रमेश गोयत

पंचकूला, 09 मार्च। यूनाइटेड फोरम आॅफ बैंक यूनियंस ने सरकार ने हाल के बजट सत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा के विरोध में मगलवार को बैक अधिकारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। विरोध में बैक अधिकारी यूनियन के नेता हरविंद्र सिंह ने बताया कि 1969 में 14  प्रमुख निजी बैंकों का राष्टÑीयकरण और 1980 में 6 और बैंकों का राष्टÑीयकरण किया था। जिसमे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने जन्म लिया, और एक नए युग की शुरुआत की। यद्यपि देश ने 1947 में स्वतंत्र हुआ, परन्तु  आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ था। बुनियादी और व्यापक-आधारित आर्थिक विकास समय की आवश्यकता थी। लेकिन दुर्भाग्य से, तत्कालीन बैंक, जो सभी निजी हाथों में थे और उनमें से कई बड़े औद्योगिक और व्यावसायिक घरानों के स्वामित्व में थे, विकास की प्रक्रिया में योगदान देने के लिए आगे नहीं आए। कृषि क्षेत्र, ग्रामीण और कुटीर उद्योग, लघु उद्योग और व्यवसाय, जो हमारी अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे और अर्थव्यवस्था के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र उपेक्षित रहे।

बैंकों का राष्टÑीयकरण और उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत लाना देश की प्रगति को गति देने के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुए। बैंक आम लोगों तक पहुंचने लगे, ग्रामीण इलाकों और दूरदराज के गांवों में बैंक शाखाएं खुलने लगीं, लोगों की निजी बचत को बैंकिग प्रणाली में लाया गया।  कृषि, रोजगार सृजन उत्पादक गतिविधियाँ, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्यात, आधारभूत संरचना, महिला सशक्तीकरण, लघु उद्योग और मध्यम उद्योग, लघु और सूक्ष्म उद्योग, जैसे उपेक्षित क्षेत्र प्राथमिकता वाले क्षेत्र बन गए। बैंक क्लास बैंकिंग से मास बैंकिंग में बदली गई। आम आदमी और समाज से वंचित वर्ग सुविधाजनक और सुरक्षित बैंकिंग सेवाओं का उपयोग आजादी से करने लगे। अर्थव्यवस्था में तेजी आई और पिछले 5 दशकों में कई बड़ी प्रगति और उपलब्धियां हासिल हुईं।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हमारी अर्थव्यवस्था के विकास वाहन हैं। राष्टÑीय बैंक लोगों की बचत और लोगों के विश्वास के भंडार और निक्षेपागार के ट्रस्टी बन गए हैं। बड़े कॉरपोरेट उधारकर्ताओं द्वारा विलफुल डिफॉल्ट, गैर-कल्पित इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के माध्यम से भारी रियायत पा रहे है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बैलेंस शीट कॉरपोरेट घरानों के ण माफ के वजह से कमजोर हो रही है। इसने न केवल बैंकों की लाभप्रदता को प्रभावित किया है बल्कि समर्पित बैंक कर्मियों की मेहनत बेकार जा रही है। इसलिए, यह यूनाइटेड फोरम आॅफ बैंक यूनियंस सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध करता है और आंदोलनकारी कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार और बैंक प्रबंधन का ध्यान आकर्षित करता है  ताकि सरकार को अपने अनुचित नीतियों का अहसास हो सके ।

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