चिंतन

हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओपी धनखड़ विचारक भी हैं। चिंतन-मंथन-स्वाध्याय करते रहते हैं। लिखते-पढते रहते हैं। व्यक्तित्व विकास पर कार्यशालाएं करते रहे हैं। इन में प्रवचन देते रहे हैं। राजनीति में इस विधा और इस प्रतिभा के लोग इन दिनों सीमित से हो गए हैं। इन दिनों चल रहे किसान आंदोलन को लेकर धनखड़ काफी चिंतित हैं। उनको लगता है कि इस आंदोलन से किसानों और उसमें भी खास तौर पर जाटवर्ग बड़े सियासी-सामाजिक नुकसान की तरफ बढ रहा है। ऐसा ही नुकसान जाट वर्ग आरक्षण आंदोलन के दौरान उठा चुका है। उस आंदोलन के भी गहरे समाजिक और सियासी असर हुए थे। भाजपा हो चाहे कांग्रेस हो,दोनों पार्टियो के कई बड़े जाट नेताओं को लोकसभा-विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा। भूपेंद्र हुडडा-दीपेंद्र हुडडा,कैप्टन अभिमन्यु,ओमप्रकाश धनखड़,करन दलाल,रणदीप सुरजेवाला समेत कई नेताओं को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।

ये जाट आंदोलन के साइड इफैक्ट थे जो पहले नहीं दिख रहे थे,लेकिन चुनाव नतीजे के बाद तो दूर से ही देखे-समझे-महसूस किए जा सकते हैं। अब किसान आंदोलन की आड़ में फिर से ऐसे ही बीज बोए जा रहे हैं। फिर से नफरत का जहर घोला जा रहा है। ऐसे में किसानों और उसमें में भी पढे लिखे किसानों को-जाटों को सक्रिय भूमिका निभाने की पहल करनी पड़ेगी। समाज के लोगों को-खाप के लोगों को आगे आ कर युवाओं को ये समझाना पड़ेगा कि किसान कानूनों का आंख मंूद कर एकमुश्त-एकतरफा विरोध का आंदोलन चलाने से किसी को कुछ हासिल नहीं होने वाला। अगर ये लगता है कि इन कानूनों में कुछ सुधार होना चाहिए तो उन सुधारों को करवाने की तरफ बढना चाहिए। दूसरे के हाथों का खिलौना नहीं बनना चाहिए। किसी भी समस्या का हल संवाद से ही निकल सकता है। किसान आंदोलन की तस्वीर वैसी नहीं है, जैसी दिख रही है या दिखाई जा रही है। इसमें कई ऐंगल हैं। इसमें किसानों के नाम पर कुछ स्वार्थी तत्व अपना घर बना चुके हैं। अपना एजैंडा चला चुके हैं। आंदोलन करना एक बात है। शांतिपूर्ण आंदोलन करना, इसको सफलता से चलाना और फिर अपनी मांगे मनवा कर आंदोलन को खत्म करवाना ही सबसे बड़ा-अलग-मुश्किल-जटिल मुददा है। इसको बारिकी से समझना होगा। अड़ियलपन त्यागना होगा।

केंद्र सरकार ने जब इस कानून को डेढ-दो बरस तक स्थगित करने का वादा किया था तो तब इस आंदोलन को खत्म करने का सही समय था। ऐसे में अब फिर से किसानों को ये सोचना होगा कि क्या वो इस आंदोलन के जरिए अपना और अपने समाज का भला कर पा रहे हैं? क्या उनको इस से कुछ अभी तक हासिल हो गया या भविष्य में हासिल होने की कुछ आस है? सिर्फ हुड़दंग करने या सरकार के लोगों का विरोध करने से बात नहीं बनने वाली। ये समझना होगा कि इस आंदोलन से आम लोगों को कठिनाई हो रही है। उनके व्यापार और कारोबार प्रभावित हो रहे हैं। आंदोलन के प्रति लोगो की सहानुभूति खत्म हो रही है। आए दिन रास्ते रोकने से सभी वर्गो को कठिनाई हो रही है। सामाजिक ताने बाने पर खराब असर पड़ रहा है। इन सब मुददों पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है।

अगर ये स्थिति यंू ही रही तो आने वाले समय में हालात और ज्यादा विस्फोटक हो जाएंगे। कई गुना घातक सामाजिक और सियासी नतीजे आएंगे। ये समझना पड़ेगा कि किसी भी सरकार में-सत्ता में-पावर में मनमाफिक हिस्सेदारी धौंस दिखा कर नहीं ली सकती। अकड़ से या आंख दिखा कर हासिल नहीं की जा सकती। इसके लिए लट्ठ बजाने से बात नहीं बनेगी,बल्कि होशियारी और चतुराई से काम लेना पड़ेगा। समझदार होना पड़ेगा। दिखना कुछ पड़ेगा-होना कुछ पड़ेगा-कहना कुछ पड़ेगा-करना कुछ पड़ेगा। इस हालात पर कहा जा सकता है:
आए थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
इक आग सी वो और लगा कर चल दिए

सरकार और सुझाव

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल का चंडीगढ स्थित मीडिया के साथ अचानक से संवाद बढ गया है। अब ये हालात के कारण हुआ-जरूरत के कारण हुआ, ये तो वो ही बेहतर जानते होंगे। इसी क्रम में मुख्यमंत्री हरियाणा निवास में मीडिया से मुखातिब थे। अपनी सरकार की कुछ नई योजनाओं के बारे में चर्चा कर रहे थे। उन्होंने मीडिया वालों से भी सुझाव आमंत्रित किए। कहा कि सरकार को बेहतर बनाने के लिए दिए जाने वाले सुझावों का वो स्वागत करेंगे। उनको लागू करेंगे। उनकी इस नेक इच्छा को हाथों हाथ पूरा किया गया। उनको बताया गया कि हरियाणा में कई स्थानों पर एग्रो माल बने हुए हैं। करोड़ों रूपए खर्च करने के बावजूद ये माल खंडहर बन रहे हैं। इनमें कव्वे बोेल रहे हैं। इनका सदुपयोग करने की तरफ सरकार को नीति-योजना बनानी चाहिए। और अगर सरकार में इनको सदुपयोग करने का दम नहीं है-सक्षम नहीं है तो फिर उनको बेचना चाहिए।

वैसे भी हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री सरकारी संपत्तियों को बेच कर उस से हासिल होने वाले वाले पैसे से जनकल्याण करने का घनघौर अभियान चलाए हुए हैं। ऐसे में हरियाणा सरकार को भी इस नेक काम में नहीं चूकना चाहिए। कुछ तो करना चाहिए। इस से पहले कि इन एग्रो माल का अस्तित्व ही मिट जाए सरकार को पहल कदमी करनी चाहिए। जब मुख्यमंत्री को ये सुझाव भेंट किए गए तो उस समय विभागीय मंत्री,विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव,मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव और सीए मार्किटिंग बोर्ड साक्षात तौर पर उपस्थित थे। अब देखना है कि सरकार इन सुझावों पर क्या फैसला लेती है? कुछ करती भी है या फिर यंू ही बात ही बात करती है? सरकार अगर वाकई में इस नेक काम को कर पाई तो फिर हम सुझावों की तो लाइन लगा देंगे। सरकार को फैसला करना मुश्किल हो जाएगा कि किसे मानें और किसे ना मानें?

वीना सिंह

डा.वीना सिंह को हरियाणा स्वास्थ्य विभाग का मुखिया बना दिया गया है। वो अब स्वास्थ्य विभाग की महानिदेशक बन गई हैं। अपनी स्टाइलिंग सैंस और फैशन सैंस के अलावा वो अपने बोल्ड अंदाज से भी चर्चा में रही हैं। उनका ये बोल्ड अंदाज कोरोना काल में सामने आया था। एक समय जब कोरोना वैक्सीन पर कई किस्म के सवाल उठाए जा रहे थे और लोग इस वैक्सीन को लगवाने से कतरा रहे थे तब डा.वीना सिंह ने ही आगे बढ कर पहल करते हुए वैक्सीन लगवा कर वैक्सीनेशन के अभियान को तेज गति दी। वो मूलत:रेडियोलोजिस्ट हैं। उनके पति देवेंद्र सिंह की गितनी हरियाणा के धाकड़ और तेज तर्रार आईएएस अफसरों में होती हैं। उम्मीद है कि डाक्टर वीना सिंह विभाग को बुलंदी पर ले जाने के लिए कुछ नया-कुछ बड़ा कर जाएंगी।

चाचा-भतीजा

सब समय की बात है। एक समय दुष्यंत चौटाला उचाना विधानसभा सीट से करीब 50 हजार वोट से जीत कर विधायक बने थे। अब सरकार में डिप्टी सीएम होने व किसान आंदोलन के कारण वो किसानों के निशाने पर हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि वो अपने विधानसभा क्षेत्र में जाने से कतरा रहे हैं। इधर, इस मौके का फायदा उठाने के लिए उनके चाचा और विपक्ष के पूर्व नेता अभय चौटाला सक्रिय हो गए हैं। अभय उचाना का दौरा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि दुष्यंत अब मेरा नहीं,उचाना का भतीजा हो गया है। अगर दुष्यंत यहां आए तो उनके स्वागत में कोई कसर मत छोड़ना। इस हालात पर कहा जा सकता है:

पता अब तक नहीं बदला हमारा
वही घर है,वही किस्सा हमारा
वही टूटी हुई किश्ती है अपनी
वही ठहरा हुआ दरिया हमारा
हम अपनी धूप में बैठे हैं
हमारे साथ है बस साया हमारा

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