समय-समय पर जवानों से चर्चा करने से नक्सल समस्या समाधान के लिए कोई अच्छी रणनीति बन सके।
2013 में पटना में मोदी की चुनावी सभा के पास 5 और रेलवे स्टेशन पर 2, बम धमाके हुए,  6 जानें गईं, आज तक कोई दोषी सिध्द नहीं ।
14 फरवरी 2019 को, जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ,  45 सुरक्षा कर्मियों की जान गयी, पर उसके पीछे  सच छुपा रह गया।
नोटबन्दी के वक्त दावा था कि इससे आतंकवाद और माओवाद की कमर टूट जाएगी?  कोई कुछ नहीं पूछेगा, क्योंकि सवाल पूछना अब गुनाह है इस देश में।

अशोक कुमार कौशिक 

कौन थे वह चौबीस? इस देश के साधारण परिवार के बेटे। कई हम जैसे सुबह शाम गांव के मैदान में लगाते हैं दौड़, सेना में भर्ती होने के लिए। वह कोई सांसद या विधायक नहीं, जो देश मातम मनाए उनके जाने का। वह कोई धनाढ्य कॉर्पोरेट नहीं, जिसके घर के बाहर एक गाड़ी मिलने पर सरकारें हिल जाएं।

वह इस देश की माटी के लाल थे। जिसकी माटी आज हमारे रक्त से लाल है। आप थकते नहीं उनकी शहादत लेते लेते? आप सकते में क्यों नहीं हैं, जैसे एक अभिनेत्री के बयान से आ जाते हैं। उनकी क्या बिसात, और क्या औकात, सिवा एक या दो दिन की खबरों के। जो देशभक्ति उबालने के काम आती है। और देशभक्ति उबल कर जल्द ही ठंड़ी हो जाती है बासी चाय की तरह, अगली शहादत पर फिर उबलने, उकलने के लिए बैठी तैयार। क्यों हमारे ही देश के लोग उन्हे मारने को यूं उतारु हैं?

खैर, वह चौबीस शनै शनै चौबीस हजार भी बन जाएं, तो भी किसके पेट में दुखेगा। उनके परिवार यदि पेंशन के लिए भटके भीं, तो भी इस देश की भ्रष्ट व्यवस्था को कोई फर्क नहीं पडता। 

किसी धर्म को आहत करने वाली कोई बात नहीं हैं ये शहादत, जो देश सोचे, विचारै। वह चौबीस, कुछ जलेंगे, कुछ गड़ेंगे, छोडेंगे एक बूढ़ा किसान बाप, जिसे गर्वित होने का पूरा समाज बोलेगा, जवान बेटे की शहादत पर। ऐसी लाश, जिसके बोझ का अंदाज उस बाप के अलावा किसी को भी क्या होगा? 

वह चौबीस, जो मरें हैं देश के लिए, हमेशा की तरह। वह चौबीस, शायद बेवजूद से, जिन पर आप कुछ घंटो का गर्व करेंगे। हम चौबीस, जिनकी मृत्यु पर दर्द है भारत मां को, जो शायद अंतहीन पीड़ा को भोगने के लिए अभिशप्त है, क्योंकि जो संभाले हैं थाती, मां की देखभाल की, उनकी नज़र मां की बचत के संदूक पर है। लालची भेडियों से लार टपकाते वह, और वीर सपूत से खून बहाते वह।

क्यों बिना बड़ी वारदात के बस्तर में तैनात जांबाज जवानों को ऐसा अवसर नही मिलता की वह अपनी बातें साझा करें। मुख्यमंत्री, मंत्री, केंद्रीय मंत्री उनके साथ बैठे,चर्चा करें, जाने और समझे की कैसे जवान उन हालातो के बीच रहते है, कैसे अपना दिन गुजारते है, कैम्प में सुविधा,अधिकारियों का व्यवहार उनका अनुभव, उनकी समस्या जाने और सुविधा सेवा के लिये जो बेहतर हो सके उस पर कार्य किया जा सके। संभव है कि समय-समय पर जवानों से चर्चा करने से नक्सल समस्या समाधान के लिए कोई अच्छी रणनीति बन सके।

 2013 में पटना में मोदी की चुनावी सभा के वक्त रैली स्थल पर 5 और रेलवे स्टेशन पर 2, कुल 7 बम धमाके हुए, जिसमें 6 जानें गईं, उस वक्त के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री की जान को खतरा पहुँचाने की संभावना पैदा करने वाले उस मामले में आज तक कोई दोषी सिध्द नहीं हो सका है। उस वक्त देशभर की तमाम जनता के साथ-साथ इस घटना ने मुझे भी बहुत भावुक कर दिया था और वोटिंग मशीन में कमल के सामने वाले बटन दबने की संख्या में इजाफा हो गया था।

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 14 फरवरी 2019 को, जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर भारतीय सुरक्षा कर्मियों को ले जाने वाले सीआरपीएफ के वाहनों के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें 45 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की जान गयी थी, उस वक्त दिन में 18-18 घण्टे काम करने वाले हमारे जनप्रिय पीएम महोदय बीयर ग्रिल्स के साथ उत्तराखंड के  जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में डिस्कवरी चैनल के लिए शूटिंग कर रहे थे। 45 जवानों की जान गई, पर उसके पीछे यह सच छुपा रह गया कि सीआरपीएफ के जवानों द्वारा उन्हें एयरलिफ्ट करने की मांग ठुकरा दी गई थी। पुलवामा अटैक एक बड़ा I इंटेलिजेंस फेल्योर था, पर बदले में अभिनन्दन मामले और एयर स्ट्राइक के बदले पब्लिक ने इमोशनल होकर सब भुला दिया। वोट फिर एक बार बरस चुके थे, पर पुलवामा हमले के असली जिम्मेदार कौन थे? इस सवाल का जबाव आज भी ऑफिशियली नहीं मिला है। ये बात और है कि अर्नब गोस्वामी की लीक हुई चैटिंग पुलवामा हमले के मामले में तमाम सन्देह पैदा करती है।

इस बार फिर चुनावी मौसम चल रहा है और  माओवादियों द्वारा छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 24 जवानों को मौत की नींद सुला दिया गया है। जिस तरह से यह मुठभेड़ हुई है, वह फिर से एक बड़ा इंटेलिजेंस फेल्योर  है। देश के गृहमंत्री और दिन में 18-18 घण्टे देश के लिए काम करने वाले प्रधानमंत्री , शायद बाकी के बचे हुए 6 घण्टों में पाँच राज्यों के चुनाव हेतु भाजपा का प्रचार करने में व्यस्त हैं। देश फिर से भावुक है। हताहत जवानों को न्याय मिले या न मिले, पर इन भावनाओं के बदले वोट ज़रूर बरसेंगे। तो कुल मिलाकर पूरा देश और उसकी सारी व्यवस्थाएं चुनावों के इर्द गिर्द ही घूमने लगी हैं। लोग भावुक ज़रूर हैं, पर ये पता नहीं करेंगे कि आखिर क्यों देश में पिछले बरस माओवाद प्रभावित राज्यों को दी जाने वाली केंद्र की मदद 74 फीसदी तक कम कर दी गई? और न ही ये पूछेंगे कि नोटबन्दी के वक्त किये गए उन दावों का क्या हुआ जिनमें कहा जा रहा था कि नोटबन्दी से आतंकवाद और माओवाद की कमर टूट जाएगी? कोई नहीं पूछेगा कि पुलवामा की घटना की नैतिक जिम्मेदारी किसने ली और 2013 के बम धमाकों का असली दोषी अब तक सामने क्यों नहीं आ पाया, जबकि उन बम धमाकों का सम्बन्ध उस नेता की रैली से था, जो आज देश के प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान है, कोई कुछ नहीं पूछेगा, क्योंकि सवाल पूछना अब गुनाह है इस देश में। कलयुगी भारत की इस कथा में मूढ़ दर्शकों का स्वागत है।

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