*मुख्यसचिव कार्यालय की राजनीतिक शाखा के पत्र पर चली थी कार्रवाई।
– सरकार ने महेन्द्रगढ़ में एडीजे कोर्ट बैठाने को लेकर दिखाई  थी दिलचस्पी।

भारत सारथी/ कौशिक

 नारनौल । महेन्द्रगढ़ उपमण्डल में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश का न्यायालय स्थापित करने में हरियाणा सरकार ने पूरी दिलचस्पी दिखाई है। इसके लिए ना केवल सरकार के उच्च अधिकारियों के कार्यालयों में पत्राचार चला अपितु सरकार ने हाईकोर्ट में भी जमकर पत्राचार किया। सरकार के पत्राचार पर पहले तो पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने महेन्द्रगढ़ में एडीजे की कोर्ट स्थापित करने को विचाराधीन बताया किन्तु 48 दिन बाद यूटर्न लेते हुए, सरकार को वापस चिठ्ठी लिख दी कि महेन्द्रगढ़ में एडीजे कोर्ट बैठाने का फैसला सरकार का हो सकता है, उच्च न्यायालय ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है। 

इस जानकारी का खुलासा जिला बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान मनीष वशिष्ठ एडवोकेट द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना पर हुआ है। उन्होंने गत 12 फरवरी को मुख्य सचिव हरियाणा के कार्यालय से इस संबंध में सूचना की मांग की थी। 

गौरतलब है कि महेन्द्रगढ़ नगर के अधिवक्ता महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय को स्थापित करने तथा नारनौल के अधिवक्ता इसके विरोध में लम्बे समय से धरने पर बैठे हैं। दोनों नगरों के अधिवक्ता जिला का नाम अपने अपने नगरों पर करवाने की मांग भी कर रहे हैं।

श्री वशिष्ठ ने बताया कि आरटीआई से खुलासा हुआ है कि 3 मई 2020 को जब सारा देश लॉकडाउन में था, तब मुख्य सचिव कार्यालय की राजनैतिक शाखा ने बार एसोसिएशन, महेन्द्रगढ़ द्वारा फरवरी 2020 में सौंपे गए ज्ञापन को सरकार के 26 उच्च अधिकारियों को अग्रेसित किया। उस पर कार्रवाई करते हुए हरियाणा सरकार ने उसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के महापंजियक को भेज दिया। इसके बाद 5 जनवरी 2021 को महेन्द्रगढ़ बार एसोसिएशन के प्रतिनिधि मण्डल ने चण्ड़ीगढ़ में मुख्यमंत्री से मिल कर फिर से ज्ञापन सौंपा। 

इसी बीच 18 जनवरी को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के सहायक पंजियक गजेट-द्वितीय ने महापंजियक कार्यालय की तरफ से पत्र क्रमांक 1129 गज.।। (7-जी) जारी करके अतिरिक्त मुख्य सचिव, न्याय एवं प्रशासन, हरियाणा सरकार को सूचित किया कि महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश का न्यायालय स्थापित करने का मामला उच्च न्यायालय के विचाराधीन है। 

श्री वशिष्ठ ने बताया कि माननीय उच्च न्यायालय के उक्त पत्र के बाद महेन्द्रगढ़ बार एसोसिएशन द्वारा एक अन्य प्रतिवेदन मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार को प्रेषित किया गया, जो 1 फरवरी 2021 को मुख्यमंत्री कार्यालय में प्राप्त हुआ। जिस पर 1 फरवरी को ही मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव ने अपनी टिप्पणी लिख दी कि हरियाणा सरकार ने लोकहित में निर्णय लिया है कि महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश का न्यायालय स्थापित हो तथा इस संबंध में मुख्यमंत्री ने भी इच्छा जाहिर है कि इस संबंध में तत्काल उच्च न्यायालय से आग्रह किया जाए। जिस पर कार्रवाई करते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव न्याय व प्रशासन ने 2 फरवरी 2021 को ही उच्च न्यायालय के महापंजियक को पत्र लिख कर स्पष्ट कर दिया कि महापंजियक कार्यालय के उक्त पत्र दिनांक 18 जनवरी 2021 के सन्दर्भ में हरियाणा सरकार ने लोक हित में महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय को स्थापित करने का सैद्धांतिक निर्णय लिया है तथा सरकार ने उच्च न्यायालय के महापंजियक से यह भी अनुरोध किया कि इस मामले का शीघ्रता से निपटान करते हुए आधारिक व वित्तीय संरचना का सम्पूर्ण प्रस्ताव बना कर भेजे।

सरकार के उक्त पत्र से नाराज होकर गत 3 फरवरी 2021 को नारनौल के अधिवक्ता, महेन्द्रगढ़ में ऐडीजे कोर्ट स्थापित करने के विरोध में धरने पर बैठ गए।इसी बीच 9 व 10 मार्च को नारनौल सत्र खण्ड के प्रशासनिक न्यायाधीश को वार्षिक निरीक्षण के लिए दौरा था, जिसका नारनौल के अधिवक्ताओं ने विरोध का ऐलान कर दिया। तभी 8 फरवरी 2021 को महापंजियक कार्यालय की तरफ से सहायक पंजियक गजेट द्वि़तीय ने सरकार के 2 फरवरी के उक्त पत्र तथा उसके अनुक्रम में भेजे गए स्मरण पत्रों के सन्दर्भ में एक पत्र जारी कर दिया कि महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय की स्थापना का निर्णय सरकार का स्वयं के स्तर पर है तथा इस संबंध में उच्च न्यायालय ने अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। 

पूर्व बार प्रधान का कहना है कि माननीय उच्च न्यायालय के महापंजियक कार्यालय के वही सहायक पंजियक 18 जनवरी के पत्र के द्वारा महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के न्यायालय की स्थापना को विचाराधीन बता रहे थे, वही 48 दिन के बाद सरकार को पत्र जारी कर रहे हैं कि महेन्द्रगढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की स्थापना का कोई उच्च न्यायलय का कोई विचार नहीं हैं। 

श्री वशिष्ठ का कहना है कि उच्च न्यायालय के महापंजियक ने अचानक यह यूटर्न क्यों लिया, इसका खुलासा करने के लिए वह उच्च न्यायालय के महापंजियक कार्यालय से आरटीआई मांगेंगे। वहीं नारनौल के कुछ अधिवक्ताओं का यह कहना है कि उच्च न्यायालय का यह पत्र उन्हें गुमराह करने के लिए भी हो सकता है।

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