चंडीगढ़ – सरकार के संज्ञान में आ ही गया कि बहोत से अफसर रिटायरमेंट के नजदीक खेल कर जाते हैं। ताबड़तोड़ फैसले कर जाते हैं। बैटिंग कर जाते हैं। धंधा कर जाते हैं। इसलिए उन पर अब कई तरह की शर्ते-बंदिशें लगाई गई कि वो रिटायरमेंट से दो महीने पहले तक ये फलां फलां काम नहीं कर सकेंगे। करेंगे तो इसके लिए फलां प्रक्रिया का पालन करना होगा। सरकार की सोच सही हो सकती है। एक ऐसे ही एक शरीफ से डीजीपी सज्जन थे। रिटायरमेंट के आखिरी दिन करीब 150 कांस्टेबल के तबादले कर गए थे। कहते हैं कि इस एवज में प्रति कांस्टेबल एक लाख रूपए प्रति कांस्टेबल रिश्वत वसूली गई थी।

ये डीजीपी जाते जाते एक कलम से डेढ करोड़ रूपए एक झटके में गटक कर गए थे। इसी तरह एक एफसीआर रहे सज्जन ने भी आखिरी दिनों में तबाही तबाही-त्राहि त्राहि मचा दी थी। पटवारी-कानूनगो-तहसीलदारों से खूब माल बनाया। सरकार ने रिटायरमेंट से दो महीने पहले तो शिंकजा कस दिया,लेकिन इस से ज्यादा सी बात बनती दिखती नहीं। अब ये अफसर अपनी रिटायरमेंट दो महीने पहले मान कर खेल लिया करेंगे। सरकार फेर के करेगी? कई कई महारथी तो ऐसे हैं जो नौकरी में आने के पहले दिन को ही अपनी रिटायरमेंट का अंतिम दिन मान कर खेल किया करते हैं। सरकार इन उच्च सोच वाले अधिकारियों का क्या करेगी?

सरकार को अपने अफसरों पर यंू भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए। अविश्वास नहीं करना चाहिए। उनको तो आगे बढने के लिए अनुकूल माहौल देना चाहिए। यही कहना चाहिए कि खाओ कमाओ। आप हैं तो हम हैं। आप से ही हम हैं। खींच कर लो। सारे बंधन तोड़ दो। मौज लो। सरकार का काम तो प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने का है। प्रतिभा दमन करने-कुचलने-मसलने के काम में सरकार को हरगिज नहीं संलिप्त होना चाहिए।

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