जम्हूरियत दर्जे हकीकत है ,इसमें सिर गिने जाते हैं तोले नहीं जाते ।

धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ – देश में तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान साढे 3 महीने से आंदोलन कर रहा है ।इतने लंबे आंदोलन को शायद अगली पीढ़ी के लोग भी ना देख पाए ।इतना बड़ा आंदोलन पहले भी देश में कभी नहीं हुआ होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं केंद्र सरकार में उनके सहयोगी साफ कर चुके हैं कि यह कानून वापस नहीं होंगे। हरियाणा में भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इसी भाषा का इस्तेमाल कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं ।

इस आंदोलन का हरियाणा पर सबसे ज्यादा असर हो रहा है। अभी तक 11000 करोड का नुकसान आंका लिया गया है पंजाब और हरियाणा में एक शर्त यह है कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार है जबकि हरियाणा में भाजपा और जेजेपी गठबंधन सरकार है।

स्थिति यह है कि हरियाणा की जनता की नजरों में अब दो तरह के विधायक रह गए हैं ।एक वह जो सरकार के साथ हैं और उपरोक्त कानूनों का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। दूसरे वह जो कानून के और सरकार के खिलाफ जनता के बीच में आकर खड़े हो गए है। अनुपात सबके सामने आ गया है 32 और 56 ।

56 सरकार के हक में है 32 सरकार के खिलाफ है जो 32 को 33 बना सकते थे वह हिम्मत नहीं दिखा पाए एक्सपोज हो गए हैं। एक्सपोज ही नहीं उन्हें नई संज्ञा दोगले की मिल गई है । राजनीति में एक सर्वमान्य कहावत है कि यहां जो व्यक्ति दो नाव में सवार होता है वह जरूर डूबता है ।परंतु अब तो स्थिति यह आ गई है कि जो विधायक अपने नेताओं के पक्ष में आकर खड़े हो गए हैं उन्हें निश्चित तौर पर चुनाव के समय मुंह की खानी पड़ेगी । क्योंकि उस समय लोग कहेंगे कि तुम्हें टिकट तो मोदी ने दुष्यंत ने दे दिया होगा लेकिन वोट तो हमें देनी है। इन लोगों के पास अब सत्ता तो है 4 साल भी हैं परंतु उसके बाद नहीं लगता कि लोग उन्हें माफ कर देंगे। क्यों कि उन्हें आज जनता और जनता की ताकत शायद नजर नहीं आ रही है।

आपको बता दें कि विधानसभा सत्र के दौरान एक हल्का विशेष के किसान प्रतिनिधि नारेबाजी करते हुए अपने जेजेपी विधायक के कार्यालय पहुंचे और उनसे पेशकश की कि वे उनकी बात माने । बात यही थी कि वे या तो विधानसभा ना जाए ,जाएं तो सरकार के खिलाफ वोट डालें। किसानों के एक प्रतिनिधि ने बड़े साफ शब्दों में कहा कि विधायक जी यह समझ ले कि यदि उनकी बात नहीं मानी गई तो फिर वे राज्य के नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर कहीं जाए कहीं आए लेकिन गांव में उन्हें लाल डोरे के अंदर नहीं घुसने दिया जाएगा।

अब तो लोगों ने सरकारपरस्तअपने विधायकों को विवाह शादी में बुलाना भी बंद कर दिया है और यदि कोई बुला लेगा तो आधा गांव तो उसके वैसे ही खिलाफ हो जाएगा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा वाला वह कथन उस अवस्था में भी दोहराया जाएगा कि लट्ठ लेकर मंच के चारों और घूम रहे व्यक्ति ने यह कहा था कि मैं सांग वाले को कुछ नहीं कहता उसे ढूंढ रहा हूं जो इसे बुलाकर लाया था।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने विधानसभा में जिस तरह मुख्यमंत्री उपमुख्यमंत्री और उनके साथ खड़े विधायकों पर जब यह व्यंग कसा कि वे अपने हलकों में जाकर तो दिखाएं ,तो कोई बोला नहीं । किसी ने इसका जवाब नहीं दिया। ऐसा लगा जैसा कि इन सब को सांप सूंघ गया है।

इस संदर्भ में दो बातें ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ा हर व्यक्ति जानना और पूछना चाहता है कि इस तरह की हठधर्मिता सरकार क्यों कर रही है। सरकार की तरफ से ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि बाल हट्ठ त्रिया हट्ठ राज हट्ठ नुकसान और विनाश के परिचायक माने जाते हैं। कहते हैं की संवाद के बिना समाधान नहीं हो सकता और सरकार अब संवाद भी नहीं कर रही।

हरियाणा और देश में तो चुनाव अभी देर से होने हैं परंतु हाल में जो विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं या हरियाणा में दो उप चुनाव होने हैं ,उनमें भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हुआ उसे हार का मुंह देखना पड़ा तो फिर इन चुनाव को किसान आंदोलन की प्रयोगशाला कहा जाएगा और यह सरकार के खिलाफ जनमत संग्रह का काम करेंगे । लोग कहते हैं कि इस समय जो विधायक सरकार के साथ खड़े होकर सत्ता का सुख भोग रहे हैं उन्हें आगे चुनाव में बहुत भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है । किसी शायर ने कहा है कि,
जम्हूरियत दर्जे हकीकत है ,
इसमें सिर गिने जाते हैं तोले नहीं जाते ।

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