– 2014 से पहले महँगाई व भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा किस तरह सड़कों पर उतर जाती थी।
– विपक्ष पर सीबीआई, ईडी संस्थाओं का डंडा चलाकर पस्त कर दिया गया
– किसी महानायक का इंतजार?
– मर चुके विपक्ष का कब होगा अंतिम संस्कार।

अशोक कुमार कौशिक

आज देश मे विपक्ष नाम की चीज नही रह गयी है, है भी तो वो अलग-अलग टुकड़ों में जो सरकार को किसी भी मुद्दे पर पूरी तरह घेरने के लिए नाकाफी है।

याद कीजिये कि 2014 से पहले महँगाई व भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा किस तरह सड़कों पर उतर जाती थी। सरकार की नाक में दम किये रहती थी। आज देश उससे कई गुना ज्यादा बुरे दौर से गुजर रहा है। महंगाई चरम पर है, भ्रष्टाचारी विदेशों में मौज कर रहे हैं, बेरोजगारी अपने सारे कीर्तिमान तोड़ चुकी है, सरकारी संस्थाएँ एक-एक कर बेची जा रही हैं, विरोध करने वालों पर देशद्रोह की धारा लगा दी रही है, मीडिया को खरीदकर अपने पक्ष में कर लिया गया है, साम्प्रदायिक ताकतें सर उठा कर चल रही हैं, तमाम तरह के नए टैक्स और सेस लगा-लगाकर जनता का जीना मुहाल कर दिया गया है, कानून चंद उद्योगपतियों को ध्यान में रख कर बनाये जा रहे हैं, नए श्रम कानूनों से मजदूरों के हाथ काट दिए हैं।

आज इन परिस्थितियों में जहाँ विपक्ष को एकजुट होकर सड़कों पर होना चाहिए, वो विपक्ष अपने अस्तित्व को बचाने में ही लगा पड़ा है। विपक्ष पर सीबीआई, ईडी जैसी संस्थाओं का डंडा चलाकर उन्हें पस्त कर दिया गया है। तो इन परिस्थितियों में लगता नही कि भाजपा सरकार का मुकाबला विपक्ष कर पायेगा। अब तो बस एक एक ही उम्मीद है कि कोई जेपी जैसा महानायक निकलकर सामने आए जिसे जनता भरपूर समर्थन देकर वर्तमान सरकार को चित्त कर दे।

देश में विपक्ष मरने की शुरुआत तो 2014 में हो गयी थी। लेकिन बीच बीच मे देश भर में होने वाले कुछ चुनावों में विपक्ष दिया बुझने से पहले फड़फड़ाने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए अपने ज़िंदा होने का सबूत देता रहा है। 2015 में बिहार चुनाव, 2017 में बंगाल चुनाव 2017 में पंजाब चुनाव में विपक्ष ने केंद्रीय सरकार की सत्ताधारी पार्टी को मत देकर यह साबित करने की कोशिश की। 2018 में हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश चुनाव में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी सत्ता बनाकर यह बताने की कोशिश की कि विपक्ष पुनर्जीवित हो रहा है। लेकिन उसकी आशाओं पर पूरी तरह से तुषारपात हो गया 2019 कि आम चुनावों में जब सत्तारूढ़ भाजपा ने न केवल अपने गढ़ को सुरक्षित रख बल्कि बंगाल में अपने लिए नए रास्ते भी खोजे। 2019 के चुनाव में पूरे देश मे सत्तापक्ष को आंख दिखाने वाली कोई भी पार्टी नही बची। जिससे यह माना जाने लगा कि इस देश से  विपक्ष लगभग समाप्त हो चुका है।

 विपक्ष को मारने में सत्तापक्ष ने कोई भी कसर नही रखी। जब विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारें भी भाजपा के निशाने पर आने लगी पहले कर्नाटक में विपक्षी सरकार गयी फिर एमपी की कांग्रेस सरकार गिरी। इसे देश में विपक्ष की दुर्गति मानी गयी। अभी हाल में ही विपक्ष की एक और सरकार पुडुचेरी में भी यही कहानी दोहराई गयी तो यह मान लिया गया कि विपक्ष अब देश मे मर चुका है। अब सवाल यह उठता है कि जब देश में विपक्ष मर चुका है तो उसका अंतिम संस्कार कब होगा?

हम यह सवाल क्यों उठा रहे हैं कि विपक्ष मर चुका है बस ज़रूरत है उसके अंतिम संस्कार की। आखिर जब कोई मर जाता है तो उसका अंतिम संस्कार करना भी तो ज़रूरी है? यदि यह हमारी गलतफहमी है कि विपक्ष मर चुका है तो कहाँ है विपक्ष? पेट्रोलियम उत्पादों में लगातार लगने वाली आग के खिलाफ कोई आवाज़ क्यों सुनाई नही पड़ती? क्यों विपक्ष की ओर से अभी तक कोई सड़क पर नही आया? पूरे देश की जनता महंगाई से त्राहि त्राहि कर रही है फिर भी विपक्ष यदि है तो चुप क्यों? आखिर देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी जिसके पास लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदनों  में 50 से अधिक सदस्य हैं जिसके पास आज भी कई राज्यों का शासन है उनके प्रमुख नेता सड़क पर उतरने से क्यों घबराते है? देश के सबसे बड़े विपक्षी चेहरा राहुल गांधी को किस बात का डर है जो वह केवल ट्विटर पर ही सक्रिय दिखते हैं। यह सही है कि उन्होंने कभी सड़क की राजनीति नही की है लेकिन बढ़ती महंगाई को मुद्दा बनाने और इस मुद्दे पर सड़क पर उतरने में उन्हें क्या घबराहट है? 

 राहुल गांधी ही क्यों देश मे विपक्ष का कई और भी चेहरा है। अखिलेश यादव, मायावती, तेजस्वी यादव, केजरीवाल, चौटाला, अकाली, ममता बनर्जी यह सब भी मौन क्यों है। विपक्ष के अन्य चेहरे ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की मजबूरी समझ मे आती है इन दोनों नेताओं के पास अपने अपने राज्यों की ज़िम्मेदारी है। ममता जहां चुनाव में व्यस्त हैं तो केजरीवाल एक ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री हैं जिसे बहुत कुछ केंद्र के रहमोकरम पर रहना पड़ता है। इसलिए इस दोनों की मजबूरी समझ मे आती है। पर राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश यादव,  तेजस्वी, अकाली और इनेलो मौन क्यों है? कांग्रेस के अन्य बड़े बड़े नाम कहां हैं? सत्ता की मलाई खाने में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले कांग्रेस के तथाकथित बड़े बड़े नाम मौन क्यों है?

आखिर महँगे पट्रोल, डीज़ल का असर आम जनता पर नहीं पड़ता? पिछले 3 महीनों में रसोई गैस की कीमत कुल 125 रुपये के आसपास बढ़ गयी जिसका असर देश की हर रसोई पर पड़ा। पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों के असर हर आम आदमी पर पड़ा। सरकार अपनी बाज़ीगरी कर ट्रेन व प्लेटफार्म के टिकट का भाव आसमान पर पहुचा चुकी है। इतना सब कुछ होने के बाद भी विपक्ष की चुप्पी से यह ही साबित होता है कि विपक्ष मर चुका है। जब कोई मर ही चुका है तो उसका मृत शरीर ज़्यादा दिन रखना भारतीय सभ्यता में उचित नही है। कृपया हमें मरे हुए विपक्ष के अंतिम संस्कार का दिन और समय ही घोषित कर देना चाहिए।

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