारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सावधानीपूर्वक एक टीम बनाई। इस प्रतिनिधिमंडल में तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, ई. अहमद, नैशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और हामिद अंसारी तो थे ही, इनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे।

वाजपेयी उस समय विपक्ष के नेता थे और उन्हें इस टीम में शामिल करना मामूली बात नहीं थी। यही वह समय था जब देश के बचाव में सभी पार्टियों और धर्म के नेता एकसाथ खड़े हो गए थे।

विदेशों में बाजपेई जी से पूछा गया कि आप कैसे आए ?आप तो भारत में नेता विपक्ष हैं !जवाब में अटल जी ने जवाब दिया जब देश का सवाल पैदा होता है तब हम एक हैं और आज मैं देश का प्रतिनिधित्व करने आया हूं किसी दल का नहीं ।

लेकिन आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश झूठ और जुमले सुनने का और नाटक देखने का आदी हो गया है ।चाहे विदेशी काला धन हो चाहे आधार हो चाहे एफडीआई हो चाहे जीएसटी हो चाहे नोटबंदी हो चाहे बालकोट हो चाहे पुलवामा हो और चाहे कोरोना, यह देश सिर्फ और सिर्फ जुमले सुनता आ रहा है ।और विपक्ष तो मृतप्राय है ही ।

आधे कांग्रेसी तो भाजपा की सत्ता में शामिल हो गए, कोशिश तो बचे हुए कांग्रेसियों ने भी की लेकिन दाल नहीं गली ।विपक्ष की जिम्मेदारी निभाने वाला कोई दल हकीकत में बचा ही नहीं ।

गुड़गांव की बात करें तो मौजूदा विधायक और सांसद तो लापता हैं ही,जो भावी विधायक और सांसद हुआ करते थे चाहे कांग्रेस के हों या किसी और दल के वो भी लापता हैं।हक़ीक़त ये है कि देश और गुड़गांव लावारिस स्थिति में है ।सैकड़ों लोग रोज मर रहे हैं और हर पार्टी के नेता सिर्फ एसी रूम में बैठकर बयान बाजी और सोशल मीडिया पर पोस्ट पोस्ट खेल रहे हैं ।इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों समान रूप से दोषी हैं ।

आज वक्त की जरूरत है कि तमाम राजनैतिक दल एवं राजनेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस आपदा से देश को बचाने के लिए सामने आएँ और धरातल पर कोई कोशिश करें ।

किंतु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिम्मेवारी और जवाबदेही तो सत्ता की ही होती है ।
ऑक्सिजन की एवं अन्य साधनों की कमी छुपाने से, जनता एवं मीडिया की आवाज़ दफ़न करने से शमशान और कब्रिस्तान में जा रहे मुर्दों की गिनती तो कम नहीं हो सकती ।

“लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है;तुम झूठ को सच दिखा दो,अखबार भी तुम्हारा है ! इस दौर के फरियादी, जायें तो कहाँ जाएँ;कानून भी तुम्हारा है, दरबार भी तुम्हारा है।”
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