-कमलेश भारतीय

कांग्रेस का इतिहास पुराना और लम्बा है । ए ओ ह्यूम द्वारा सन् 1885 में स्थापित कांग्रेस आज उस मोड़ पर खड़ी है जहां बहुत अनिश्चितता है , असमंजस है और दुविधा है । अभी तक स्थायी अध्यक्ष को तरह रही है । संसद में विपक्षी नेता के पद के लिए पर्याप्त संख्या के सांसद भी नहीं । कभी राहुल गांधी इसका नेतृत्व संभाल लेते हैं तो कभी मां सोनिया गांधी पतवार थाम लेती हैं । प्रियंका गांधी बाड्रा को भी महासचिव की जिम्मेवारी दी गयी है । साफ साफ संकेत कि यह गांधी कांग्रेस है । गांधी परिवार से बाहर कोई अध्यक्ष खोजने या चुनने की कोई ललक नहीं । सब दारोमदार कांग्रेस के गांधी परिवार के कंधों पर । कल ऐसा भी समय आ सकता है कि प्रियंका के बच्चे बड़े हुए तो कांग्रेसी उनसे भी किसी चमत्कार की उम्मीद में उनकी आरती उतारने लगें । जैसे कभी संजय गांधी की आरती शुरू की थी और पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह मटोर में उनके जूते उठाये खड़े थे और वही बाद में राष्ट्रपति पद तक सुशोभित हुए और कहा था कि इंदिरा गांधी झाडू लगाने को कहेंगी तो तैयार हूं ।

यों कांग्रेस में कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष बने लेकिन महात्मा गांधी इससे खुश नहीं हुए और आखिर नेताजी ने अपना रास्ता अलग कर लिया । यह परंपरा पुरानी है । कांग्रेस में यह आग बहुत पुरानी है । कांग्रेस के अंदर नर्म व गर्म दल सदैव रहे । चंद्रशेखर , मोहन धारिया और कृष्णकांत युवा तुर्क माने और कहे जाते रहे । अपनी आवाज को समर्थन न मिला तो चंद्रशेखर बाहर आ गये । प्रधानमंत्री तक बने लेकिन कांग्रेस के ही समर्थन से । ममता बनर्जी कांग्रेस से ही तृणमूल कांग्रेस तक का सफर तय कर गयीं । जगन रेड्डी की ताकत नहीं पहचानी । उपेक्षित करना महंगा पड़ा और एक राज्य हाथ से निकल गया । जगन मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस खाली हाथ । मध्य प्रदेश खो दिया । ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण । महत्त्व नहीं दिया । दिल की बात नहीं सुनी । इतनी गूंगी बहरी है हाई कमान । द्वार पर जाकर बैठे रहो , मिलने का समय नहीं । किसी ने कांग्रेस हाई कमान पर एक बहुत कमाल की टिप्पणी की है कि हाई कमान उस छठी अंगुली की तरह है जिसका कोई उपयोग नहीं होता , सिर्फ दर्शनीय ।

हरियाणा में कांग्रेस सरकार बना लेती यदि समय रहते भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सुन लेती और समय पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना देती । नहीं सुनी बात । अब पछताये होत क्या जब भाजपा चुग गयी हरियाणा ।

गुलाम नवी आजाद और कपिल सिब्बल समेत कुछ नेताओं ने चिट्ठी लिखी । कांग्रेस हाई कमान नहीं चेती । अब ये लोग फिर जम्मू में जनक राज गुप्ता को श्रद्धांजलि देने के बहाने इकट्ठे हुए हैं । इनमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी हैं और कपिल सिब्बल भी तो राज बब्बर भी । यह नयी आग है और कांग्रेस में शुरू से बड़ी आग है । इस आग से कैसे शोले भड़केंगे ? गुलाम नवी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लिखने को तैयार बैठे हैं । क्या बाकी नेताओं का कोई भविष्य संवरने वाला है ? क्या ये लोग कांग्रेस से अलग कोई विकल्प खोज रहे हैं ? बहुत बड़ा सवाल जो जम्मू की शांत घाटी में खोजा जा सकेगा या नहीं ?

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