भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम में कोविड ने कहर ढा रखा है। आज टेस्टिंग में कंजूसी बरतने के बावजूद कोविड के नए लगभग तीन हजार मामले सामने आए। यह आंकड़ा अपने आपमें चौंकाने वाला है। वैसे आज प्रशासन में कुछ मुस्तैदी अवश्य नजर आई, मीटिंगें हुईं, कोविड से लडऩे की रणनीति बनाई गई लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि यह रणनीतियां या योजनाएं जमीन पर कितनी कारगर होंगी।

गत वर्ष से बहुत तेजी से कोरोना पांव पसार रहा है। गत वर्ष का अनुभव प्रशासन और जनता को है, जो सुखद तो नहीं कहा जा सकता। इस वर्ष भी लगभग पिछले एक सप्ताह से त्राहि-त्राहि मची हुई है लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक क्या किया गया? कहते हैं कि घर में आग लगी हो तो सब काम छोडक़र उसे बुझाने में लग जाना चाहिए। वर्तमान में भी कोरोना रूपी आग लगी हुई है, जिसे बुझाने में शासन और प्रशासन को लगना चाहिए लेकिन ऐसा दिखाई नहीं पड़ रहा।

गत वर्ष कोरोना फैलने पर प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से लोगों (विशेष रूप से गरीबों) में सेनेटाइजर और फेस मास्क बांटे गए थे। सारे शहर की सेनेटाइजिंग की गई थी विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों की, जबकि गत वर्ष लॉकडाउन था। अत: इस वर्ष की तुलना में गत वर्ष खतरा कम था।

 इस वर्ष न तो लॉकडाउन है, लोग पार्क वगैहरा सार्वजनिक स्थानों पर भी जा रहे हैं, बाजारों में भी जा रहे हैं लेकिन अभी तक सेनेटाइजिंग का कार्य दिखाई दे नहीं रहा, जो दिखाई देना चाहिए था। सेनेटाइज कराने के लिए मौहल्ला प्रधान या उस स्थान के प्रधान को विधायक, पार्षद या किसी वरिष्ठ अधिकारी से प्रार्थना करनी पड़ती है, तब वह क्षेत्र सेनेटाइज होता है। अर्थात आग लगी होने पर भी अपनी महत्वता दिखाने में नेता चूक नहीं रहे।

संक्षेप में प्रशासन को अपनी संस्थाओं को अपने कार्यों को छोड़ कोविड बचाव में लगाना चाहिए। जैसे निगम अभी भी तोडफ़ोड़ और निर्माण में लगा है। क्या यह सभी कार्य इस समय आवश्यक हैं? क्या सारे शहर को सेनेटाइज नहीं करना चाहिए? क्या गरीब लोगों तक मास्क और सेनेटाइजर उपलब्ध नहीं कराने चाहिए? क्या गरीब रोटी से मोहताज व्यक्ति ध्यान नहीं रखना चाहिए? ऐसे ही सवाल हैं।

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