कानून से लेकर मीडिया एक सब एक तरह की गंध सूंघ रहे है।

अशोक कुमार कौशिक

 सिस्टम सड़ गया है। वो लाचार और बेबस हो गया है.. सरकार सिस्टम का ही हिस्सा है। वो क्या कर सकती है । जो यह बोल रहे है वो एक नंबर के एएनआई है। उन्हें पता नही की सिस्टम बनाया ही ऐसा बनाया गया था। यह सिस्टम गूंगा औऱ बहरा है। केवल अमीरों, नेताओं, अफसरों और 100 वीआईपी परिवारों के इशारे पर नाचता है। 

यह सिस्टम आज से नही है। लेकिन इस सरकार मैं यह गूंगा बहरा के बाद अंधा भी हो हो गया है। उसे केवल सत्ता की गंध आ रही है। वो बस उसके मदारी के ही मन की बात मान रहा है और बिलकुल परफेक्टली काम कर रहा है। इस सिस्टम में कानून से लेकर मीडिया सब एक तरह की गंध सूंघ रहे है। सब गिद्ध है, केवल शिकार के शरीर को सूंघ रहे है और नोच नोच के के खा रहे है। उसमें उनका कोई दोष नहीं है क्योंकि उसका मालिक तो खुद 2002 से यही काम कर रहा है। 

सिस्टम को महान कलाकार राजन मिश्र नही दिखता है वो तड़ीपार को दो महीने तक अपने पास रखता है क्योंकि उसे चुनाव जीतना है वो दाड़ी बढाकर रविंद्र संगीत सुनता है। लेकिन हिटलर की तरह पूरे देश को अपनी धुन पर नचा रहा है। और उसके भक्त ताली थाली शंख बजाकर सिस्टम के नाम पर उसकी आरती कर रहे है। वो खुश है, क्योंकि वो जानता है कि सिस्टम को मेन्युपेलेशन करके चुनाव जीतना कौनसा बड़ा काम है। वो निरंकुशता से देश पर शासन करता रहेगा। 

सिस्टम को पता है कि मंदिर औऱ मूर्तियों पर करोड़ों रुपये चंदा देनी वाली जनता कभी भी अस्पताल, ऑक्सीजन था दवाओं के नाम पर वोट नही देगी। उसे भगवान के भरोसे रहने की आदत है। तो सिस्टम क्यो कर उनकी चिंता करेगा। 

इसलिए सिस्टम को मोदी शब्द का पर्यायवाची बनाकर प्रधानमंत्री को गाली देना बंद कीजिये। व्यक्ति सिस्टम नहीं होता है। नरेंद्र मोदी 2014 में सत्ता में आये थे। उसके बाद से वो लगातार एक सिस्टम सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। आइये देखते हैं पिछले सात साल में मोदी को सिस्टम बदलने में कितना संघर्ष करना पड़ा है और इसके नतीजे हुए हैं। 

मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में कदम रखते ही यह महसूस किया कि सिस्टम तभी काम करेगा जब इससे नेहरू की छाप खुरच-खुरच कर मिटाई जाएगी। नेहरू की बनाई गई एक संस्था थी, योजना आयोग। मोदी ने कहा, इसका नाम बदल दो। तो योजना आयोग बन गया “नीति आयोग।”  National Institution for Transforming India न्यू इंडिया बनाने के लिए मोदी जिन धुरंधर को लेकर आये उनका नाम था अरविंद पनगढ़िया।

 साल 2016 में मोदी ने अपना पहला मास्टर स्ट्रोक खेला और वो था “नोटबंदी”। नीति आयोग के प्रमुख के तौर पर अरविंद पनगढ़िया का नाम लोगों को इसलिए याद होगा क्योंकि उन्होंने नोटबंदी के दौरान कैशलेस ट्रांजेक्शन करने वालों के लिए एक इनामी प्रतियोगिता शुरू करने का क्रांतिकारी आइडिया दिया था। 

सौ-दो सौ लोगों को मरवाकर देश से काला धन हमेशा के लिए खत्म कर देना बहुत ही सस्ता सौदा था। नोटबंदी के बाद जब काला धन खत्म हो गया तो पनगढ़िया ने कहा  देश ट्रांसफॉर्म्ड हो चुका है। अब मैं अमेरिका जा रहा हूँ, वहाँ मेरी पक्की नौकरी है। सरकार ने रोका लेकिन पनगढ़िया नहीं रूके।

 मगर आदमी के जाने से सिस्टम का सुधार थोड़े ना रूक जाता है। नीति आयोग सरकार को बताता है कि नेहरू वाली सारी कंपनियां अडानी-अंबानी को बेच दीजिये। मोदी बेच रहे हैं। 

ऑक्सीजन की बड़ी सप्लाई सेल जैसी सरकारी कंपनियों से हो रही है। आईटी सेल अंबानी का नाम चमका कर कह रहा है  “आलोचना करना आसान है लेकिन देश के लिए महान योगदान करना मुश्किल है।“ ऑक्सीजन सप्लाई कर रही नेहरू के टाइम वाली कंपनियों के नाम सिरे से गोल हैं, सिस्टम सुधर रहा है। 

सिस्टम सुधारने के लिए लाये गये ऐसे ही एक विशेषज्ञ थे अरविंद सुब्रहमण्यम। मोदी उन्हें अपना मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया। सुब्रमहण्यम साहब कुछ समय दायें-बायें देखते रहे और उसके बाद कहा अमेरिका में मेरी बहू प्रेगनेंट है। दादा बनने से ज्यादा बड़ा काम और क्या होगा। और अरविंद सुब्रहमण्यम भी भाग खड़े हुए। मौका देखकर बीच-बीच में आर्थिक नीतियों पर वो सरकार को गरिया देते हैं। नमकहरामी की भी हद होती है। 

दो चार-लोगों के भाग जाने से अगर मोदी हार मान जाते तो फिर वो विश्वगुरू क्यों होते? आरबीआई में उन्होंने रघुराम राजन की जगह अपने आदमी उर्जित पटेल को बिठाया। मगर कुर्सी पर बैठते ही पटेल बदल गये। वो कहने लगे कि आरबीआई तो स्वायत्त संस्था है। हर बात में सरकार के हाँ में नहीं मिला सकती है। 

सरकार ने रिजर्व बैंक का रिजर्व मांगा तो पटेल आनाकानी करने लगे। तनाव बढ़ा और उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया। उनके पीछ-पीछे उप प्रमुख विमल आचार्य ने भी पतली गली पकड़ ली। तब मोदी को समझ में आया कि हावर्ड वाले बकवास करते हैं। सिस्टम हार्डवर्क वालों से चलेगा। 

इसके बाद शक्तिकांत दास आरबीआई के पहले ऐसे गर्वनर बने जो अर्थशास्त्री नहीं बल्कि एम.ए. इन हिस्ट्री थे। उनके गर्वनर बनते ही सिस्टम सुधरने लगा। सरकार ने जब-जब जितना पैसा मांगा दास बाबू ने चुपचाप निकाल कर दे दिया और राष्ट्र आर्थिक प्रगति के पथ पर बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ने लगा।

सिस्टम में सुधार के लिए मोदी ने परिश्रम की पराकाष्ठा कर दी। पिंजरे वाले तोते सीबीआई को मोदी मिर्ची खिलाने गये तो उस कमबख्त ने उंगली काट ली। सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी जैसे लोगों की तरफ से राफेल पर दी गई शिकायत को स्वीकार कर लिया। बताइये कितना घटिया था, सिस्टम।  

बस सरकार ने रातो-रात दिल्ली पुलिस भेजकर सीबीआई हेडक्वार्टर पर कब्जा कर लिया। आलोक वर्मा निकाल फेंके गये और रिटायरमेंट के बाद से पेंशन चालू करवाने के लिए धक्के खाते रहे। पता नहीं पेंशन अब शुरू हुई या नहीं लेकिन सीबीआई का सिस्टम सुधर गया। अब देखिये कितनी पारदर्शिता और ईमानदारी से काम कर रही रही है सीबीआई।

अदालतों के सिस्टम में सुधार की सबसे ज्यादा ज़रूरत थी और मोदी की सरकार ने इसपर सबसे ज्यादा काम किया। जब सबरीमला का मामला चल रहा था तब चाणक्य ने सुप्रीम कोर्ट को खुलेआम समझाया “भइया फैसले ऐसे दो जो मानने लायक हों।“ उनकी बात बिल्कुल ठीक थी। सारे फैसले मानने लायक नहीं होते हैं। 

हाईकोर्ट ने कहा यूपी में लॉक डाउन लगा दो। सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया। जो भी फैसला सरकारों के मानने लायक नहीं होता है, उपरी अदालत उस पर फौरन रोक लगा देती है। सुधर रहा है ना सिस्टम! 

पूरी दुनिया के साथ अदालत परिसरों में भी मोदी के नाम का डंका बज उठा। ये वहीं अदालतें थीं जो कभी देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ फैसला देकर उन्हें पद छोड़ने पर मजबूर कर देती थीं। मगर डंका ऐसा बजा कि मिसिर  जैसे सुप्रीम कोर्ट जज खुलेआम नमो कीर्तन करने लगे। 

ज्यूडिशियल सिस्टम में ऐसा सुधार हुआ है कि बहुत से जज अब रिटायरमेंट के अगले ही दिन से मोदी के सपनों का भारत बनाना चाहते हैं। कुछ ऐसे हैं जो सेवा में रहते ही बनाना चाहते हैं। चीफ जस्टिस गोगोई रिटायर होते ही बीजेपी की तरफ से राज्यसभा में पहुंच गये। 

बाबरी मस्जिद की मौत को आत्महत्या बताने और आडवाणी जैसे नेताओं को क्लीन चिट देने वाले यादव भी रिटायर होते ही फिर से सरकार के एक नये काम में लग गये। उन्हें बड़ा ओहदा दिया गया। इसे कहते हैं” टैलेंट की कद्र।” सुधर रहा है ना सिस्टम!

चुनाव आयोग को जितना टीएन शेषन ने सुधारा था, उससे कई गुना ज्यादा मोदी ने सुधार दिया है। पहले कब होते थे, इतने साफ-सुथरे और पारदर्शी चुनाव। कमियां बहुत हैं लेकिन मोदी धीरे-धीरे ठीक कर रहे हैं। सिस्टम बेहया है, इसे मोदी के मानकों के हिसाब से सुधरने में अभी और टाइम लगेगा।

देश में एक भारी-भरकम संस्था हुआ करती थी “सीएजी। ” नियंत्रक और महालेखा परीक्षक। इस संस्था के प्रमुख थे विनोद राय, जिन्होंने एक अनोखे कैलकुलेशन से टू जी स्पेक्ट्रम में 1.76 लाख करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश किया था। 

मेरे पास एक मुर्गी है, वो बीस अंडे देगी, उसके चूज़े होंगे और फिर उनके अंडे फिर चूजे और फिर अंडे और इस तरह मैं पॉल्ट्री किंग बन जाउंगा। यही आधार था कैलकुलेशन का। अन्ना हज़ारे का आंदोलन इसी टू जी की थ्योरी पर हुआ। चुनाव इसी को मुद्दा बनाकर लड़ा गया। 

बरसो बाद एक दिन अदालत ने कहा “ये क्या बकवास है।” हम बरसों से इंतज़ार कर रहे हैं और सरकार एक भी सबूत नहीं दे पाई।  और मामला खारिज हो गया। टू जी पर चुनाव जीतने वाले मोदी मजबूत हैं लेकिन सिस्टम कमज़ोर है, वे बेचारा करें तो क्या करें।

सिस्टम धीरे-धीरे सुधर रहा है। इसलिए सीएजी आराम की नींद ले रहा है।  विजिलेंस कमीशन का काम सर्तक रहना है, वो सतर्क है। देश में सब मंगल है तो फिर वो क्यों कुछ बोले। बेटा की तरह डेटा भी आजकल बेवफा होता है। इसलिए विश्वगुरू की सरकार में आधे से ज्यादा डेटा आने बंद हो गये हैं। सूचना आयोग क्या कर रहा है, बाकी संस्थाएं किस तरह काम कर रही हैं ये सब सवाल बेमानी हैं क्योंकि मोदी हैं ना।

 सिस्टम इज वर्किंग एब्सोल्यूटली फाइन एंड यु डिजर्व इट। सात साल में बहुत सुधारा है और आगे भी सुधारेंगे। इसलिए सिस्टम बताकर मोदी को गाली देना बंद कीजिये। पूरी दुनिया में डंका बज रहा है और आप सरकार की बजा रहे हैं। ये देशद्रोह नहीं तो और क्या है?