विश्व श्रवण दिवस के उपलक्ष पर नागरिक अस्पताल में कार्यक्रम.
स्वयं एसएमओ नीरू यादव ने सबसे पहले कान की जांच करवाई.
ध्वनि प्रदूषण और लापरवाही कान के रोग की बन रहे बड़ी समस्या

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 विश्व श्रवण दिवस के उपलक्ष पर पटौदी के नागरिक अस्पताल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया । इस मौके पर मुख्य रूप से पटौदी नागरिक अस्पताल की एसएमओ डॉक्टर नीरू यादव, महिला रोग विशेषज्ञ ज्योति डबास व प्राइवेट अस्पतालों के ईएनटी विशेषज्ञ मौजूद रहे।

विश्व श्रवण दिवस के मौके पर पटौदी नागरिक अस्पताल की एसएमओ डॉक्टर नीरू यादव ने कहा की बच्चे की श्रवण शक्ति अथवा सुनने की क्षमता को पहचानना सबसे पहला दायित्व प्रसूता अर्थात बच्चे को जन्म देने वाली मां का ही बनता है । क्योंकि बच्चा सबसे अधिक अपनी मां के पास समय व्यतीत करता है। उन्होंने कहा शिशु के जन्म लेने के बाद मां को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि 6 माह का शिशु होने के बाद क्या वह आस-पास होने वाली आवाज अथवा अन्य किसी भी ध्वनि पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया दे रहा है अथवा नहीं दे रहा ? उन्होंने कहा इस पृथ्वी पर सबसे सुंदर शब्द मां है और प्रत्येक जननी बच्चे को जन्म देने के बाद सबसे पहले अपने बच्चे के मुख से यही शब्द सुनना पसंद करती है । इस मौके पर उन्होंने आज के माहौल में विभिन्न प्रकार के ध्वनि प्रदूषण व अन्य मामलों को लेकर बढ़ रही कान की बीमारियों और रोगों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इसी चर्चा के दौरान उन्होंने साफ साफ शब्दों में कहा सबसे बड़ा अमीर और समाज के प्रति उत्तरदाई व्यक्ति वही है जो कभी भी अपनी किसी भी बीमारी के बारे में छुपाए नहीं बल्कि उस बीमारी और बीमारी के उपचार के बाद स्वस्थ होने पर अपने बारे में समाज को भी जानकारी दें ।

इसके एक नहीं अनेक लाभ हैं , उन्होंने कहा राष्ट्रीय छय उन्मूलन कार्यक्रम के ब्रांड एंबेसडर दुनिया भर में विख्यात भारतीय मेगास्टार अमिताभ बच्चन हैं । उन्होंने स्वयं ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी थी कि वह टीबी से पीड़ित हुए, अमिताभ बच्चन को रीड की हड्डी की टीबी हो गई थी और स्वस्थ होने के बाद उन्होंने इस बात की जानकारी साझा भी की। समाज में ऐसे कितने लोग हैं जो कि अपने रोग अथवा बीमारी के बारे में जानकारी साझा करते हैं ? यह एक ऐसा उदाहरण है जो कि आम आदमी को अपनी बीमारी के उपचार के लिए प्रेरणा प्रदान करता है । अपना रोग अथवा बीमारी बताने से कोई भी इंसान व्यक्ति पीड़ित छोटा नहीं हो जाता ।

इसी मौके पर उन्होंने कहा कि माता अपने शिशु पर और उसकी गतिविधियों पर कम से कम 2 वर्ष तक अवश्य ध्यान दें । यदि शिशु 1 वर्ष तक किसी भी प्रकार की ध्वनि पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं देता है तो अपने आसपास के योग्य अनुभवी क्वालिफाइड सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों को आवश्यक जांच करवाई जानी चाहिए । उन्होंने अपने चिकित्सीय अनुभव के साथ साथ पारिवारिक अनुभवों को भी मौके पर मौजूद विभिन्न लोगों के बीच में खुलकर सांझा किया । उन्होंने बेबाक शब्दों में कहा बेशक से हमारे पूर्वज और बुजुर्ग आज के मुकाबले हमारे जितने शिक्षित अथवा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन बुजुर्गों में जो अनुभव का खजाना मौजूद है वह हमारी आजकल की पढ़ाई और उच्च शिक्षा से भी श्रेष्ठ और बेहतर है । उन्होंने कहा किस समय समय पर अपने कान की योग्य कान रोग विशेषज्ञों से जांच करवाते रहना चाहिए ।

हम लापरवाही इस मामले में करते हैं कि नहर हो, तालाब हा, जोहड़ हो, वहां पर मस्ती से डुबकी लगाकर काफी लंबे समय तक नहाते रहते हैं । ऐसा पानी अक्सर स्वास्थ और सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है। जिसके कारण पानी कान में जाने से विभिन्न प्रकार के रोगों की परेशानी बन जाती है। उन्होंने विशेष रूप से चेतावनी देते हुए कहा कि हम सभी को ध्वनि प्रदूषण से बचना चाहिए , कोई भी कार्यक्रम हो कान फाडू शोर, डीजे अथवा तेज आवाज के बीच में संगीत डीजे यह सब हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करता है। कई बार तो कान के पर्दे भी क्षतिग्रस्त भी हो जाते हैं , क्योंकि हमारे शरीर की सभी अंगों की किसी भी प्रकार की प्रतिरोध को झेलने की एक सीमित क्षमता है । उन्होंने कहा कि बिना वजह कान में इयरबड्स, माचिस की तीली या अन्य किसी प्रकार से कान को साफ नहीं करना चाहिए । जरा सी लापरवाही किसी को भी हमेशा के लिए बहरा बना भी सकती है।

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