-पार्टी में भी एक बुजुर्ग को सरदार पटेल के रूप में प्रचारित किया था न ? – क्या किया आपने उनका ?
–  कोई जवाब है कि सरदार पटेल भवन की हालत ऐसी क्यों है?
– पटेल को ढ़ाल बनाकर गाँधी औऱ नेहरू को ख़ारिज करने वाला आज पटेल को भी ख़ारिज कैसे करने लगा?
– चुनाव आते ही “महापुरुष स्वाँग” करवा लो बस

अशोक कुमार कौशिक

नोटबंदी, जीएसटी और प्रशासनिक विफलता के साथ महंगाई और बेरोजगारी पर नियंत्रण की अक्षमता से जनता का ध्यान भटकाने के लिए नौटंकी नहीं, इन समस्याओं के समाधान के लिए अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन कीजिये ‘साब जी’ ।

भाजपा के पास काम दिखाने के लिए कुछ नहीं है तो उसकी कोशिश होती है कि लोगों के मुंह में सूखा राष्ट्रवाद घुसाकर उनकी वोटों का अपहरण कर ले। देश में अब बंगाल में चुनाव होने जा रहे हैं तो भाजपा का पूरा फ़ोकस दंगों के अलावा महापुरुषों पर चला गया है। कुछ दिन पहले भाजपा द्वारा पूरे देश भर में सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाने का ढोंग किया गया । टैगोर के नाम पर भी लोगों की भावनाओं से खेलने के लिए प्रधानमंत्री ने अपना नक़ली रूप तक गढ़ लिया है। भाजपा के मंत्री कहते हैं कि ये आधुनिक टैगोर हैं, प्रधानमंत्री भी बंगाल दौरा करते समय टैगोर और सुभाष चंद्र बोस से जुड़े प्रतीकों के आगे लौटकर अपनी नकली भक्ति दिखाने का स्वाँग दिखाना कभी नहीं भूलते। फिर श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम लेते हैं, परसों उनके नाम पर आई आई टी खड़गपुर में एक रिसर्च सेंटर का भी शिलान्यास कर दिया।

जैसे जैसे बंगाल चुनाव बढ़ रहे हैं झूठे और फ़रेबी लोग महापुरुषों का चोला ओढ़कर चुनावी पताका लहरा रहे हैं। इनकी ज़ुबानों पर महापुरुष हैं और दिमाग़ में दंगे हैं। इसी लिस्ट में प्रधानमंत्री ने एक और नाम शुरू कर दिया है, वें बंकिम चंद्र चटर्जी, जिन्होंने राष्ट्र्गीत “वन्दे मातरम” लिखा है। अब बंगाल में प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि “वन्दे मातरम भवन” ख़राब हालत में पड़ा है, जहां राष्ट्रगीत लिखने वाले “बंकिम चंद्र” पाँच साल रहे थे। ऐसा करके उन्होंने तृणमूल कोंग्रेस को बंकिम विरोधी ठहराना शुरू कर दिया है।

कभी पटेल, सुभाष, कभी टैगोर, कभी श्यामाप्रसाद मुखर्जी, कभी बंकिम चंद्र चटर्जी, जब से ये आदमी प्रधानमंत्री बने हैं, खुद एक प्रेस कांफ्रेंस करके नहीं बताया कि कितनों को काम दिया, कितनी सरकारी नौकरियाँ निकलीं, कितने नए अस्पताल बनाए, पेट्रोल की क़ीमतें कब घटेंगी, महंगाई कब कम होगी, करप्शन कब कम होगा, बैंकों का एनपीए कब कम होगा। इन सब सवालों का कोई जवाब प्रधानमंत्री पर नहीं है लेकिन चुनाव आते ही “महापुरुष स्वाँग” करवा लो बस। अब आते हैं इनकी महापुरुष भक्ति पर. नीचे अहमदाबाद स्थित सरदार भवन है, सरदार पटेल यहाँ दस साल रहे हैं। बंकिम चंद्र चटर्जी के लिए नक़ली स्वाँग रचने वाले प्रधानमंत्री पर कोई जवाब है कि सरदार भवन की हालत ऐसी क्यों है?

पटेल को ढ़ाल बनाकर गाँधी औऱ नेहरू को ख़ारिज करने वाला गिरोह आज पटेल को भी ख़ारिज कैसे करने लगा? अतीतजीवी दल ने सारा रायता अतीत में ही फैलाया। पटेल के ही नाम पर अपनी खेती खड़ी करने वाली मोदी सरकार ने आख़िर पटेल के ही नाम को मिटाना क्यों शुरू किया?
नेहरू को कोसते वक़्त आप इस तथ्य को भूल जाते हैं कि सरदार पटेल भी कांग्रेस के ही सदस्य थे, आर एस एस के स्वयं सेवक नहीं थे । अपने मिथ्या प्रलाप के जरिये आप इस सत्य को भी नकार ही रहे हैं कि नेहरू जी की जगह यदि सरदार पटेल ही प्रधानमंत्री बन गए होते तो आपकी ‘ये’ वाली भाजपा अपने इस अस्तित्व में तो बिलकुल नहीं दिख पाती ।

तो महोदय ! सरदार पटेल होते तो यह होता और सरदार पटेल होते तो वह होता, वाली आपकी ये नौटंकी खारिज किये जाने योग्य नहीं है ? और तो और ‘साब जी’ आपको तो यह भी याद रहना चाहिए कि तत्कालीन नेहरू सरकार में सरदार पटेल के साथ जनसंघ के पितृ पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी सरदार पटेल के साथ शामिल ही थे ।जाहिर है भारत विभाजन के दस्तावेज पर उन्होंने भी दस्तखत किये होंगे । वैसे आपकी पार्टी में भी एक बुजुर्ग को सरदार पटेल के रूप में प्रचारित किया गया था न ? क्या किया आपने उनका ? खैर, आज तो आपने ‘स्टेडियम’ को अपने नाम कर सरदार पटेल से भी अपना हिसाब बराबर कर ही लिया है !

दो बातें जो इस देश की संस्कृति और परंपरा में शामिल नहीं रहीं। एक किसी के नाम पर उसके जीवनकाल में राष्ट्रीय या निजी संपत्ति का नामकरण, दो महान विभूतियों का नाम पहले से बनी हुई सम्पत्ति से हटाकर अपना नाम रख देना। शामिल यह रहा है कि जनोपयोगी और जनहित की सम्पत्ति का निर्माण कराना और उसे देश के लिये समर्पित और देशसेवा में विशेष योगदान रखने वाले व्यक्ति के नाम से लोकार्पित करना।

आपकी भारत विभाजन की वो वेदना भी समझ से परे है क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से वो विभाजन ही तो आपके लिए फर्श से अर्श तक पहुंचने का अवसर बना है | क्योंकि नहीं तो समुदाय विशेष भी तो बड़ी संख्या में इसी अविभाजित देश में रहता ना ? 

मनमोहन सिंह जी की सरकार के समय भी पाकिस्तान और चीन के लिए उद्बोधित अपने ओजस्वी उद्गारों को स्वयं ही सुनियेगा, ना आप किसी को उसी की भाषा में जवाब दे पाए और ना ही आपकी आँखे कभी लाल हो पाई । चीन भारत की छाती पर मूंग दल गया और आपने देश को कह दिया कि ना कोई घुसा हुआ है, ना कोई घुस आया है ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है ।

अपने मुट्ठी भर कुछ व्यापारी मित्रों की ही तिजोरी भर कर और शिक्षित नौजवानों को पकौड़े बेचने की नसीहत देकर आप फिर ‘न्यू इंडिया’ का झूठा सपना ही तो दिखा रहे हैं । देश में समुदाय भेद की साजिश और अपने ‘झूठ’ को ही अपनी राजनीति का आधार बनाओगे तो कितने दिन चल पाओगे ‘साब जी’ ? और हाँ पिछली सरकार के किसी फीके पड़ते धब्बे दिखाकर ‘राफेल डील की गहरी कालिख’, ‘पुलवामा का सच’  और ‘पी एम केयर फंड’ का हिसाब छिपाने की आपकी हर एक कोशिश भी नाकाम हो रही है । 

कुछ नहीं तो, कम से कम ‘झूठ’ ही बोलना छोड़ दो ‘साब जी’ , क्योंकि खुदा के पास जाना है .. ना हाथी है, ना घोड़ा है .. बस .. पैदल ही जाना है ।

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