भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज फिर गुरुग्राम में भाजपाइयों की उच्च स्तरीय बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने की। बैठक में कृष्णपाल गुर्जर, चौ. धर्मबीर, बिजेंद्र सिंह आदि कई सांसद व कुछ विधायक शामिल हुए। मजेदारी की बात यह है कि इस बैठक का कोई प्रेस नोट जारी नहीं हुआ। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बैठक में किसान आंदोलन से कैसे निजात पाई जाए, इस बारे में चर्चा हुई। गौरतलब है कि हाल ही में अमित शाह ने कहा है कि किसानों के पास जाओ और उन्हें समझाओ कि ये कृषि कानून किसानों के हित में हैं। 

अब विचारनीय प्रश्न यह है कि पिछले अनेक महीनों से भाजपा सरकार और भाजपा संगठन अपने पूरे प्रयास कर रही है किसानों को समझाने के और परिणाम यह आ रहे हैं मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री भी किसानों में जाकर अपनी सभाएं नहीं कर पा रहे। ऐसे में अब सांसद और अधिकारी किसानों में जाकर उन्हें कैसे समझा पाएंगे, समझाना तो पड़ेगा ही, अमित शाह का आदेश है, लेकिन कैसे? इसी स्थिति को देखकर कहावत याद आई कि इधर कुआं-उधर खाई, कहां जाएं भाजपाई।

आज इसी विषय पर मंथन हुआ बताते हैं सूत्र। कुछ राजनैतिक चर्चाकारों का यह भी कहना है कि समझाने का प्रयास तो ये इतने समय से कर ही रहे हैं, जिसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई। अब समझाने का तात्पर्य बहकाना होगा।

गत दिनों भी गुरुग्राम में बैठक रखी गई थी, जिससे प्रेस को दूर रखा गया था। सवाल यह उठता है कि बैठकों के लिए गुरुग्राम ही क्यों, प्रदेश की राजधानी तो चंडीगढ़ है। चंडीगढ़-पंचकूला क्यों नहीं? इसका उत्तर यह समझ आया कि गुरुग्राम किसान आंदोलन में शांत क्षेत्र रहा है। यहां मुख्यमंत्री भी सभाएं कर चुके हैं और कर भी सकते हैं। दोनों बैठकों में भाजपा नेताओं को किसानों के इसी विरोध का न तो सामना करना पड़ा और न ही गुरुग्राम के किसी राजनैतिक या किसान नेता ने इस बात पर कोई टिप्पणी की। अत: आशा रखनी चाहिए कि जब तक किसान आंदोलन चलेगा, तब तक किसान आंदोलन से निपटने की नीतियां गुरुग्राम में ही बनेंगी। यू भी कह सकते हैं कि किसान आंदोलन में भाजपा के लिए गुरुग्राम एक प्रकार से अघोषित राजधानी रहेगा।

आज की बैठक में सांसदों की ओर प्रदेश अध्यक्ष का अधिक ध्यान था। आमतौर पर देखा जाता है कि सांसद केंद्र से जुड़े हुए कार्यों में ही संलिप्तता रखते हैं। प्रदेश के कार्यों में सांसदों की भूमिका कम ही रहती है। अब गुरुग्राम के सांसद की बात करें तो चर्चा का विषय है कि वह आज इस बैठक में नहीं थे। कुछ भाजपाइयों ने बताया कि यह बैठक उन क्षेत्र के सांसदों और विधायकों के लिए बुलाई गई थी, जिन क्षेत्रों में किसान समस्या अधिक है।

अब किसान आंदोलन सरकार की चिंता बढ़ाने लगा है और अभी राजनीतिक क्षेत्र में कहीं कोई चर्चा तो नहीं हुई है लेकिन चर्चाकारों तो कुछ न कुछ कहते ही हैं। उनका कहना है कि पांच मार्च से जो विधानसभा का बजट सत्र होना है, वही सरकार के लिए विशेष चिंता का कारण है, क्योंकि उस सत्र में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाना है और भूपेंद्र सिंह हुड्डा अनुभवी राजनैतिक हैं, उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव सीधे-सीधे सरकार के विरोध में न रख किसान कानूनों के ऊपर रखा है, जिसमें मतदान में जो उन कानूनों के पक्ष में मतदान करेगा, वह हरियाणा की जनता की निगाह में किसान विरोधी कहलाएगा और वर्तमान परिस्थितियों को देखकर ऐसा लगता है कि जिसकी छवि इस समय किसान विरोधी की बन जाएगी, वह शायद आने वाले समय में कोई चुनाव जीत नहीं पाएगी। अत: सरकार को चिंता होनी स्वाभाविक है। बड़ी चिंता तो जजपा की है, साथ ही निर्दलीय विधायकों की चिंता तो है ही लेकिन कुछ चिंता भाजपा नेतृत्व को अपने घर की भी लगती है। अब उस सत्र की कामयाबी के लिए ही नीतियां बनाई जा रही हैं और किसानों को किसी भी प्रकार समझाने के प्रयास किए जा रहे हैं तथा आने वाले समय में क्या कुछ किस तरीके से समझाएंगे, यह देखने की आवश्यकता रहेगी। 

हरियाणा में अब तक सांसदों और मुख्यमंत्री का तालमेल कम ही देखने को मिला है। कुछ ही सांसद ऐसे हैं जिनसे मुख्यमंत्री की बनती है। वरना अधिकांश से मुख्यमंत्री की दूरी ही रही है। अब जैसे हमारे गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिंह और मुख्यमंत्री मनोहर लाल का 36 का आंकड़ा प्रसिद्ध है। अब राव इंद्रजीत के साथ जो सांसद हैं, वे भी कहीं न कहीं मुख्यमंत्री के निशाने पर हैं और वे सांसद भी कुछ मुख्यमंत्री के बारे में इन स्थितियों में कैसा सोचेंगे, वह आप समझ सकते हैं।

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