दिखने लगे किसान आंदोलन के दुष्परिणाम

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक 

चंडीगढ़, 13 अप्रैल। किसान आंदोलन को साढ़े चार माह से अधिक का समय हो गया और सरकार इसे संभाल नहीं पा रही है। जितना सरकार बोलती है, उससे अधिक किसान आंदोलन के नेता बोलते हैं। आंदोलन के कारण अनेक जगह नेता जा भी नहीं पा रहे। इन परिस्थितियों का पूरे हरियाणा में एक संदेश जा रहा है कि सरकार कमजोर है और शायद उसी संदेश के कारण अन्य लोग भी मुखर होने लगे हैं।

मुख्यमंत्री ने आठवीं कक्षा तक के स्कूलों को 30 अप्रैल तक बंद करने की घोषणा कर दी और प्रत्युत्तर में उसी दिन स्कूल फैडरेशन ने घोषणा कर दी कि हम स्कूल बंद नहीं करेंगे। ऐसा शायद हरियाणा के इतिहास प्रथम बार हुआ है कि स्कूल फैडरेशन ने स्कूलों में सरकार का फैसला मानने से इंकार किया हो।

आज उन बातों को तीन दिन हो गए लेकिन सरकार स्कूल वालों को समझा नहीं पाई है। आज भी स्कूल फैडरेशन व अन्य शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि स्कूल खोलने की बात पर अड़े हुए हैं। अर्थात वे भी किसानों की तरह जिद पर अड़ गए।

इधर कल समाचार आया कि भाजपा के दो बार प्रदेश अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री रहे रामबिलास शर्मा ने स्कूल एसोसिएशनों से बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि वह मुख्यमंत्री से बात कर उनकी मांगें मनवाएंगे। इसी प्रकार आज स्कूलों की फैडरेशन गृहमंत्री अनिल विज से भी मिली और विज साहब ने भी उनकी बात पर विचार करने का आश्वासन दिया।

स्कूल फैडरेशन के एक सदस्य ने बताया कि कोरोना के कारण स्कूल बंद किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग अनिल विज के पास है और इसके साथ ही प्रदेश के हालात पर निगाह रखने का गृह विभाग भी उनके पास है। तो क्या यह घोषणा उन्हें नहीं करनी चाहिए थी? लगता है कि मुख्यमंत्री से किसी ने कहा कि ऐसा होना चाहिए और मुख्यमंत्री ने कहा कर दो। उन्हें प्रदेश के उन बच्चों का ख्याल रखना चाहिए जिनके हाथों में कल प्रदेश की बागडोर आनी है। बच्चों का एक वर्ष तो ऑनलाइन-ऑफलाइन के चक्कर में व्यर्थ हो गया। दूसरे वर्ष भी ऐसा ही चला तो क्या इन बच्चों के भविष्य पर असर नहीं पड़ेगा? यदि ऑनलाइन ही पढ़ाई हो सकती है तो फिर स्कूल खोलने की आवश्यकता ही क्या है?

इधर किसानों की बात करें तो प्रदेश सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि हम किसानों को कोई परेशानी नहीं हो दे रहे, सारा माल खरीद रहे हैं, 24 घंटे में पेमेंट करने की बात कर रहे हैं और इधर भिवानी के सांसद धर्मबीर सिंह से कुछ किसान मिले और उन्होंने बताया कि किस प्रकार वे परेशानियां झेल रहे हैं। सरकार के अधिकारी उन्हें परेशान कर रहे हैं और इस बात को सांसद धर्मबीर सिंह ने भी माना। साथ ही उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री से मिल इसका समाधान कराएंगे।

इसी प्रकार की घटनाएं हैं, जो यह दर्शाती हैं कि व्यापारी, कर्मचारी, मजदूर इस समय सरकार पर भरोसा नहीं कर रहा है और जो पहले चुप रहकर सहन करता था, वह आज मुखर होने लगा है। इससे यह अनुमान सहज लगाया जा सकता है कि सरकार को किसान आंदोलन की ही नहीं अपितु उसके साथ जनता और अपनी पार्टी में अपनी विश्वसनीयता कायम रखने से भी लडऩा पड़ रहा है। 

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